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RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
चंचल-चंचल नेत्र तुम्हारे, सम्मोहन की हाला । रूप तुम्हारा प्रिये प्रकृति के, यौवन की मधुशाला । सांसों के झंकृत साजों से, जीवन भी गति पाते । प्रिये तुम्हारे भोले मन में, पत्थर भी घुल जाते । प्रेम ग्रंथ की अमर ऋचाएँ, रचते और सुनाते । अधर तुम्हारे जीवन को स्वर, दे देते मुस्काते । करुणा, दया क्षमा, के गहने, लाज तुम्हारा बाना । तुम जीवन की अमर शिखा हो, और जगत परवाना । ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #चंचल_चंचल_नेत्र_तुम्हारे #सार_छंद #कविता मनोज मानव दिनेश कुशभुवनपुरी कुमार अनुराग Karan Kumar Shaurya वरुण तिवारी सूर्यप्रताप सिंह चौहान
चंचल_चंचल_नेत्र_तुम्हारे सार_छंद कविता मनोज मानव दिनेश कुशभुवनपुरी कुमार अनुराग Karan Kumar Shaurya वरुण तिवारी सूर्यप्रताप सिंह चौहान
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RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
तुमको पाना, खोना तुमको, सबकुछ एक फसाना था। जाने कैसी धुन थी, चातक बून्दों का दीवाना था। ये भी क्या था, ये तो शायद, उस कान्हा की मर्जी थी मीरा को तो, एक न एक दिन, जोगन हो ही जाना था।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #जोगन_हो_ही_जाना_था #कविता #मुक्तक दिनेश कुशभुवनपुरी Dheeraj Srivastava मनोज मानव सुनील 'विचित्र' सुरमई साहित्य Kalaa Vyas Kirdar Kumar Sh
जोगन_हो_ही_जाना_था कविता मुक्तक दिनेश कुशभुवनपुरी Dheeraj Srivastava मनोज मानव सुनील 'विचित्र' सुरमई साहित्य Kalaa Vyas Kirdar Kumar Sh
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आजादी के परवानों में, उसकी अजब रवानी थी। साँसों में थी आग अनूठी, हर धड़कन बलिदानी थी। हिन्दू कुल का गौरव था वह, पंडित कुल का ज्ञानी था। मतवाला 'आजाद' परिंदा, खुद में एक कहानी था।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #चंद्रशेखरआज़ाद #कविता #मुक्तक #छंद दिनेश कुशभुवनपुरी दुर्लभ "दर्शन" Dheeraj Srivastava सुनील 'विचित्र' सुरमई साहित्य मनोज मानव सूर्यप्रताप
चंद्रशेखरआज़ाद कविता मुक्तक छंद दिनेश कुशभुवनपुरी दुर्लभ "दर्शन" Dheeraj Srivastava सुनील 'विचित्र' सुरमई साहित्य मनोज मानव सूर्यप्रताप
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एक शमा पर मिट जाऊँगा, मैं पागल परवाना हूँ , लब पर अपने लाकर देखो, एक हँसी अफ़साना हूँ । आँखों की शबनम से भीगे, गीत यहीं बस कहते हैं , तेरे दिल का पता नहीं पर, मैं तेरा दीवाना हूँ । ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #मैं_तेरा_दीवाना_हूँ #कविता #मुक्तक दिनेश कुशभुवनपुरी Dheeraj Srivastava सुनील 'विचित्र' सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) सचिन सारस्वत सु
मैं_तेरा_दीवाना_हूँ कविता मुक्तक दिनेश कुशभुवनपुरी Dheeraj Srivastava सुनील 'विचित्र' सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) सचिन सारस्वत सु
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मैं फूल नहीं जो स्वाभिमान खोकर चरणों में गिर जाऊँ । अनुचित की मान प्रतिष्ठा में, अपने वचनों से फिर जाऊँ । नैतिकता के पावन घट का, चौराहे पर अपमान करूँ । सम्भव ही नहीं हठी, निष्ठुर, दुर्जन का मैं गुणगान करूँ । गुणगान करें जिनको खुद की, सुचिता का कुछ भी भान नहीं । गुणगान करें जो स्वाभिमान का, कर सकते सम्मान नहीं । गुणगान करें जो चाटुकारिता में सब कुछ कर सकते हैं । गुणगान करें जो स्वार्थ हेतु, दो कौड़ी में मर सकते हैं । गुणगान करें जो स्वान सरीखे चरण चाँटते फिरते हैं । यों तो खुद का भी ज्ञान नहीं, पर ज्ञान बाँटते फिरते हैं । मैं स्वाभिमान हूँ सुचिता का, नैतिकता का अनुपालक हूँ । मैं क्राँति शिखा का द्योतक हूँ, मैं परिवर्तन का चालक हूँ । मैं धर्मध्वजा की रक्षा में, निज प्राण गँवा भी सकता हूँ । मैं सत्य न्याय रक्षार्थ गरल, हँसते-हँसते पी सकता हूँ । करुणा की सत्ता नहीं जहाँ, उन हृदयों का सम्मान करूँ ? सम्भव है क्या दो कौड़ी के चिंतन का मैं गुणगान करूँ..? जिनमे 'मैं' को समझाने का, थोड़ा सा भी सामर्थ्य नहीं । सच को भी सच कह जाने का, थोड़ा सा भी सामर्थ्य नहीं । जो विद्वानों की सभा बीच, अज्ञानी सा व्यवहार करे । जो सज्जन के मृदु वचनों पर, कर्कश तीरों का वार करे । जो मद में ऐसा चूर, ज्ञान के आगे झुकना भूल गया । जो हठ की खातिर पर्वत के सम्मुख भी रुकना भूल गया । सच पूछो तो ऐसा मानव अज्ञानी है, अभिमानी है । वह स्वार्थ भरे घट का गंदे कीचड़ के जैसा पानी है । वह भूल गया हाथी मद में यदि बर्बरता कर सकता है । तो चींटी की हिम्मत से वह गिर सकता है मर सकता है । दुर्योधन का मद एक दिवस झुक जाता है, यह निश्चित है । तो चाटुकार शकुनी भी ठोकर खाता है, यह निश्चित है ।। ©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' #स्वाभिमान #कविता दिनेश कुशभुवनपुरी Dheeraj Srivastava मनोज मानव राजेन्द्र सनातनी कर्म गोरखपुरिया Kalaa Vyas Karan Kumar Shaurya Kirdar RD
स्वाभिमान कविता दिनेश कुशभुवनपुरी Dheeraj Srivastava मनोज मानव राजेन्द्र सनातनी कर्म गोरखपुरिया Kalaa Vyas Karan Kumar Shaurya Kirdar RD
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