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Anamika Gupta
ग़ज़ल मुहब्बत का' होगा असर धीरे धीरे। ज़माने को' होगी ख़बर धीरे धीरे॥ जो' करके गए थे मुहब्बत का' वादा, वो' होते गये बेख़बर धीरे धीरे। सनम जब से तुम बेवफा हुए हो , मुहब्बत के' सूखे शजर धीरे धीरे। तरन्नुम मे' मैंने ग़ज़ल जब पढ़ी तो , हुई मस्त महफ़िल, नगर धीरे धीरे। जिधर देखिए अब दरिंदे खड़े हैं , बशर हो रहा जानवर धीरे धीरे । सभी के लिए अनु दुआ माँगती है, मिले सबको शुहरत मगर धीरे धीरे। --अनामिका "अनु" गया , बिहार शायरी की ग़ज़ल
Sudha Tripathi
आप सभी को आज रात 9:00 बजे आमंत्रित करती हूं पहली बार औपचारिक रूप से nojoto पे live show में आ रही हूँ ©Sudha Tripathi ग़ज़ल की शाम
Anamika Gupta
किसी को किसी की ज़रूरत नहीं है। बशर को बशर से मुहब्बत नहीं है। तुम्हीं पे सभी कुछ ऐ जानम है वारा कहूँ कैसे तुमसे कि उल्फ़त नहीं है। हुई है मुहब्बत तुम्हीं से सजन रे कहूँ तुझसे कैसे कि हिम्मत नहीं है। बहुत ज्ञान बांचा रहम भी करो अब मुझे ज्ञान की अब ज़रूरत नहीं है। दरिंदे हुए 'अनु' बशर आज देखो नजर में किसी की शराफ़त नहीं है। -- अनामिका 'अनु' गयाजी शायरी की ग़ज़ल
anil.gangwar.1994000
न तुम खुश हो न हम तो,खुशी किस हिस्से है। लोग गलतफहमी में हैं उनके अलग ही क़िस्से हैं।। जहन कांप जाता है मेरे शहर की वारदातों से। सियासत फिर से गर्मायी है पर हालात जैसे के तैसे हैं।। उन्हें ये लगता है कि मैं उनका गुनेहगार हूं। पर उन्हें खबर नहीं कि मै उससे हूं,बो मुझसे है।। सराफत मुझे सिखाओ ठीक है मैं सीख जाऊंगा। पर मै चुप रहूंगा उसके लिए, मोहब्बत मुझे जिससे है।। गंगवार अनिल 6396456757 @copyright ©anil.gangwar.1994000 ग़ज़ल अनिल की।। #DilKiAwaaz
LAKSHMI KANT MUKUL
कोहरे से झांकता हुआ आया मांगी थी रोशनी ये क्या आया सूर्य - रथ पर सवार था कोई उसके आते ही जलजला आया घोंसले पंछियों के फिर उजड़े फिर कहीं से बहेलिया आया दूर अब भी बहार आँखों से दरमियाँ बस ये फ़ासला आया काकी की रेत में भूली बटुली मेघ गरजा तो जल बहा आया जो गया था उधर उम्मीदों से उसका चेहरा बुझा बुझा आया बागों में शोख तितलियां भी थीं पर नहीं फूल का पता आया _लक्ष्मीकांत मुकुल लक्ष्मीकांत मुकुल की ग़ज़ल
Vivek Dixit swatantra
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा 'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा कैफ़ भोपाली ©Vivek Dixit swatantra केफ भोपाली की एक ग़ज़ल
डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313)
ग़ज़ल की पाठशाला(पाठ३) ग़ज़ल:शिल्प और सरंचना १)मसम्मन २) मुसद्दस जिस बहर के एक मिसरे में ४और शे'र में ८अरकान हो उसे ' मुसम्मन बहर ' तथा जिसमें एक मिसरे में ३, शेर में ६ अरकान हो, उसे मुसद्दस कहा जाता है। १२२ १२२ १२२,१२२ =४arkan गुलों से गुलों को चुरा ले गए हैं। १२२ १२२ १२२ १२२ शजर शाख अपनी बचा ले गए है। ४अरकान ©डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313) # ग़ज़ल की पाठशाला (पाठ ३)