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Anupam Mishra
मुहब्बत किसी हँसीन दिलरूबा सी होती है, जो झिलमिलाहट और तिलमिलाहट पहली नज़र में होती है, वक्त के साथ वह ढलती जाती है; कुछ पल को पलके झपकती नहीं हैं, और फिर जैसे आदत सी हो जाती है, दूरी बिलकुल सही नहीं जाती है, पर वक्त उसे भी साथ अपने ले जाती है। #मुहब्बत #मोहब्बत
Ganesh Din Pal
तलवार कितनी ही तेज क्यों ना हो कलम का मुकाबला नहीं कर सकती। मुहब्बत इतनी ही नई क्यों ना हो पुराने को टक्कर नहीं दे सकती । ©Ganesh Din Pal #तलवार या मुहब्बत.....
Ganesh Din Pal
कसूर क्या कहूं ? मैंने तो मोहब्बत में हक जताया था, अहसास तो अब हुआ उस बेवफा का वह अपना नहीं पराया था। ©Ganesh Din Pal #कसूर या मुहब्बत.....
Rahul Singh Bhardwaj
Tum se ek shikayat hai उनकी झूठ की गहराई क्या बतायें साहब! वो तो अपनी मजबूरी को भी मुहब्बत बताती है!! #NojotoQuote मुहब्बत या मजबूरी??
Md Ghulam
मुहब्बत या इश्क़ दिल में तड़प है ,पर कोई दर्द नहीं । रातो को उठ-उठ कर रोता हूं,पर कोई गम नहीं । हा उसके सिवा कोई और दिखता नहीं, उसके सिवा और कुछ सोचता ही नहीं, मुझे मालूम ही नहीं अब तक, ये मुहब्बत है मेरा या इश्क कोई । । शाम को देखा था उसे, रात को निन्द नहीं आई । दिन इधर-उधर भटक के गुजार लिया, रात को फिर निन्द नहीं आई । बेचैन यूँ ही उनकी खयालो में बैठा रहा कई दिनों तक, जब हकीम को बुला कर नब्ज दिखवाया, तो कहा ये कोई रोग नहीं, ये मुहब्बत है या इश्क कोई। कुछ पल मिले थें उसके साथ साथ चलने की । साथ नहीं पर आस पास रहने की । सोचा इसी दरमियां कर लू इजहार अपनी मुहब्बत की । पर न आई लब पे यारो बात मुहब्बत की, वो उधर हो गई हम इधर हो गए, बस यही हालात रही अपनी इश्क या मुहब्बत की। हा थोड़ी गुफतगु होई तो थी, कुछ हमने कहा था कुछ उसने भी कही तो थी, चोट लगी थी उन्हें,तो दिल में बेचैनी हुई तो थी, थक हार कर जब बैठा था उसके पास, बेचैन कुछ वो भी लगी तो थी, हम दोनों के दरमियां बस यही रिश्ते है, अब किसे पता ये मुहब्बत है या फिर इश्क कोई। रचनाकार---- गुलाम नबी ©Md Ghulam मुहब्बत या इश्क़ कोई #MySun
Md Ghulam
• दिल में तड़प है ,पर कोई दर्द नहीं । रातो को उठ-उठ कर रोता हूं,पर कोई गम नहीं । हा उसके सिवा कोई और दिखता नहीं, उसके सिवा और कुछ सोचता ही नहीं, मुझे मालूम ही नहीं अब तक, ये मुहब्बत है मेरा या इश्क कोई । । शाम को देखा था उसे, रात को निन्द नहीं आई । दिन इधर-उधर भटक के गुजार लिया, रात को फिर निन्द नहीं आई । बेचैन यूँ ही उनकी खयालो में बैठा रहा कई दिनों तक, जब हकीम को बुला कर नब्ज दिखवाया, तो कहा ये कोई रोग नहीं, ये मुहब्बत है या इश्क कोई। कुछ पल मिले थें उसके साथ साथ चलने की । साथ नहीं पर आस पास रहने की । सोचा इसी दरमियां कर लू इजहार अपनी मुहब्बत की । पर न