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chintu kumar

क्रांतिकारी शायरी

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रात नहीं ख्वाब बदलता है,
मंजिल नहीं कारवाँ बदलता है;
जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि,
किस्मत बदले न बदले ,
पर वक्त जरुर बदलता है।
    चिंटू कुमार क्रांतिकारी शायरी

Pratap Saran

क्रांतिकारी भगत सिंह पर शायरी

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Bhera Ram Choudhary

क्रांतिकारी

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Sarvaiya Dharmesh

क्रांतिकारी

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हम तो वो है जिसे
 गुलामी में भी
"आजाद"
 कहते थे।
 चंद्रशेखर आजाद
       ...comrade क्रांतिकारी

Modern Gyani

Dinesh kagra (DK)

(लाचार मजदूर)

गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।
भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है।

घर से निकला सोचा ना था,की ऐसा वक्त भी आयेगा।
रोटी के बदले फ़ोटो खीचकर, वो गरीब का मजाक बनाएगा।
पैदल ही घर को चल पड़ा, अपनो से मिलने का शरूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

जो देश छोड़कर निकल लिए,आज उनपे रहमत जारी है।
जिनका खून देश की नींव में है,आज वक्त भी उनपे भारी है।
भूख से दम ना तोडेंगे हम, साथ अपनो के मरणा मंजूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

कोई दे गया झूठी तस्सली, किसी ने अपनी रोटी शेखी है।
एक रोटी पे दो वक्त गुजारे, हमने वो गरीबी देखी है।
गरीब को मरते उसके हाल पर छोड़ा, ये दुनिया का दस्तूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

दो छोटे बच्चे गोद मे है,माँ,बहन के पैर में छाले है।
वो बच्चे भूखे रो रहे है, जो प्यार से हमने पाले है।
मरे के मुँह में घी लगाते, ये दुनिया का उसूल है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

कुचला पड़ा परिवार किसी का,किसी के भाई ने दम तोड़ा है।
सीना किसी का कटा पड़ा है, किसी से मंजिल ने मुँह मोड़ा है।
हर कोई दर्द को देख रहा है, पर लगता सबको फिजुल है।
गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।
भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है।

                             #DK #लाचार_मजदूर #क्रांतिकारी

AAP TAK

क्रांतिकारी आंदोलन पार्ट2 #पौराणिककथा

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motivation

#विद्रोही क्रांतिकारी कवि

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2 Years of Nojoto क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ
जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में
ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं
और जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकली
जो खुले में पसर गयी है माँ मेदिनी की तरह
-विद्रोही #विद्रोही
क्रांतिकारी कवि

AAP TAK

क्रांतिकारी आंदोलन पार्ट1 #पौराणिककथा

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अशोक द्विवेदी "दिव्य"

क्रांतिकारी की दरकार सबको है 
पर खुद के नही पड़ोसी के घर मे। #क्रांतिकारी #घर #पड़ोसी
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