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Shaarang Deepak
N S Yadav GoldMine
📒📒महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श्लोक 19-28 {Bolo Ji Radhey Radhey}📜 शत्रुघाती शूरवीर भीमसेन ने युद्ध में जिसे मार गिराया तथा जिसके सारे अंगों का रक्त पी लिया, वही यह दुशासन यहां सो रहा है। माधव। देखो, ध्रुतक्रीड़ा के समय पाये हुए कलेशों को स्मरण करके द्रौपदी से प्रेरित हुए भीमसेन ने मेरे इस पुत्र को गदा से माल डाला है। 📜 जनार्दन। इसने अपने भाई और कर्ण का प्रिय करने की इच्छा से सभा में जुएं से जीती गयी द्रौपदी के प्रति कहा था कि पान्चालि। तू नकुल सहदेव तथा अर्जुन के साथ ही हमारी दासी हो गई; अतः शीघ्र ही हमारे घरों में प्रवेश कर। 📜 श्रीकृष्ण। उस समय मैं राजा दुर्योधन से बोली- बेटा। शकुनी मौत के फन्दे में फंसा हुआ है। तुम इसका साथ छोड़ दो। पुत्र। तुम अपने इस खोटी बुद्धि वाले मामा को कलह प्रिय समझो और शीघ्र ही इसका परित्याग करके पाण्डवों के साथ संधि कर लो। 📜 दुर्बुद्वे। तुम नहीं जानते कि भीमसेन कितने अमर्षशील हैं। तभी जलती लकड़ी से हाथी को मारने के समान तुम अपने तीखे वाग्बाणों से उन्हें पीड़ा दे रहे हो । इस प्रकार एकान्त में मैंने उन सब को डांटा था। 📜 श्रीकृष्ण। उन्हीं बागबाणों को याद करके क्रोधी भीमसेन ने मेरे पुत्रों पर उसी प्रकार क्रोधरूपी विष छोड़ा है, जैसे सर्प गाय वैल को डस कर उनमें अपने विष का संचार कर देता है। सिंह के मारे हुए विशाल हाथी के समान भीमसेन का मारा हुआ यह दुशासन दोनों विशाल हाथ फैलाये रणभूमि में पड़ा हुआ है। 📜 अत्यन्त अमर्ष में भरे हुए भीमसेन ने युद्धस्थल में क्रुद्व होकर जो दुशासन का रक्त पी लिया, यह बड़ा भयानक कर्म किया है । ©N S Yadav GoldMine #DarkCity 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व अष्टादश अध्याय: श्लोक 19-28 {Bolo Ji Radhey Radhey}📜 शत्रुघाती शूरवीर भीमसेन ने युद्ध में जिसे मार गिराया
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श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था पढ़िए महाभारत !! 📜📜महाभारत: स्त्री पर्व चतुर्विंष अध्याय: श्लोक 19-30 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📖 यह वही हाथ है, जो हमारी करधनी को खींच लेता, उभरे हुए स्तनों का मर्दन करता, नाभि, उरू और जघन प्रदेष का छूता और निभिका बन्दन सरका दिया करता था। जब मेरे पति समरांगन में दूसरे के साथ युद्ध में संलग्न हो अर्जुन की ओर से असावधान थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था। 📖 जनार्दन। तुम सतपुरुषों की सभाओं में, बातचीत के प्रसंग में अर्जुन के महान् कर्म का किस तरह वर्णन करोगे? अथवा स्वयं किरीटा धारी अर्जुन ही कैसे इस जघन्य कार्य की चर्चा करेंगे? इस तरह अर्जुन की निंदा करके यह सुन्दरी चुप हो गयी है। 📖 इसकी बड़ी सौतें इसके लिये उसी प्रकार शोक प्रकट कर रही हैं, जैसे सास अपनी बहू के लिये किया करती है। यह गान्धार देष का राजा महाबली सत्यपराक्रमी शकुनि पड़ा हुआ है। यह सहदेव ने मारा है। भान्जे ने मामा के प्राण लिये हैं। 📖 पहले सोने के डण्डों से विभूषित दो-दो व्यजनों द्वारा जिसको हवा की जाती थी, वही शकुनि आज धरती पर सो रहा है और पक्षी अपनी पखों से इसको हवा करते हैं। जो अपने सैकड़ों और हजारों रूप बना लिया करता था, उस मायावी की सारी मायाऐं पाण्डु पुत्र सहदेव के तेज से दग्ध हो गयीं। 