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Yogita Sahu
जूर मिल के बचाबो संगी आज आंदोलन के बारी हे । सहदेव अरण्य के रक्षा करबो जिंहा प्रकृति के चिन्हारी हे ।। ©Yogita Sahu जूर मिल के बचाबो संगी आज आंदोलन के बारी हे । सहदेव अरण्य के रक्षा करबो जिंहा प्रकृति के चिन्हारी हे ।। yogita sahu
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} आखिर क्यों खाया था पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस आज हम आपको महाभारत से जुडी एक घटना बताते है जिसमे पांचो पांडवों ने अपने मृत पिता पाण्डु का मांस खाया था उन्होंने ऐसा क्यों किया यह जानने के लिए पहले हमे पांडवो के जनम के बारे में जानना पड़ेगा। पाण्डु के पांच पुत्र युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे। इनमे से युधिष्ठर, भीम और अर्जुन की माता कुंती तथा नकुल और सहदेव की माता माद्री थी। पाण्डु इन पाँचों पुत्रों के पिता तो थे पर इनका जनम पाण्डु के वीर्य तथा सम्भोग से नहीं हुआ था क्योंकि पाण्डु को श्राप था की जैसे ही वो सम्भोग करेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसलिए पाण्डु के आग्रह पर यह पुत्र कुंती और माद्री ने भगवान का आहवान करके प्राप्त किये थे। जब पाण्डु की मृत्यु हुई तो उसके मृत शरीर का मांस पाँचों भाइयों ने मिल बाट कर खाया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योकिं स्वयं पाण्डु की ऐसी इच्छा थी। चुकी उसके पुत्र उसके वीर्ये से पैदा नहीं हुए थे इसलिए पाण्डु का ज्ञान, कौशल उसके बच्चों में नहीं आ पाया था। इसलिए उसने अपनी मृत्यु पूर्व ऐसा वरदान माँगा था की उसके बच्चे उसकी मृत्यु के पश्चात उसके शरीर का मांस मिल बाँट कर खाले ताकि उसका ज्ञान बच्चों में स्थानांतरित हो जाए। पांडवो द्वारा पिता का मांस खाने के सम्बन्ध में दो मान्यता प्रचलित है। प्रथम मान्यता के अनुसार मांस तो पांचो भाइयों ने खाया था पर सबसे ज्यादा हिस्सा सहदेव ने खाया था। जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार सिर्फ सहदेव ने पिता की इच्छा का पालन करते हुए उनके मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये। पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} आखिर क्यों खाया था पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस आज हम आपको महाभारत से जुडी एक घटना बताते है जिसमे पांचो
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Deepak Shah (Sw. Atmo Deep)
Shaarang Deepak
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श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था पढ़िए महाभारत !! 📜📜महाभारत: स्त्री पर्व चतुर्विंष अध्याय: श्लोक 19-30 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📖 यह वही हाथ है, जो हमारी करधनी को खींच लेता, उभरे हुए स्तनों का मर्दन करता, नाभि, उरू और जघन प्रदेष का छूता और निभिका बन्दन सरका दिया करता था। जब मेरे पति समरांगन में दूसरे के साथ युद्ध में संलग्न हो अर्जुन की ओर से असावधान थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था। 📖 जनार्दन। तुम सतपुरुषों की सभाओं में, बातचीत के प्रसंग में अर्जुन के महान् कर्म का किस तरह वर्णन करोगे? अथवा स्वयं किरीटा धारी अर्जुन ही कैसे इस जघन्य कार्य की चर्चा करेंगे? इस तरह अर्जुन की निंदा करके यह सुन्दरी चुप हो गयी है। 📖 इसकी बड़ी सौतें इसके लिये उसी प्रकार शोक प्रकट कर रही हैं, जैसे सास अपनी बहू के लिये किया करती है। यह गान्धार देष का राजा महाबली सत्यपराक्रमी शकुनि पड़ा हुआ है। यह सहदेव ने मारा है। भान्जे ने मामा के प्राण लिये हैं। 📖 पहले सोने के डण्डों से विभूषित दो-दो व्यजनों द्वारा जिसको हवा की जाती थी, वही शकुनि आज धरती पर सो रहा है और पक्षी अपनी पखों से इसको हवा करते हैं। जो अपने सैकड़ों और हजारों रूप बना लिया करता था, उस मायावी की सारी मायाऐं पाण्डु पुत्र सहदेव के तेज से दग्ध हो गयीं। 📖 जो छल विद्या का पण्डित था, जिसने द्यूत मैं सभी को माया द्वारा युधिष्ठिर तथा उनके विशाल राज को जीत लिया था, वही फिर अपना जीवन भी हार गया। श्रीकृष्ण। आज शकुनि (पक्षी) ही इस शकुनि की चारों ओर से उपासना करते हैं। इसने मेरे पुत्रों के विनाश के लिये ही द्यूतविद्या अथवा धूर्तविद्या सीखी थी। 📖 इसी ने सगे सम्बन्धियों सहित अपने और मेरे पुत्रों के वध के लिये पाण्डवों के साथ महान् वैर की नींव डाली थी। प्रभो। जैसे मेरे पुत्रों को शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्य लोक प्राप्त हुए हैं, उसी प्रकार इस दुर्बुद्धि शकुनि को भी शस्त्र द्वारा जीते हुए उत्तम लोक प्राप्त होंगे। 📖 मधुसूदन। मेरे पुत्र सरल बुद्धि के हैं। मुझे भय है कि उन पुण्य लोकों में पहुंच कर यह शकुनि फिर किसी प्रकार उन सब भाइयों में परस्पर विरोध न उत्पन्न कर दे। ©N S Yadav GoldMine #Tuaurmain श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था पढ़िए महाभारत !! 📜📜महाभारत: स्त्री पर्व चतुर
