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HintsOfHeart.

kumaarkikalamse

मेरी जिन्दगी में रिश्ते बनाने से ज्यादा उन्हें जीना जरूरी है पर आज लोग इसका मोल नहीं देते..! बहुत दुःख होता है इसका पर क्या करें..! चतुर्भु #निभाना #Kumaarsthought #kumaaronrelations

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कट  रही  है  जिंदगी  कभी
गिनने  में, कभी   गिनाने  में, 
मैं कहता हूँ  ख़ुद  से अक्सर
क्या रक्खा है सब  जताने में!

रिश्ता बनाओ तो फिर निभाओ
वरना  नहीं ज़रूरत  दिखावे की, 
मैं  रिश्ता  जीता  हूँ, जब बनाता
क्या  रक्खा है बस आज़माने में!

दोस्ती, दोस्त  जिंदगी और साथ
चतुर्भुज  की  जैसे  भुजाएं चार, 
हर कोण का मान समान हो 'कुमार' 
क्या रक्खा है बीच में विकर्ण बनाने में!  मेरी जिन्दगी में रिश्ते बनाने से ज्यादा उन्हें जीना जरूरी है पर आज लोग इसका मोल नहीं देते..! बहुत दुःख होता है इसका पर क्या करें..!

चतुर्भु

Swarima Tewari

Mathematical hug day❤️📏📐Repost😃 एक बिंदु से शुरू करें, घूमें और इक वृत्त बनाये, वृत्त जहाँ ख़तम होता है, वहाँ तलक़ घूमते हैं, आओ वहीं फिर #hindiquotes #yqbaba #hugday #hindipoetry #yqdidi #yqhindi #pc_google

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"आओ कि फिर गले मिलना है तुमसे!"
(full in caption) Mathematical hug day❤️📏📐#Repost😃

एक बिंदु से शुरू करें, 
घूमें और इक वृत्त बनाये,
वृत्त जहाँ ख़तम होता है, 
वहाँ तलक़ घूमते हैं,
आओ वहीं फिर

Shaarang Deepak

ShrimadBhagwadGeeta Chapter (01) Shlok (08) || श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानार्जन श्रृंखला अध्याय (01) श्लोक (08) Namaskar. This verse/ shlok is #Krishna #Mahabharat #Arjuna #parth #समाज #geeta

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N S Yadav GoldMine

#rush माधव। यह मेरा पुत्र विकर्ण जो विद्वानों द्वारा सम्मानित होता था भूमि पर मरा पड़ा है पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅महाभारत: स्‍त्री पर्व एकोनविं #प्रेरक

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CM Chaitanyaa

सायली छंद में रचित कृति : स्वर साध्य हैं जो आराध्य हैं, रहते सदा विशुद्ध! #yqbaba #yqdidi #yqhindi #संगीत #yqpoetry #bestyqhindiquotes #चैतन्याछंदकृति

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स्वर
साध्य हैं
  जो आराध्य हैं, 
रहते सदा
 विशुद्ध! 

(अनुशीर्षक में)  सायली छंद में रचित कृति :

स्वर
साध्य हैं
जो आराध्य हैं, 
रहते सदा
विशुद्ध!

N S Yadav GoldMine

#WoRaat है वासुदेव श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है पढ़िए महाभारत !! 🙏🙏 महाभारत: स्‍त्री पर्व एकोनविंष अध्याय: #पौराणिककथा

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Jupiter and its moon

कृष्ण नहीं आते हर युग में! पांच पति पांचाली के अभिमान बचाने ना आए। अपमानित होती नारी का सम्मान ना बचाने ना आए।। भीष्म द्रोण गुरू कृपाचार्य #कविता

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पांच पति पांचाली के अभिमान बचाने ना आए।
अपमानित होती नारी का सम्मान ना बचाने ना आए।।
भीष्म द्रोण गुरू कृपाचार्य सब मान बचाने ना आए।
वीर हुए कायरतम अबला आन बचाने ना आए।।

केश पकड़ जब रजस्वला स्त्री पर अत्याचार हुआ।
स्वजन बंधू सब मूक बने पंचाली संग व्यभिचार हुआ।।
उपहास हुआ हर नारी का सब न्याय धर्म पर वार हुआ।
निर्लज्ज सभा के भागी हर एक जन का तय संहार हुआ।।

थे विकर्ण जैसे भी जिसने पाप सभा में सत्य कहे।
विदुर सरीखे नितिकार सब सभा त्याग कर चले गए।।
धृतराष्ट्र सम अंधा राजा दूर्योधन सा अत्याचारी।
था पाखंड धर्म का या फिर थी पांडव की लाचारी।।

जब जब वस्त्र हरण को कोई दुशासन आगे आए।
तव आन मान अधिकारों पर जब जब अंधेरा छा जाए।।
हे स्त्री! तुमको निज रक्षा के हेतु स्वयं जलना होगा।
चंडी काली बनकर निशदिन महिषा मर्दन करना होगा।

तुम जननी सब जग की भर्ता निज शंका का त्याग करो।
वस्त्र हरण को बढ़ते हर दुशासन का तुम नाश करो।।
कृष्ण नहीं आते हर युग में अबला आन बचाने को।
सबला बन तुम स्वयं लड़ो निज आन और मान बचाने को।।

©Jupiter and its moon कृष्ण नहीं आते हर युग में!