📖 जो छल विद्या का पण्डित था, जिसने द्यूत मैं सभी को माया द्वारा युधिष्ठिर तथा उनके विशाल राज को जीत लिया था, वही फिर अपना जीवन भी हार गया। श्रीकृष्ण। आज शकुनि (पक्षी) ही इस शकुनि की चारों ओर से उपासना करते हैं। इसने मेरे पुत्रों के विनाश के लिये ही द्यूतविद्या अथवा धूर्तविद्या सीखी थी। 📖 इसी ने सगे सम्बन्धियों सहित अपने और मेरे पुत्रों के वध के लिये पाण्डवों के साथ महान् वैर की नींव डाली थी। प्रभो। जैसे मेरे पुत्रों को शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्य लोक प्राप्त हुए हैं, उसी प्रकार इस दुर्बुद्धि शकुनि को भी शस्त्र द्वारा जीते हुए उत्तम लोक प्राप्त होंगे। 📖 मधुसूदन। मेरे पुत्र सरल बुद्धि के हैं। मुझे भय है कि उन पुण्य लोकों में पहुंच कर यह शकुनि फिर किसी प्रकार उन सब भाइयों में परस्पर विरोध न उत्पन्न कर दे। ©N S Yadav GoldMine #Tuaurmain श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान् कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था पढ़िए महाभारत !! 📜📜महाभारत: स्त्री पर्व चतुर
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{Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘महाभारत’ एक बहुत ही विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें अनेकों अनेक कहानियां है। आम जन इनमे से अनेक कहानियों और प्रसंगों से अवगत है लेकिन बहुतों से अनजान है। आज हम आपको महाभारत का एक ऐसा ही प्रसंग बताते है जब अर्जुन ने अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर को मारने के लिए हथियार उठाए थे। आइए जानते है आखिर अर्जुन ने ऐसा क्यों किया और इसका परिणाम क्या निकला। महाभारत काल की यह कथा हमें वह समय याद कराती है जब कुरुक्षेत्र युद्ध चल रहा था। यह युद्ध का 17वां दिन था और राजकुमार युधिष्ठिर तथा कर्ण के बीच युद्ध हो रहा था। सभी को इस युद्ध से बेहद उम्मीदें थीं कि तभी शस्त्र विद्या में माहिर रहे कर्ण ने युधिष्ठिर पर एक ज़ोरदार वार किया। एक के बाद एक करके कर्ण के सभी वार युधिष्ठिर पर भारी पड़ते गए और वह बुरी तरह से घायल हो गया। अब कर्ण के पास एक मौका था कि वह युधिष्ठिर को मारकर पाण्डवों की नींव हिलाकर रख दे, लेकिन उसने यह मौका हाथ से जाने दिया। आखिर क्यों? कर्ण ने युधिष्ठिर पर सिर्फ इसलिए वार नहीं किया क्योंकि उसने पांडवों की माता कुंती को यह वचन दिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह उनके किसी भी पुत्र को जान से नहीं मारेगा। और यही कारण था कि ना चाहते हुए भी कर्ण ने युधिष्ठिर को जीवित ही जाने दिया। जब अनुज नकुल तथा सहदेव ने अपने ज्येष्ठ भ्राता राजकुमार युधिष्ठिर की यह हालत देखी तो शीघ्र ही उन्हें तंबू में ले गए, जहां उनकी मरहम-पट्टी के सभी इंतज़ाम किए गए। जब तीनों भाई तंबू में थे तो बाकी दो भाई अर्जुन तथा भीम अभी भी युद्ध में शत्रुओं की सेना से संघर्ष कर रहे थे। अचानक ही अर्जुन को राजकुमार युधिष्ठिर की अनुपस्थिति का एहसास हुआ और उन्होंने भीम से इस बारे में पूछताछ की। तब भीम ने बताया कि किस तरह से कर्ण तथा युधिष्ठिर के बीच हुए द्वंद युद्ध में भ्राता युधिष्ठिर घायल हो गए, जिसके बाद उन्हें विश्राम करने के लिए ले जाया गया है। तभी भीम ने अर्जुन से कहा कि वह शत्रुओं को अकेले ही संभाल लेंगे और अर्जुन से आग्रह किया कि वे भ्राता युधिष्ठिर के पास जाएं और उनके स्वास्थ्य का ब्योरा लें। आज्ञानुसार राजकुमार अर्जुन उस तंबू की ओर चले दिए, जहां युधिष्ठिर घायल आवस्था में पीड़ा से जूझ रहे थे। तंबू में लेटे हुए युधिष्ठिर ने अचानक ही अपने अनुज को अपनी ओर आते हुए देखा। अर्जुन को देख उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। वह समझ गए कि हो ना हो अर्जुन युद्ध में कर्ण पर विजय प्राप्त कर उनके पास खुशखबरी लेकर आ रहे हैं। वह अंदर ही अंदर बेहद गर्व महसूस कर रहे थे कि उनकी इस हालत के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को उनके अनुज ने दंड दे दिया है और अवश्य ही अर्जुन ने कर्ण को मार दिया होगा। लेकिन युधिष्ठिर सत्य से अनजान थे। तंबू में प्रवेश करते ही अर्जुन ने ज्येष्ठ भ्राता को प्रणाम किया और उनसे उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा। लेकिन इससे ज्यादा तो युधिष्ठिर इस बात को सुनने के लिए ज्यादा उत्तेजित हो रहे थे कि अर्जुन ने कर्ण को मारा या नहीं। लेकिन तभी राजकुमार अर्जुन द्वारा वहां आने का असली कारण व्यक्त किया गया। उन्होंने बताया कि कैसे भीम ने युधिष्ठिर के घायल होने की खबर सुनाई जिसके बाद वह दौड़े-दौड़े उनकी स्थिति का ब्योरा लेने आ गए। अर्जुन के मुख से सच्चाई सुनते ही युधिष्ठिर अपना आपा खो बैठे। वह सच उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा था। उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो कोई उनके सम्मान को तीर के समान चीरता हुआ जा रहा हो। वे बेहद क्रोधित हो उठे और बोले, “तुम यहां केवल मेरे घावों के बारे में पूछने आए हो या फिर उन्हें और कुरेदने आए हो? तुम किस प्रकार के अनुज हो जो अब तक अपने ज्येष्ठ भ्राता के अपमान का बदला नहीं ले सके।“ युधिष्ठिर के इन कटु वचनों को सुनकर अर्जुन बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहे थे, लेकिन युधिष्ठिर का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। वे आगे बोले, “यदि तुम मेरे लिए इतना भी करने में असमर्थ हो तो तुम्हारे इस गांडीव अस्त्र का कोई लाभ नहीं है। उतार कर फेंक दो इसे।“ अपने प्रिय गांडीव अस्त्र की निंदा सुनते ही अर्जुन के मुख पर निराशा वाले भाव पल में ही क्रोध के साथ बदल गए। वह संसार में किसी से भी किसी भी प्रकार की निंदा सुन सकते थे, लेकिन उनके गांडीव के बारे में कोई एक भी अपशब्द बोले, यह उन्हें बर्दाश्त नहीं था। दरअसल यह अर्जुन द्वारा लिए गए एक वचन का हिस्सा था, जिसके अनुसार कोई भी अपना या पराया व्यक्ति यदि उनके पवित्र एवं प्रिय गांडीव अस्त्र के बारे में बुरे वचन बोलेगा, तो वह उसका सिर कलम कर देंगे। यही कारण था कि युधिष्ठिर द्वारा गांडीव की निंदा करते ही अर्जुन ने अगले ही पल अपना गांडीव उठाया और क्रोध भरी आंखों से युधिष्ठिर को मारने के लिए आगे बढ़े। तभी श्रीकृष्ण वहां पहुंचे और अर्जुन के इस व्यवहार को देखते ही उन्हें रुकने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण राजकुमार अर्जुन का यह रूप देखकर बेहद अचंभित हुए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार ऐसी क्या बात हुई जो अर्जुन अपने ही प्रिय भाई युधिष्ठिर के प्राण लेने को तैयार हो गए। तत्पश्चात अर्जुन ने उन्हें घटना का सार बताया और फिर श्रीकृष्ण को समझ आया कि आखिर बात क्या थी। उस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया और बोले, “हे अर्जुन! मैं तुम्हारे अपने गांडीव के संदर्भ में लिए गए वचन का सम्मान करता हूं। वचनानुसार तुम्हें अपने ही ज्येष्ठ भ्राता को मार देने का पूरा हक है, परन्तु धार्मिक संदर्भों में यह पाप है।