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kumarउमेश

#Flute "सर" (SIR ) शब्द का अर्थ #विचार

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Shravan Goud

स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना। --अज्ञात

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स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, 
स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना।
               --अज्ञात स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, 
स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना।
               --अज्ञात

कलीम शाहजहांपुरी (साहिल)

शायरी ( इल्हाम का अर्थ होता है अल्लाह,ईश्वर का शब्द)

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उसकी रंगत है जैसे कोई खिलता गुलाब,
उसकी बातों से टपके इल्हाम की बारिश.!

©कलीम शाहजहांपुरी (साहिल) शायरी ( इल्हाम का अर्थ होता है अल्लाह,ईश्वर का शब्द)

paritosh@run

घूँट-घूँट किसी चाय... #Shayari

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Good Morning घूँट-घूँट, धीरे-धीरे चाय पीने का मज़ा कुछ और ही है...
उनकी यादों के साथ कुछ वक्त मैं ऐसे भी बिताता हूँ... घूँट-घूँट किसी चाय...

Diwan G

Chetan Jaat

शब्द आत्मा है और उनके अर्थ उस आत्मा की अभिव्यक्ति, इसलिए शब्द और अर्थ दोनों का बोध अनिवार्य है ।

©Chetan Jaat #notjo  #शब्द #अर्थ #अभिव्यक्ति

Kavita jayesh Panot

शब्द वही होते है वर्ण माला के,
लेकिन वक्त के बदलाव के साथ ,
तार बदल जाते है।
कभी सुख ,एहसास खुशी का दिला जाता है
तो कभी वही सु और ख से सूखापन बन जाता है।
जो एक नकारात्मकता का बोध है।
कविता जयेश पनोत

©Kavita jayesh Panot #शब्द#भेद#वक्त#अर्थ

Hasanand Chhatwani

#सिमित शब्द #असीमित अर्थ # #विचार

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*सीमित शब्द हो और*

*असीमित अर्थ हो...*

*लेकिन इतना ही हो कि*

*शब्द से न कष्ट हो...* #सिमित शब्द #असीमित अर्थ #

Sumit Kumar

खुद के जज़्बात और चाय का घूँट

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मैं डयरी पेन लेकर बैठा 
सोचा अपने जज़्बात लिख दूं
फिर एक दम से ख्याल आया  क्यों ना अपना पहला प्यार "चाय"लिख दूँ.. खुद के जज़्बात और चाय का घूँट

संजय कुमार सन्जू

दो घूँट #कविता

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"दो घूंट"

अद्भूत सहास जगाया हे मानव
खुद को ही बहकाने का
खुशी मना रहा है या
गम छूपा रहा जमाने का
रईस इतना हो गया या
कारोबार बढ़ा रहा महकाने का
समझ नही आता हे मानव
राज़ दो घूंट लगाने का॥
रूठ गया है क्या दिल तेरा
जो करता कोशिश मनाने का
भूल गया है सब कुछ या
स्वांग रचा रहा भूलाने का
चर्चित हो गया हे मानव
पाथिक राज घराने का॥
शौक इतना हो गया है या
आदि हो गया है पिने का
भूल गया जो अपनापन या
भूला रहस्य जिने का
पूछ ला अब तू हे मानव
हाल ए दर्द सिने का॥
खूब ढूढां है ये साथी
खुशियो को मनाने का
खूब ढूढां है तुने सहभागी
गमो को भूलाने का
गवां दिया तुने हे मानव
अद्भूत प्रेम ज़माने का॥

............संजय कुमार "संजू" दो घूँट
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