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📒📒महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श्लोक 19-28 {Bolo Ji Radhey Radhey}📜 शत्रुघाती शूरवीर भीमसेन ने युद्ध में जिसे मार गिराया तथा जिसके सारे अंगों का रक्त पी लिया, वही यह दुशासन यहां सो रहा है। माधव। देखो, ध्रुतक्रीड़ा के समय पाये हुए कलेशों को स्मरण करके द्रौपदी से प्रेरित हुए भीमसेन ने मेरे इस पुत्र को गदा से माल डाला है। 📜 जनार्दन। इसने अपने भाई और कर्ण का प्रिय करने की इच्छा से सभा में जुएं से जीती गयी द्रौपदी के प्रति कहा था कि पान्चालि। तू नकुल सहदेव तथा अर्जुन के साथ ही हमारी दासी हो गई; अतः शीघ्र ही हमारे घरों में प्रवेश कर। 📜 श्रीकृष्ण। उस समय मैं राजा दुर्योधन से बोली- बेटा। शकुनी मौत के फन्दे में फंसा हुआ है। तुम इसका साथ छोड़ दो। पुत्र। तुम अपने इस खोटी बुद्धि वाले मामा को कलह प्रिय समझो और शीघ्र ही इसका परित्याग करके पाण्डवों के साथ संधि कर लो। 📜 दुर्बुद्वे। तुम नहीं जानते कि भीमसेन कितने अमर्षशील हैं। तभी जलती लकड़ी से हाथी को मारने के समान तुम अपने तीखे वाग्बाणों से उन्हें पीड़ा दे रहे हो । इस प्रकार एकान्त में मैंने उन सब को डांटा था। 📜 श्रीकृष्ण। उन्हीं बागबाणों को याद करके क्रोधी भीमसेन ने मेरे पुत्रों पर उसी प्रकार क्रोधरूपी विष छोड़ा है, जैसे सर्प गाय वैल को डस कर उनमें अपने विष का संचार कर देता है। सिंह के मारे हुए विशाल हाथी के समान भीमसेन का मारा हुआ यह दुशासन दोनों विशाल हाथ फैलाये रणभूमि में पड़ा हुआ है। 📜 अत्यन्त अमर्ष में भरे हुए भीमसेन ने युद्धस्थल में क्रुद्व होकर जो दुशासन का रक्त पी लिया, यह बड़ा भयानक कर्म किया है । ©N S Yadav GoldMine #DarkCity 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श्लोक 19-28 {Bolo Ji Radhey Radhey}📜 शत्रुघाती शूरवीर भीमसेन ने युद्ध में जिसे मार गिराया
Priya Kumari Niharika
महाभारत वह अध्याय है जो धर्म का अभिप्राय है जहां धर्म न्याय का मान है, वहीं भूमि का कल्याण है विध्वंस के शुरुआत का धर्म के प्रभात का उद्देश्य नहीं संघार का, है धर्म के संग्राम का कहीं लोभ था राज का, कहीं चिंता धर्म काज का था समर जीत ना हार का केवल जग के उद्धार का कुरुक्षेत्र के सौभाग्य का, अन्याय के दुर्भाग्य का सत्य और यथार्थ का, स्वार्थ और परमार्थ का कर्मों के परिणाम का, कलंक और कल्याण का दर्द के उपचार का , धर्म के सुविचार का कर्तव्य के निर्वाह का, सामर्थ्य के प्रवाह का सत्यवती की महत्वाकांक्षा का, शकुनी की आकांक्षा का पांडु और धृतराष्ट्र का , अपराध गांधार राज का गांधारी के विवाह का, सौ पुत्रों के उत्साह का धर्म के साम्राज्य का , कौरवों के अन्याय का चौसर के हर चाल का , कुरुक्षेत्र के भीषण हाल का दुर्वासा के आशीर्वाद का , अखिलेश्वर के प्रसाद का भीष्म के भीषण प्रण का, द्रोपदी के वस्त्र हरण का कुरु वंश के आधार का, प्रपंच के कुविचार का सत्ता के अधिकार का, भीष्म के प्रतिहार का इच्छा के संताप का, संतोष के प्रताप का गुरु द्रोण के दिए ज्ञान का अर्जुन के एकाग्र ध्यान का युधिष्ठिर के धर्म का, अर्जुन के महाकर्म का सहदेव नकुल के रण का, संग भीम के महाबल का श्री कृष्ण के सामर्थ का, कौरवों के महा अनर्थ का सुभद्रा के अनुदान का, वीर अभिमन्यु महान का दुर्योधन के व्यभिचार का , कौरवों के अत्याचार का यह कर्ण के बलिदान का, पांचाली के अपमान का कुरु वंश के अभिमान का, विध्वंस के आह्वान का ग्रहण ये अंशुमान का, धर्म के विहान का समर नहीं अंधकार का, अधर्म के प्रतिकार का सृष्टि के नव निर्माण का, मनुष्य के कल्याण का कुरु वंश के रक्तपात का, कुकर्म के हालात का यह धर्म के आह्वान का, अधर्म के अवसान का है ©verma priya महाभारत वह अध्याय है जो धर्म का अभिप्राय है जहां धर्म न्याय का मान है, वहीं भूमि का कल्याण है विध्वंस के शुरुआत का धर्म के प्रभात का उद
DR. SANJU TRIPATHI
कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें। 👇👇👇👇 इंद्र के अंशावतार यदुकुल वंश के पांडव और कुंती के तीसरे पुत्र थे अर्जुन । द्रोणाचार्य के शिष्य धनुर्विद्या में पारंगत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर