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Sabir Khan
मैं दर्द हूँ, तकलीफ हूँ, हर जिस्म पे सवार हूँ। ज़ुल्म,ज़्यादती,ज़ख़्मों की कराह चीख़ पुकार हूँ। तारीख़ मेरी भी हर दौर में अज़ीमतरीन है, अज़ीमतरीन में भीे अज़ीमुश्शान वाक्या-हुसैन है। तड़प उठी थी रेत भीे तलवार के चाक से, दरिया का सीना चिर गया मंज़रे-दर्दनाक से। दहशत के शोले धूप में मिले घुले-घुले, हवा तो जैसे रुक गई नेज़ों की नोंक पे। अर्श भी डरा-डरा, फर्श भीे सहम-सहम, क़ायनात कैद थी, ज़ुल्मी विसात से। ऐ हक़! तुम्हारा परचम फिर भी बुलंद था, नवाशा ऐ रसूल(सल्ल.) जो चाक-चौबंद था। झुकते थे सर ख़ौफ़ की मुर्दा नमाज़ में, ज़िंदा कर गया नमाज़ को वो सर हुसैन का। मैंने भी हॅस कर कह गया- सुन ले,ऐ यजीद! मैं आज जिस सीने में हूँ वो है सीना हुसैन का। माँगी दुआ मैंने- ऐ अल्लाह!ऐ मेरे रब,,,, हर दौर में ज़िंदा रखना तू सीना हुसैन का। ।। मुहर्रम
Narendra Sonkar
गज़ब बाज़ीगर है कलम का मसीहा मरदूद-ए-हरम का ©Narendra Sonkar "मसीहा मरदूदे-हरम का"
Sabir Khan
तारीख में दर्ज दुनिया के सबसे अजीमुश्शान मारका ऐ करबला के माह-मुहर्रम का दिली इस्तकबाल,,, अल्लाह मारका ऐ करबला को याद करने से ज्यादा उस शहादत को दिलों में उतारने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन। मुहर्रम
Ravi Bhushan Thakur
करीब उपरवाले के आओ तो कोई बात बने, ईमान फिर से जगाओ तो कोई बात बने! लहू जो बह गया कर्बला में, उसके मकसद को समझो तो कोई बात बने!! ©Ravi Bhushan Thakur #मुहर्रम #Morning
CK JOHNY
उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। आया था वो इनसान के वेश में रब था जो आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। दिल खोल के लुटा रहा था वो दौलते मुहब्बत कमनसीबी मेरी हम ही दिल खोल न सके। औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश बावजूद उसके समझाने के सीधा कर न सके। सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। मसीहा