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Vivek Dixit swatantra
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा 'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा कैफ़ भोपाली ©Vivek Dixit swatantra केफ भोपाली की एक ग़ज़ल
डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313)
- ग़ज़ल की पाठशाला - (पाठ१) ग़ज़ल:शिल्प और संरचना ( तकती/बहर) तकतीअ:वो विधि जिसके द्वारा किसी मिसरे(पंक्ति )या शे'र को अरकानो के तराजू पर तौलते हैं, ' तकतीअ' कहलाती है। तकतीअ से पता चलता है कि शे'र किस बहर में है,या बहर से खारिज है। बहर : एक मीटर है, लय है, ताल है,जो अरकानो या उनके जिहाफों के साथ एक निश्चित तरकीब से बनती है।(पाठ २ कल की पाठशाला में) ©डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313) #l ग़ज़ल की पाठशाला (१)
Vivek Dixit swatantra
गुलजार जी की की एक ग़ज़ल ©Vivek Dixit swatantra गुलजार जी की एक ग़ज़ल
Vivek Dixit swatantra
आते आते मिरा नाम सा रह गया उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया रात मुजरिम थी दामन बचा ले गई दिन गवाहों की सफ़ में खड़ा रह गया वो मिरे सामने ही गया और मैं रास्ते की तरह देखता रह गया झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए और मैं था कि सच बोलता रह गया आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया उस को काँधों पे ले जा रहे हैं 'वसीम' और वो जीने का हक़ माँगता रह गया वसीम बरेलवी ©Vivek Dixit swatantra #samandar वसीम बरेलवी जी की ग़ज़ल