 पांच पति पांचाली के अभिमान बचाने ना आए।
अपमानित होती नारी का सम्मान ना बचाने ना आए।।
भीष्म द्रोण गुरू कृपाचार्य

कवि राहुल पाल 🔵

~~((( गणित की विधा में प्रेम )))~~ मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी #Nojotochallenge #Rahul #कविता #nojotopoetry #nojotohindi #nojotoquotes #nojotoapp #nojotonews #nojotohindishayari

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मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी 
प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे 
इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी 
उनकी संगामी रचना में हम ढ़लते रहे !१!
वो प्रमेय जैसे हमको सताते रहे 
हर एक बिंदु पर चाप हम लगाते रहे 
व्यास की आस थी वो त्रिज्या बने ,
हम परिधि पर बस चक्कर लगाते रहे !२!
जब भी सोचा उन्हें संग जोड़ने को 
वो लगातार हमे खुद से घटाते रहे ,
जाने कैसे वो दिन प्रतिदिन दूने हुए 
हम गुणनखण्ड में ही टूट जाते रहे !३!
वो न देखे हमारी तरफ अब कभी ,
साथ हर बिदु का उनसे निभाते रहे,
वो थे हमारे हर केंद्र का केंद्र बिंदु ,
    बस हर डगर डग को उनसे मिलाते रहे ..!४!
जब मैं न्यून बना,वो अधिकतम बने 
कोंण सम्भव दशा से दूर जाते रहे 
विकर्ण थे मेरी इस जिंदगी का जो 
   उनसे खुद को कई बार हम मिलाते रहे  !५!
वो अंक बने और मैं बना शून्य सा ,
वो दशमलव को लगा भूल जाते रहे 
प्यार के ब्याज का जब बंटवारा हुआ 
लाभ में वो रहे,हानि को खुद पाते रहे  !६!
तब सरल कोंण सी थी उनसे नजरें मिली 
आज समकोण से वो नजरें झुकाते रहे ..
मैं बिना लक्ष्य की "राहुल "शब्द रेखा बना
बस अनन्त यादें अनन्त तक ले जाते रहे  !७! ~~((( गणित की विधा में प्रेम  )))~~

मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी 
प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे 
इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी 
उनकी

रजनीश "स्वच्छंद"

मेरी प्यासी कलम।। कलम घूमती प्यासी थी, दवात भरी रोशनाई थी। बिन माचिस बिन बारूद के इसने आग लगाई थी। कौन जला था, कौन बचा था, कौन तटस्थ मूक-द #Poetry #kavita

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मेरी प्यासी कलम।।

कलम घूमती प्यासी थी, दवात भरी रोशनाई थी।
बिन माचिस बिन बारूद के इसने आग लगाई थी।

कौन जला था, कौन बचा था,
कौन तटस्थ मूक-द्रष्टा था।
किस मुख बदली, किस मुख बारिश,
कौन बैठ पार्श्व गरजता था।
शोर जो कानो तक ना पहुंचा,
चीर हृदय वो जाता था।
लील रहा जो सूर्य था मुख में,
वो दानव या बिधाता था।
उन्मुक्त कलम लिख पाती कैसे,
मोहपाश ने जकड़ा था।
विकर्ण बना था मैं रण में,
अंतर्मन चलता झगड़ा था।
किसने किया था नंगा मुझको किसने लाज बचाई थी।
बिन माचिस बिन बारूद के इसने आग लगाई थी।

बेधड़क कलम तब चलती थी,
जब तक जग से अनजाना था।
वो बचपन का अल्हड़पन,
जब तक ना हुआ सयाना था।
आज जो दुनिया देखी है,
कलम कांपती शब्दों से।
वो इसकी क्या सुन लेंगे,
जो अनभिज्ञ रहे प्रारबधों से।
खुली आंख जो सोया है,
उसको क्या घड़ी जगाएगी।
जो बदली गरजती विचर रही,
कब बूंदों की झड़ी लगाएगी।
तम की बदली घनघोर रही, कब रौशनी छाई थी।
बिन माचिस बिन बारूद के इसने आग लगाई थी।

उनकी कहानी कौन लिखे,
जो शिथिल मौन से दिखते हैं।
प्रत्यक्ष परोक्ष में भेद नहीं,
जो निमित गौण से दिखते हैं।
किन शब्दों का चयन करूँ,
कि कलम भी किसपे दम्भ भरे।
किस यज्ञ-जोत की करूँ अर्चना,
जो रौशन जग अविलम्ब करे।
किस माथे जा तिलक करूँ,
जा किस भुज मैं प्राण भरूँ।
किस विधा में कलम चले ये,
किस विधि लेखन-त्राण करूँ।
दिनकर मुझको मिला नहीं जिसने अलख जगाई थी।
बिन माचिस बिन बारूद के इसने आग लगाई थी।

©रजनीश "स्वछंद" मेरी प्यासी कलम।।

कलम घूमती प्यासी थी, दवात भरी रोशनाई थी।
बिन माचिस बिन बारूद के इसने आग लगाई थी।

कौन जला था, कौन बचा था,
कौन तटस्थ मूक-द
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