“ लेकिन दूसरी ओर अर्जुन भी अपने वचन से मजबूर थे। उनकी मंशा को और गहराई से समझते हुए श्रीकृष्ण बोले, “अर्जुन, यदि तुम्हे अपने वचन को पूरा करना है तो इसका एक अन्य साधन भी है। माना जाता है कि अपने से बड़ों का अनादर करना उन्हें मृत्यु दंड देने के समान होता है। यदि अभी तुम अपने ज्येष्ठ भ्राता का अपमान करो तो तुम्हारा वचन पूरा हो जाएगा।“ श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार अर्जुन ने अगले ही पल युधिष्ठिर का तिरस्कार किया। अपने द्वारा किए गए इस अनादर को अर्जुन सहन ना कर सके और इस बार अपने ही प्राण लेने के लिए उन्होंने अपनी तलवार उठा ली। लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। उन्होंने अर्जुन को बताया कि कैसे खुद के प्राणों का अंत करना यानी कि आत्मदाह करना शास्त्रों में अधर्म माना जाता है। और पाण्डवों द्वारा अधर्म के मार्ग पर चलना एक बहुत बड़ा पाप एवं अन्याय साबित होगा। इसीलिए उसे धर्म का मार्ग चुनना चाहिए। इसके साथ ही श्रीकृष्ण ने कहा कि आत्मप्रशंसा, आत्मघात के समकक्ष है। इसलिए तुम दूसरों के सम्मुख अपनी वीरता की खुलकर तारीफ़ करो, जिससे तुम्हारा वचन पूरा हो जाएगा। श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुन धीरे-धीरे राजकुमार अर्जुन का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने खुद के सिर पर रखी उस तलवार को नीचे उतार कर फेंक दिया। इस प्रकार भगवान कृष्ण के निर्देशों से राजकुमार अर्जुन का वचन पूरा हुआ और साथ ही वह किसी भी प्रकार का अधर्म करने से बच गए। जय श्री कृष्ण।। ©N S Yadav GoldMine #CityWinter {Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘म
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{Bolo Ji Radhey Radhey} आखिर क्यों खाया था पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस आज हम आपको महाभारत से जुडी एक घटना बताते है जिसमे पांचो पांडवों ने अपने मृत पिता पाण्डु का मांस खाया था उन्होंने ऐसा क्यों किया यह जानने के लिए पहले हमे पांडवो के जनम के बारे में जानना पड़ेगा। पाण्डु के पांच पुत्र युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे। इनमे से युधिष्ठर, भीम और अर्जुन की माता कुंती तथा नकुल और सहदेव की माता माद्री थी। पाण्डु इन पाँचों पुत्रों के पिता तो थे पर इनका जनम पाण्डु के वीर्य तथा सम्भोग से नहीं हुआ था क्योंकि पाण्डु को श्राप था की जैसे ही वो सम्भोग करेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसलिए पाण्डु के आग्रह पर यह पुत्र कुंती और माद्री ने भगवान का आहवान करके प्राप्त किये थे। जब पाण्डु की मृत्यु हुई तो उसके मृत शरीर का मांस पाँचों भाइयों ने मिल बाट कर खाया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योकिं स्वयं पाण्डु की ऐसी इच्छा थी। चुकी उसके पुत्र उसके वीर्ये से पैदा नहीं हुए थे इसलिए पाण्डु का ज्ञान, कौशल उसके बच्चों में नहीं आ पाया था। इसलिए उसने अपनी मृत्यु पूर्व ऐसा वरदान माँगा था की उसके बच्चे उसकी मृत्यु