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Aditya Fogat
चलने का मजा धूप में ही हैं, क्योंकि छाव में हमने अक्सर राहगीरों को सुस्ताते पाया हैं चलने का मजा धूप में ही हैं, क्योंकि छाव में हमने अक्सर राहगीरों को सुस्ताते पाया हैं #firstquote
Aditya Fogat
चलने का मजा धूप में ही हैं, क्योंकि छाव में हमने अक्सर राहगीरों को सुस्ताते पाया हैं चलने का मजा धूप में ही हैं, क्योंकि छाव में हमने अक्सर राहगीरों को सुस्ताते पाया हैं #firstquote
Ravendra
Harshita Dawar
Written by Harshita ✍️ #Jazzbaat नश्वर संसार पदचिन्हों को राहगीरों को कोन रोक पाया हैं अस्तिव ख़ुद का ख़ुद में गड़ा लेना लहरों का पानी भी कहा मिटा पाया हैं #realityoflife #reality #yqbaba #yqdidi #yqquotes Written by Harshita ✍️ #Jazzbaat नश्वर संसार पदचिन्हों को राहगीरों को कोन रोक पाया हैं अस
shayarana andaz hai
आंखों के झरोखों से , ज़माने की बदलती तस्वीर देखो बंद कमरे में बैठी तकदीर देखो चश्म खोल राहगीरों के इस ज़माने की तहज़ीब देखो...😊 _dabbi🌼 Shayrana andaz hai आंखों के झरोखों से , ज़माने की बदलती तस्वीर देखो बंद कमरे में बैठी तकदीर देखो चश्म खोल राहगीरों के इस ज़माने की तहज़ीब देखो...😊 _dabbi🌼 Sha
Useless Writer
इस बार भगवान ने पानी बरसाने में कोई कमी नहीं करी, अब देखना यह है कि शहरों में राहगीरों के लिए कितना मुक्त शुध्द जल मिलता है या केवल बोतल बंद पानी का व्यवसाय और तेजी से बढ़ेगा! इस बार भगवान ने पानी बरसाने में कोई कमी नहीं करी, अब देखना यह है कि शहरों में राहगीरों के लिए कितना मुक्त शुध्द जल मिलता है या केवल बोतल बंद
Aditya kumar prasad
"मैं कौन हूँ, बतलाने के लिए तस्वीरों की जरूरत है क्या ? आचरण को चमकाने के लिए हीरों की जरूरत है क्या ?" जो पहले से प्यार के महीन धागों से बंधा हुआ है, उसको बांधने के लिए जंजीरों की जरूरत है क्या ? हम मेहनत के भरोसे जिये, न की किस्मत के भरोसे, हाथ ही काफी हैं, हाथों में लकीरों की जरूरत है क्या ? इंसान बने रहिये, इंसानियत में असंख्य संभावनाएं हैं, गरीबों की जरूरत है क्या, अमीरों की जरूरत है क्या ? मैं अकेला ही काफी हूँ, गिरकर, संभलने-बढने से लिए, मंजिल तक पंहुचने के लिए राहगीरों की जरूरत है क्या ?" ©Aditya kumar prasad मैं अकेला ही काफी हूँ, गिरकर, संभलने-बढने से लिए, मंजिल तक पंहुचने के लिए राहगीरों की जरूरत है क्या ?" Anshu writer Kanchan Pathak Kirti P
Sunita D Prasad
# क्षणिका.. राह किनारे..पड़ा था, एक.. बेडौल-बेजान, उपेक्षित पत्थर..। (Read in caption) --सुनीता डी प्रसाद💐 # क्षणिका.. राह किनारे.. पड़े.. एक उपेक्षित पत्थर पर कवि ने यों ही लिख दी थीं.. कुछ पंक्तियाँ पर प्रेम पर..
Krish Vj
उनकी रेशमी जुल्फों का क्या कहना, जो लहराए तो सुबह को रात करती हैं खो जाता हूं जब उनकी जुल्फों के साए में, तो निकलने की चाह दिल नहीं करता चमकती हैं मृगमरीचिका सी, उनकी रेशमी जुल्फें। जो अक्सर ही राहगीरों के, रस्ते भटका देती है।। 👉आओ अब कुछ लिख जायें।। कोलाब कीजिए और अपने दोस्त
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
ये रेशमी जुल्फें हैं या कोई विचित्र माया है, आज तक ये राज कोई नहीं जान पाया है, जानें कितनों को अपने जाल में फंसाया है, जो फंस गया वो फिर निकल नहीं पाया है। रेशमी जुल्फें और साथ में हो शरबती आँखें, प्रेम पाश में बंध जाते जैसे जेल की सलाखें, शागिर्दों के लिए लैला, सोनी, शीरी, हीर है, घायल आशिकों के लिए उनकी तक़दीर है। इन जुल्फों के चक्रवात में जो भी समाया है, चाह कर भी भँवर से निकल नहीं पाया है, हे मानव जुल्फ के मामले में तू अभी बच्चा है, रेशमी जुल्फें वालों से उजड़ा चमन अच्छा है। चमकती हैं मृगमरीचिका सी, उनकी रेशमी जुल्फें। जो अक्सर ही राहगीरों के, रस्ते भटका देती है।। 👉आओ अब कुछ लिख जायें।। कोलाब कीजिए और अपने दोस्त