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Murari Shekhar
Roshan Sah
दो गज की दूरी हैं , फाइन हमसे लेकर भरते तिज़ोरी हैं । पर क्या करे साहब ??? ये कोरोना ने भी खेली राजनीति हैं... इस देश में सत्ता पाना बहुत जरूरी हैं । स्कूल में बैठा कोरोना हैं , वहीं से चिल्लाना हैं... ज्ञान से पहले सरकार बनाना हैं । देश हमारा हैं ... हमें कोन सा अपनी बात खुद पर लागू करना हैं !! जनहित में जारी हैं कोरोना का नोटिस आया हैं इस देश में राजनीति खेलने में मजा आता हैं । इसीलिए रैलियों में #mask वायरस को लगाना हैं । #bangal
Divyanshu Pathak
अण्ड-बण्ड कहना अब ट्रेंड हो गया है। मित्र बदल कर अब तो फ्रेंड हो गया है। फिसल जाती है ज़ुबान पर काबू नहीं! कहीं भेजाना था कहीं सेंड हो गया है। वह तो अब अफ़सर है कोई बाबू नहीं। दल बदलके फ़िर से अटेंड हो गया है। अब कहाँ मिलता है वो दौर ए सऊर ! बूटा-बूटा भी अब तो टेंड हो गया है। सुन कर मौज भी ख़ूब ली याद है ना! चुनावी रैलियों में म्युटेण्ड हो गया है। #मुहावरेवालीरचना_295 👉 अण्ड-बण्ड कहना मुहावरे का अर्थ ---- भला-बुरा कहना ------–------------------------------------------------------------
अनुज
फूलों के साथ खर पतवार बिक रहा है मीडिया से लेकर पत्रकार बिक रहा है बोली लगाने वालों फीता तुम बांध लो शहर शहर ढूंढ़ो सरकार बिक रहा है अब तो अस्पताल में बिमार बिक रहा है वोटर के वोट से अधिकार बिक रहा है फिल्मी सितारों की भी अपनी है चांदनी पैसा मिले तो ठीक वरना उधार बिक रहा है संसद के बाहर देखो हथियार बिक रहा है बिक के जो छप रहा अखबार बिक रहा है हर एक रैलियों में बदले जो वेश भूषा मंत्री जी का बदला अवतार बिक रहा है मन में उफनती टींस और ज्वार बिक रहा है बिक चुका पहले वो बार बार बिक रहा है मैं तो ये सोंच कर तब सदमे से मर गया जब घर बार से लेकर संसार बिक रहा है ©अनुज फूलों के साथ खर पतवार बिक रहा है मीडिया से लेकर पत्रकार बिक रहा है बोली लगाने वालों फीता तुम बांध लो शहर शहर ढूंढ़ो सरकार बिक रहा है अब तो
Vandana
🙏❣🥰🌹 उसकी हड्डियां इतनी मजबूत थी कि बड़े-बड़े सफर तय कर गया वह खुद को पल पल हुनर के हवाले करता गया,,, जुनून इस कदर था कि आंखों की रोशनी कम हुई त
Rana Vansh mani
भौये ढीली, गर्दन झुकी, इतना परेशान क्यों है? सब इनसे से खेलते हैं,ये इतना आसान क्यों हैं? तुम्हारी रैलियों में हिंसा का खुला स्थान क्यों है? तुम भारतीय हो तो,नारों में खालिस्तान क्यों हैं? Read below...... in caption. सब इनसे से खेलते हैं, ये इतना आसान क्यों हैं। क्यों तुम ठिठुरती सर्दियों में सड़कों पर उतरे हो। क्यों अपनी ही सरकार से नाराज हो यूँ उखरे हो
Nisheeth pandey
शीर्षक - निःस्वार्थ प्रेम ➖➖➖➖➖➖➖ मैं यादों की गठड़ी खोलूँ तो, तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ बहुत याद आते हैं.... मैं गुजरे पल के ख्यालों में डूबू तो, मेरे हाथों में तुम्हारे हाथ बहुत याद आते हैं.... अब जाने कौन सी महलों की नगरी में, रंग-रैलियों में भूल गयी मुद्दत से....😔_ मैं यादों की रात में जागूँ तो , तुम्हारे शब्दों की छुअन बहुत याद आते हैं.... तुम्हारी बातें थीं फूलों की हँसी जैसी, लहजे तेरे खुशबू जैसे थे..… मैं वीरानगी की तन्हाई में टहलूँ तो, तुम्हारी उंगलियों की छुअन मेरी उंगलियों को बहुत याद आते हैं.... तुम्हारी चाहत बदल गयी, एक नए वफ़ा में ढल गयी..…. अब तुम्हें नए फितूर से फुरसत नही, अब तुम्हें मेरी मोहब्बत की जरुरत नही.. किये वादे कसमें वफा की बातें गुम हो गये हैं, "तू" अब "तुम" नहीं रहीं "आप" हो गई है... मैं यादों की गठड़ी खोलूँ तो, तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ बहुत याद आते हैं.... तूम बिन रूठा रूठा उम्र रिसता जा रहा है, जीवन रंगहीन उबाऊ किताब सा बन रहा है... कभी तुम्हारी याद में हर्ट अटैक सा दर्द दे जाती है और कभी यादों की लतीफ़ा होठों पर स्माइल दे जाती है ... जानता हूं अब तूम गुल्लर की फूल हो गयी मेरे लिये, जानता हूँ तुम्हें पाना क्या देखना भी सम्भव नहीं मेरे लिये ... जी लो तुम अपने पलों को हस के मेरी जान, फिर लौट के निःस्वार्थ प्रेम में फ़ना होने के जमाने नहीं आते..... *निशीथ* ©Nisheeth pandey शीर्षक - निःस्वार्थ प्रेम ➖➖➖➖➖➖➖ मैं यादों की गठड़ी खोलूँ तो, तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ बहुत याद आते हैं.... मैं गुजरे पल के ख्यालों
yash mahar
अकेला?¿😊(solitude) पूरी कविता caption में पढे। सार- कविता *अकेला* उन लोगो के लिए है जो हमेशा अकेला खड़े रहने से डरते है ,उन्हें सहारो में चलने की आदत सी हो गयी है,वो बिना किसी के साथ कोई
cursedboon
अजब ही दस्तूर है इस दुनियाँ का...... अजब ही दस्तूर है इस दुनियाँ का जहाँ इंसान की पहचान भी उसके काम से हुआ करती है, उस भाषा से मैं आज भी अनजान हूँ जिसमें शब्द कुछ और आंखें कुछ औ
Jyoti choudhary
अपने ही अपनों के दुश्मन बने बैठे हैं घर घर में ही नक्शली बन के बैठे हैं लोगों के जाने क्या हो गया है देश के रखवालों को ही मार कर बैठे हैं इंसान इतना राक्षस बन बैठा हैं अपनों को ही घेरकर गोली दाग के बैठे हैं शायद जलियावाला बाग का इतिहास वापस रचा है पर इस बार दुश्मन भी अपने ही बन बैठे हैं CRPF जवानों की शहादत पे कौन सा इंसाफ होगा क्या अबकी बार कोई राम कृष्ण महाकाल के जैसा इंसाफ होगा। -📝Jyoti Choudhary (monu) आप सभी को उन शहीदों के लिए प्रार्थना करनी होगी उस भगवान से कि इंसान को कभी ऐसे निर्दयता मत देना। आप सब को क्या लगता है? इसमें इंसान की गलती