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विशाल पांढरे
Pnkj Dixit
🌷आज मुस्कुराया जाए🌷 चलो आज मुस्कुराया जाए रोते चेहरों को हँसाया जाए । वक़्त से पहले फूल मुरझा रहे हैं चलो हँसी फुहार से नहलाया जाए ।। जो साँसे घुट रही अंदर ही अंदर जीवन दु:खी भंवर या बीच समंदर । सबको आज किनारे लाया जाए चलो आज मुस्कुराया जाए ।। जो प्रेम राग से फल फूल रहे थे वह जीवन हर्ष नाद से झूल रहे थे । फिर से जीवन राग बनाया जाए चलो आज मुस्कुराया जाए ।। जिनसे दुःख का अनुभव दूर रहा है निराश भँवर से उनको निकाला जाए । नयी खुशियों से दामन को भर कर फिर से चलो आज मुस्कुराए जाए ।। (काव्य संग्रह:- “जीवनराग” से) १३/०४/२०२० 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 🌷आज मुस्कुराया जाए🌷 चलो आज मुस्कुराया जाए रोते चेहरों को हँसाया जाए । वक़्त से पहले फूल मुरझा रहे हैं चलो हँसी फुहार से नह
Pnkj Dixit
... ओ मेरे प्यार ©Pnkj Dixit 👰 ओ मेरे प्यारे 🌷 अल्हड़पन में अल्हडमत से एक दिन बोली प्यारी सजनी अगर खोल दूँ मैं जुल्फें अपनी तो क्या होगा ? अगर गाऊँ कोई गीत तराना , त
Vedantika
प्रेम पत्र अधूरी मोहब्बत के नाम प्रिय……… आज बाज़ार में दस साल बाद तुम्हें फिर से देखा तो लगा कि जैसे कॉलेज का वो दिन अभी कल ही गुज़रा हो जब तुम मुझसे यूँ ही टकरा गई थी। इसस
Vedantika
तुम क्या हमसें जुदा हुए दुनिया में हम तन्हा हुए •☆• जीएटीसी कोलाॅबज़-३ •☆• 《हिंदी चैलेंज ४》 नियमावली: १. आप कविता, गद्य, कहानी, पत्र, बात-चीत - किसी भी रूप में लिख सकते हैं। २.
Vedantika
हम ना ही इधर ना ही उधर बैठे हैं •☆• जीएटीसी कोलाॅबज़-३ •☆• 《हिंदी चैलेंज ३》 नियमावली: १. आप कविता, गद्य, कहानी, पत्र, बात-चीत - किसी भी रूप में लिख सकते हैं। २.
Vedantika
प्रेम में भीगे हम इस तरह हम भी पतित पावन हो गए तेरे इश्क़ में हम मदहोश है इतने इस दुनिया से बेगाने हो गए •☆• जीएटीसी कोलाॅबज़-३ •☆• 《हिंदी चैलेंज २》 नियमावली: १. आप कविता, गद्य, कहानी, पत्र, बात-चीत - किसी भी रूप में लिख सकते हैं। २.
Vedantika
हुए हैं ग़ाफ़िल हम तेरे इश्क़ में जब से गए हो अज़नबी बनकर अधूरी रह गई मेरी दास्तां-ए-मोहब्बत गुज़र रही ज़िंदगी कुल्फ़त मे इस क़दर हो रही ख़िलाफ़त दुनिया में हमारी हुए हैं बदनाम हम तेरे इश्क़ में पड़कर •☆• जीएटीसी कोलाॅबज़-३ •☆• 《हिंदी चैलेंज १》 नियमावली: १. आप कविता, गद्य, कहानी, पत्र, बात-चीत - किसी भी रूप में लिख सकते हैं। २.
Vedantika
हो रहा हैं स्वार्थ सिद्ध मनुष्य का सूख रही हैं नवसृजित कलियाँ क्रोध चरम पर हैं प्रकृति का मनुष्य का विवेक क्षीण हुआ कर शर्मसार प्रकृति को मनुष्य ने ही कलयुग को बुलाया •☆• जीएटीसी कोलाॅबज़-२ •☆• 《हिंदी चैलेंज १६》 नियमावली: १. आप कविता, गद्य, कहानी, पत्र, बात-चीत - किसी भी रूप में लिख सकते हैं। २.
Vedantika
लेते हैं गलत फैसले हम इसी नज़रिये की वज़ह से दूर हो जाते हैं क़भी कभी क़रीबी रिश्तों से क़भी •☆• जीएटीसी कोलाॅबज़-२ •☆• 《हिंदी चैलेंज १५》 नियमावली: १. आप कविता, गद्य, कहानी, पत्र, बात-चीत - किसी भी रूप में लिख सकते हैं।