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Manju kushwaha
White वो बच्चे जो निकले थे कभी कमाने के लिए फिर लौटे ही नहीं वापिस घर आने के लिए ll मन में इक ख़लिश दबाये लौटे जो कभी उस गली.. वो आए तो बस अपनी शानो-शौकत दिखाने के लिए ll वो जाले से लिपटा मकान जो सुन्दर घर हुआ करता अब वो ही करते हैं बातें उसे बेच जाने के लिए ll विरान पड़े हैं बाग बगीचे और गुलिस्तान सारे.... कि कोई आता ही नहीं उन्हें फिर से बसाने के लिए ll अब शौकीन हुए हैं सभी ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं के जर्जर है गाँव का वो घर कौन आए उसे सजाने के लिए ll मंजू कुशवाहा ✍️🌹💞 ©Manju kushwaha #शहर
Sunil Kumar Maurya Bekhud
वही शाम वही रात वही तारे हैं मगर मायूस दिल वही नजारे हैं लगा था कल जंग जीत कर आए आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं मेरी जहां से खफा हो चांद गया गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल
Dr. Alpana suhasini
न जाने क्या ज़माना चाहता है, मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है। मेरी मासूमियत को छीन कर क्यों, मुझे शातिर बनाना चाहता है. अभी कोई कमी बाक़ी है शायद, जो फिर से आज़माना चाहता है। मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से, उजाले में वो आना चाहता है। निगाहों से लगे सीधा जिगर पर, वो इक ऐसा निशाना चाहता है । परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश, नशेमन फिर बसाना चाहता है। अल्पना सुहासिनी ©Dr. Alpana suhasini #गजल#गजल_सृजन #
Sunil Kumar Maurya Bekhud
गजल करवट बदल बदल कर क्यूं रात बितातें हैं इक नाम क्यों जमीं पर लिखतें हैं मिटाते हैं मालूम है डगर में लुट जातें हैं मुसाफिर गर लुट गए तो फिर क्यों अब शोर मचाते हैं कट कर पतंग कोई आती न लौट करके धागे में बांध फिर क्यूं खुशियों को उड़ाते हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल
Anup Kumar Gopal
मैं तेरे शहर में आया हूँ । रंगीन तोहफा लाया हूँ । हो सके तो कबूल कर लो- कितने जतन से सजाया हूँ । ©Anup Kumar Gopal #Holi मैं तेरे शहर में