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Naresh Kumar khajuria
White ऑनलाइन ०००००० ऑनलाइन मत आना आज मुझे देखने छत पर जाना स्क्रीन मुझे नहीं दिखा सकती पूरा चांद मुझे पूरा दिखा सकता है शायद चांद कहे तुमसे मेरे बारे में --- मैं छत पर हूँ और एक किस्सा सुना रहा हूँ चांद को - एक पगली है स्क्रीन पर रहती है स्क्रीन में हंसती है स्क्रीन में रोती है आंखें सुजा लेती है.... उसको कहना मेरे बारे में प्रेम में मेरी आँखें कभी जलती नहीं मैं चांद के जमाने से प्रेम करता हूँ स्क्रीन का जमाना आज आया। ©Naresh Kumar khajuria चांद पर प्रेम
चांद पर प्रेम #Poetry
read moreSita Prasad
White लेेखन सौन्दर्य जब भी लिखी दास्तान दिल की कलम ने मेरा बखूबी साथ निभाया किसी ने कहा' वाह क्या बात है! ' किसी को मेरा नज़रिया न भाया हैं दिल की बातें भी अजीब इस दरिया में बस कुछ ही हैं नहाते हर एक को दृश्य सुन्दर हैं भाते बिरला ही कोई मनमोहक दिल हैं पाते स्वांग न रचना न बातें बनाना सीधी सी बात है दिल से दिल है मिलाना न अपना चातुर्य किसी को बार- बार दिखाना निर्मल हृदय पूर्ण सामने वाले की बात है समझना तुम कलिमल रहित मुझे अपनाना न मैं तुम्हे परखकर दोस्ती निभाऊँ मेरा तो बस काम ही है लिखना पाठक व दोस्त के घायल मन को सहलाना।। सीता प्रसाद ©Sita Prasad #flowers #कविता #लेखक #लेखन
Dr Wasim Raja
White तुलसी दास रचित रामचरितमानस की पंक्ति सबको है भाई। हां ''रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई''। मानव है सब, ऊंच- नीच के भेदभाव से होती है जग हंसाई। इंसान है इंसानियत हो,धरा पर सब आपस में है भाई भाई। राम नाम जपना पराया माल अपना अंध भक्तों की भीड़ है छाई। सुख शांति समृद्धि के लिए पूरे विश्व में भारत की हो अगुवाई। अस्त्र-शस्त्र चल रहे सर्वत्र, अब ढाई अक्षर प्रेम की बरसात कीजिए रघुराई। दशरथ पुत्र श्री राम के जन्मदिन,रामनवमी की ससको हार्दिक बधाई।। ©Dr Wasim Raja रामनवमी पर समर्पित
रामनवमी पर समर्पित #कविता
read moreअमित कुमार
White इंसान अगर बांध ना बनाए,वो नदियों के जलधारा को मोड़ेगा कैसे । दूसरों से ज्यादा खुद पर भरोशा हो,और कोई अपना दिल तोड़ेगा कैसे।। ©Amit खुद पर भरोशा
खुद पर भरोशा #शायरी
read moreGurudeen Verma
शीर्षक- हाँ, तैयार हूँ मैं ---------------------------------------------------------- हाँ, तैयार हूँ मैं, क्योंकि--------------, बांध रखा है मैंने अपना सामान चलने को, जूतें भी पॉलिश कर लिये हैं चलने को, और कपड़ें भी बदल लिये हैं मैंने चलने को। हाँ, तैयार हूँ मैं, लेकिन मैं तुमसे पूछता हूँ, तुम क्यों कर रहे हो ऐसा ? क्या वहाँ तुम्हारा वश चलता है ? क्या उन्होंने दिया है तुम्हें सन्देश मेरे लिए ? हाँ, तैयार हूँ मैं, लेकिन मिट नहीं पा रही है अभी तक, आँखों में वो पुरानी तस्वीरें उनकी, निकल नहीं पा रही है दिल से अभी तक, उनकी वो नुकीली चुभती हुई बातें। हाँ, तैयार हूँ मैं, लेकिन डरता हूँ मैं वहाँ आने से, और नहीं करता हूँ उन पर विश्वास, मैं अब दुःखी नहीं रहना चाहता, मुझको अब आगे बढ़ना है। और इसीलिए, हाँ, तैयार हूँ मैं , क्योंकि--------------------। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #लेखन