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Sandeep A More
*फसवी वात* खळगी ची झालीय हो पनती, हीला तेलाची गरज नाही, आज भुकेनचं हीची वात पेटती.! दरिद्रीच्या रोज मशाली पेटती, आग लावन्याची गरज नाही, आज भुकेनचं हीची वात पेटती..! व्याकुळतेने रोजच दार तुटती, दिव्याला उंबरठ्याची गरज नाही, आज भुकेनचं हीची वात पेटती..! सरनावर जशी आग पेटती, मेनाची इथे गरज नाही, आज भुकेनचं हीची वात पेटती..! -संदीप मोरे,नाशिक #फसवी वात #fake event #sandeep more
PS T
नाम अन्नदाता सब कुछ फोकट में पाता ! खाद, बीज, बीमा, कर्ज, ब्याज,कर्जमाफी सब कुछ फ्री में पाता है और अपनी फसल का दादागीरी से MSP पाता है और फिर भी अन्नदाता कहलाता है, वाह #yqdid
sandy
मत देण्यापूर्वी ...? काही प्रश्न स्वतःला विचारा...? नोकरी टिकविण्याची खात्री वाटते का ?पगारवाढ होते का? नोटाबंदी आणि जीएसटी नंतर तुमचा व्यवस
रजनीश "स्वच्छंद"
मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद है मुझको, मुझको बोने से पहले, वो किसान क्यूँ रोया था। हल से हुआ श्रृंगार धरती का, पर पानी नहीं था खेतों में, कैसे उसने मुझको बोया था। गर्मी में हल पे हाथ रखे, दो बैलों के संग, धरती की मांग सजाया था। पतली उभरती क्यारियों में, डाल पसीना अपना, उसने मुझे उपजाया था। किसने उसकी बात सुनी, अर्धनग्न वो रहा मगर, कब हिम्मत उसने हारी थी। लगन लिए, निःस्वार्थ भाव, झुलसाती गर्म हवाओं में, लथपथ रोएं की क्यारी थी। साल दर साल रहे बीतते, सत्ता की सीढ़ी बन, इसने सबको सत्तासीन किया। नाम रहा नारों में इनका, इश्तेहार और कागज़ पर, सबने इनको दीनहीन किया। मेरे पालन पोषण को भी, खाद उर्वरक, कहाँ कब इसे मिले। सब्सिडी का नाम बड़ा था, इसने भी सुना, बस कागज़ पर इसे मिले। मैं बड़ी हुई, गदरायी थी, हुई कटाई, मंडी पहुंची बन्द बोरे में। दाम गिरा था, मोल नही था, बांध रहा, पसीना वो पाजामे के डोरे में। आंख का आंसू, माथे का पसीना, अद्भुत संगम, किससे कहता, क्या क्या कहता। उसकी मेहनत, बेमोल पड़ी, हर कोई, उसपे बन एक गिद्ध झपटता। लिया कर्ज़ था साहूकार से, मूल तो छोड़ो, फसल ब्याज भी दे न पायी। कर्जमाफी का शोर बड़ा था, पर सरकार, असल आज भी दे न पायी। हारा, सबसे हार गया वो, क्या करता, सब होकर भी नँगा पड़ा था। राहें बदलीं, किसी ओर चला, पेड़ में गमछा, गमछे में किसान टंगा पड़ा था। मैं एक गेंहूँ की बाली, क्या करती, मैंने पालनहार खोया था। तुम कहते इंसां ख़ुद को, तुम ही बोलो, क्या तेरा दिल ना रोया था। ©रजनीश "स्वछंद" मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद ह
Naresh Chandra
कृपया अनुशीर्षक मे जरूर पढ़े एक टैक्स पेयर का दर्द 🙏धन्यवाद🙏 ©Naresh Chandra न्यायपालिका Supreme Court से विनम्र निवेदन *देशहित के लिए हर एक को भेजें* *तुम हमें वोट दो; हम तुम्हें-* ... लैपटॉप देंगे .. ... स्कूटी दे
Naresh Chandra
✍ *बेबाक कलम* ✍ *कड़वा सच*: कांग्रेस के हाथ की कठपुतली बने सिख किसान जो कि इस समय दिल्ली में धरना देने पर अड़े हुए है़ ! यदि वे 1984 को भी ऐसे ही दिल्ली कूच किए होते तो उस समय 7000 निर्दोष सिखों की हत्या होने से बच जाती... *सत्यमेव जयते* 😫😫 *हमारा देश तीन तरफ से समुद्र (नमक) से घिरा हुआ है,* और *चारों तरफ से नमकहरामो से* 🤔🤔🤔 सब कहते देश में मोदी ने भुखमरी ला दी परन्तु ,जैसे ही बीजेपी के खिलाफ आंदोलन होता है, पैसो की मशीन लग जाती है, *ना खाने की कमी होती, ना कंबल ना पेट्रोल डीज़ल की* 😱😱 कृपया पूरा अनुपूरक मे पढ़े 🙏 ©Naresh Chandra ✍ *बेबाक कलम* ✍ *कड़वा सच*: कांग्रेस के हाथ की कठपुतली बने सिख किसान जो कि इस समय दिल्ली में धरना देने पर अड़े हुए है़ ! यदि वे 19