के पश्चात उसके शरीर का मांस मिल बाँट कर खाले ताकि उसका ज्ञान बच्चों में स्थानांतरित हो जाए। पांडवो द्वारा पिता का मांस खाने के सम्बन्ध में दो मान्यता प्रचलित है। प्रथम मान्यता के अनुसार मांस तो पांचो भाइयों ने खाया था पर सबसे ज्यादा हिस्सा सहदेव ने खाया था। जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार सिर्फ सहदेव ने पिता की इच्छा का पालन करते हुए उनके मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये। पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} आखिर क्यों खाया था पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस आज हम आपको महाभारत से जुडी एक घटना बताते है जिसमे पांचो
नेहा उदय भान गुप्ता
नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे अन्त, महाभारत की आपको कहानी बताती हूँ।। पढ़े अनुशीर्षक में...👇👇👇👇 आओ अब आगे की कथा बताती हूँ, नेह शब्दों में उसे सुनाती हूँ। पाण्डु संग कुन्ती के विवाह का प्रसंग, आप सबको मैं बताती हूँ।।1 कुन्ती हुई जब व
DR. SANJU TRIPATHI
कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें। 👇👇👇👇 इंद्र के अंशावतार यदुकुल वंश के पांडव और कुंती के तीसरे पुत्र थे अर्जुन । द्रोणाचार्य के शिष्य धनुर्विद्या में पारंगत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे अन्त, महाभारत की आपको कहानी बताती हूँ।। पढ़े अनुशीर्षक में...👇👇👇👇 आओ अब आगे की कथा बताती हूँ, नेह शब्दों में उसे सुनाती हूँ। पाण्डु संग कुन्ती के विवाह का प्रसंग, आप सबको मैं बताती हूँ।।1 कुन्ती हुई जब व
Jyoti choudhary
कहानी द्रौपदी की... रिश्ता मेरा था विश्वास का अभिमान था मुझे अपनो का Read in caption ...... -📝Jyoti Choudhary (monu) अग्नि से जन्मी मैं किस्मत की बेबसी मैं पांचाली मैं यज्ञसनी मैं धर्म के लिए जन्मी मैं धर्म के नाम पर अपमानित मैं विधवान योधाओं की आर्या
Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 शुभं करोति कल्याणम आरोग्यं धनसंपदा । शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोsस्तुते । 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की दीपावली (संस्कृत : दीपावलिः = दीप + अवलिः = दीपकों की पंक्ति, या पंक्ति में रखे हुए दीपक) शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन सनातन त्यौहार है, यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है और भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, दीपावली दीपों का त्योहार है..., 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, त्रेता युग में भगवान श्रीराम लंकापति रावण का वध करने के बाद कार्तिक अमावस्या के दिन माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटकर आए थे, भगवान राम के अयोध्या वापस आने की खुशी और उनके स्वागत में दीप जलाकर दिवाली मनाई गई थी...कार्तिक अमावस्या के दिन ही युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, 13 साल का वनवास पूरा कर अपने राज्य लौटे थे,उनके लौटने की खुशी में राज्य के लोगों नें दीप जलाए. ऐसा माना जाता है कि तभी से कार्तिक अमावस्या पर दिवाली मनाई जाने लगी..., 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है,इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत, श्रीकृष्ण और बाल-ग्वाल की आकृति बनाकर पूजा की जाती है, गोवर्धन पूजा करने से घर-संसार में खुशहाली आती है और नकारात्मकता दूर होती है...