आई लब पे यारो बात मुहब्बत की, वो उधर हो गई हम इधर हो गए, बस यही हालात रही अपनी इश्क या मुहब्बत की। हा थोड़ी गुफतगु होई तो थी, कुछ हमने कहा था कुछ उसने भी कही तो थी, चोट लगी थी उन्हें,तो दिल में बेचैनी हुई तो थी, थक हार कर जब बैठा था उसके पास, बेचैन कुछ वो भी लगी तो थी, हम दोनों के दरमियां बस यही रिश्ते है, अब किसे पता ये मुहब्बत है या फिर इश्क कोई। रचनाकार---- गुलाम नबी ©Md Ghulam मुहब्बत या इश्क कोई #IntimateLove
Benam Parindey
मुहब्बत झूठी है या सच्ची, कोई हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाये ये कौन नहीं चाहता, कोई हमें अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाये ये कौन नहीं चाहता, हमारी इस ज़िन्दगी में भी कोई प्यार का पैगाम लेकर आया था, जिसकी कलम की स्याही तो पक्की थी पर जल्दी खत्म हो जाये, ये किसे मालूम, जो पन्ने इस ज़िन्दगी के भरते गए उसपे हमारी ये शायद झूठी मोहब्बत थी जो हम पहचान ना सके, जो पन्ने खाली रह गए थे जो भर ना सके लेकिन ये मुहब्बत सच्ची थी, जो हम अब पहचान सके, वो कहीं कोने में बैठ कर अपनी मुहब्बत की दास्तां लिखती होंगी, या फिर कहीं दूसरी दास्तां लिखने में मज़बूर होगी , और में उसके इंतज़ार में राह पे राह बुनता गया, कुछ राहों पर हमारी राहों के पन्ने बिखरे हुए थे, कुछ राहें सुमसान थी, की वो इन राहों को पहचान पायेगी की नहीं, कई सदियों के बाद भी उसकी उसकी ना कोई छनछनाहट, ना कोई आवाज़, ना कोई पैगाम, ये राहें भी अब राह देखते -देखते बदल चुकी है, इस इंतज़ार से मेरा भी एक है सवाल है, ये मुहब्बत सच्ची है या झूठी. मुहब्बत झूठी है या सच्ची
Md Ghulam
• दिल में तड़प है ,पर कोई दर्द नहीं । रातो को उठ-उठ कर रोता हूं,पर कोई गम नहीं । हा उसके सिवा कोई और दिखता नहीं, उसके सिवा और कुछ सोचता ही नहीं, मुझे मालूम ही नहीं अब तक, ये मुहब्बत है मेरा या इश्क कोई । । शाम को देखा था उसे, रात को निन्द नहीं आई । दिन इधर-उधर भटक के गुजार लिया, रात को फिर निन्द नहीं आई । बेचैन यूँ ही उनकी खयालो में बैठा रहा कई दिनों तक, जब हकीम को बुला कर नब्ज दिखवाया, तो कहा ये कोई रोग नहीं, ये मुहब्बत है या इश्क कोई। कुछ पल मिले थें उसके साथ साथ चलने की । साथ नहीं पर आस पास रहने की । सोचा इसी दरमियां कर लू इजहार अपनी मुहब्बत की । पर न आई लब पे यारो बात मुहब्बत की, वो उधर हो गई हम इधर हो गए, बस यही हालात रही अपनी इश्क या मुहब्बत की। हा थोड़ी गुफतगु होई तो थी, कुछ हमने कहा था कुछ उसने भी कही तो थी, चोट लगी थी उन्हें,तो दिल में बेचैनी हुई तो थी, थक हार कर जब बैठा था उसके पास, बेचैन कुछ वो भी लगी तो थी, हम दोनों के दरमियां बस यही रिश्ते है, अब किसे पता ये मुहब्बत है या फिर इश्क कोई। रचनाकार---- गुलाम नबी ©Md Ghulam मुहब्बत या इश्क कोई #IntimateLove