जैन परंपरा के अनुसार, दीप जलाने की यह प्रथा पहली बार 527 ईसा पूर्व में महावीर के निर्वाण के दिन शुरू हुई, जब महावीर की अंतिम शिक्षाओं के लिए एकत्र हुए 18 राजाओं ने एक घोषणा जारी की कि "महान प्रकाश, महावीर" की याद में दीपक जलाए जाएं..., 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की दिवाली, नई शुरुआत- बुराई पर अच्छाई ,अंधेरे पर प्रकाश की जीत और अज्ञान पर ज्ञान का त्योहार है... 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में दीपावली मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है ? राम की पूजा क्यों नही ? क्योंकि दीपावली उत्सव दो युग सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मी पूजन होता है. भगवान राम भी त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है. इसलिए इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपो से जुड़ा है🙏हिंदू देवी काली को समर्पित यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, अर्थात उसी दिन जिस दिन पूरे भारत में दीपावली का पर्व और लक्ष्मी पूजा मनायी जाती है, यह मान्यता है कि इसी दिन देवी काली 64000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं..., 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 आखिर में झिलमिलाते दीपों की रोशनी से प्रकाशित ये दीपावली आपके घर में सुख- समृद्धि और सफलता लेकर आए 🙏इस दिवाली में हमारी कामना है कि आपका हर सपना पूरा हो और आप सफलता के ऊंचे मुकाम पर हों🙏इस दीपावली पर आपके मन में व्याप्त पञ्च विकारों -समस्त बुराइयों -दोषों -अवगुणों को जला कर राख करें 🙏एवं अपने मन मस्तिष्क में सकारात्मकता -प्रेम -सौहार्द -दया एवं करुणा भाव के दीपक प्रज्वलित करें 🪔प्रभु श्री की कृपा से इस प्रकाश पर्व पर आप को आठों सिद्धियां,नव-निधियां और चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति हो,साथ ही सुख , समृद्धि , आरोग्य , यश , कीर्ति और खुशी की भी अनवरत प्राप्ति हो ,धन, वैभव, यश, ऐश्वर्य के साथ दीपावली पर माँ महालक्ष्मी आपकी सुख सम्पन्नता स्वास्थ्य व हर्षोल्लास में वृद्धि करें, इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ।"🙏माता महालक्ष्मीजी की कृपा से आप के घर परिवार में उत्तम स्वास्थ्य, वैभव, ऐश्वर्य, सुख संपदा, मान सम्मान व धन दौलत के अक्षय भंडार भरे रहे🙏मै और मेरे परिवार की तरफ से:पूरब से *प्रतिष्ठा*, पश्चिम से *प्रारब्ध*, उत्तर से *उन्नति*, दक्षिण से *दायित्व*, ईशान से *एश्वर्य*, नैऋत्य से *नैतिकता*, आग्नेय से *आकर्षण*, वायव्य से *वैभव*, आकाश से *आमदनी* एवं पाताल से *पूँजी*.. दसों दिशाओं से सुख, शांति, समृद्धि एवं सफलता प्राप्त हो, यही शुभकामनाएँ हैं🙏आपको सपरिवार पंचदिवसीय प्रकाश पर्व श्रंखला: नरक चतुर्दशी, दीवाली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज की अनन्त हार्दिक शुभकामनाएं🙏 दीपोत्सव सपरिवार आपके जीवन को सुख, समृद्धि, सुख-शांति, सौहार्द एवं अपार खुशियों की रोशनी से जग-मग करें🙏 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 अपनी दुआओं में हमें याद रखें 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔 शुभं करोति कल्याणम आरोग्यं धनसंपदा । शत्रुबुद्धि विनाशा