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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी चाँद भी बेचैन है ,चेहरे लाल किये बैठा है अपने नजारों की तौहीन पर उदास हो बैठा है नही छेड़ता कोई तराना, ना उपमा उसकी देता है आवारापन के इस दौर में चाँद सितारों से प्यार की अनुमति कौन लेता है कम समय के दीदार में हवस का आवरण प्यार में चमकता है दसो दिशाओ और चाँद सितारों की मिशालो से प्यार में परखने का अवसर मिलता है अजनबी को अपना बनाने में प्रसंगों से रूह तक पहुचना पड़ता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" SuperBloodMoon अजनबी को अपना बनाने में,प्रसंगों से रूह तक पहुँचना पड़ता है #SuperBloodMoon #SuperBloodMoon
SuperBloodMoon अजनबी को अपना बनाने में,प्रसंगों से रूह तक पहुँचना पड़ता है #SuperBloodMoon #SuperBloodMoon #कविता
read moreAJAY VERMA
राग रागों की बात हो अब तो फिर उमंगों की बात हो अब तो जिनका संदर्भ प्यार होता है उन प्रसंगों की बात हो अब तो हर समय व्यथा नहीं होती एक सी रूत सादा नहीं होती ज़ख्म ऐसे भी लोग देते हैं जिनकी कोई की दावा नहीं होती राग रागों की बात हो अब तो फिर उमंगों की बात हो अब तो जिनका संदर्भ प्यार होता है उन प्रसंगों की बात हो अब तो हर समय थी व्यथा नहीं होती एक सी
राग रागों की बात हो अब तो फिर उमंगों की बात हो अब तो जिनका संदर्भ प्यार होता है उन प्रसंगों की बात हो अब तो हर समय थी व्यथा नहीं होती एक सी
read moreRakesh frnds4ever
ऐसा बोलकर समाज में गंदगी ना फैलाओ प्रेम प्रसंगों के जूठे खोखले वादों में न किसी का जीवन उलझाओ व्यभिचारी पाश्चात्य संस्कृति के गंदे और भद्दे प्यार के मायनों में उलझकर अपनी व औरों की मान ,मर्यादा, इज्जत ,आबरू,, को ना नोच खाओ वहशी दरिंदे नही मनुष्य हो तुम अपनी संस्कृति समाज सभ्यता संस्कारों के अनुरूप प्रेम के सही अर्थों,मायनों,, त्याग समर्पण दया मान सम्मान कर्तव्यों आदर्श इज़्जत नियति/नियमों/उसूलों/ जैसे गुणों के आधार पर नारी के देवीकीय रूप की पूजा कर उसको उसका पहले वाला पूजनीय स्थान दिलाओ ओर नर के सेवकीय रूप से पाश्चात्य संस्कृति से उपजी Rape ,बलात्कार,भ्रूण हत्या, प्रताड़ना,affairs, रिश्तों की मर्यादाओं की गंदगी जैसी समाज संस्कृति मनुष्य को वहशी दरिंदे बनाने वाली civilization की गंदगी को सुलझाओ ©Rakesh frnds4ever ऐसा बोलकर #समाज में गंदगी ना फैलाओ #प्रेम प्रसंगों के जूठे खोखले वादों में न किसी का जीवन उलझाओ व्यभिचारी पाश्चात्य #संस्कृति के गंदे और भ
ऐसा बोलकर समाज में गंदगी ना फैलाओ प्रेम प्रसंगों के जूठे खोखले वादों में न किसी का जीवन उलझाओ व्यभिचारी पाश्चात्य संस्कृति के गंदे और भ
read moreUmesh Rathore
Part 3:- मर्यादा के पुरुषोत्तम, श्री राम भरत मिलाप (अनु शीर्षक 👇) Please give your precious comments and suggestions मर्यादा के पुरुषोत्तम श्री राम, जग में सबसे सुंदर नाम श्री राम, तमाम बंधन को तोड़ कर, मन को असीम सुख व शांति प्रदान करने वाला नाम, रामायण जो
मर्यादा के पुरुषोत्तम श्री राम, जग में सबसे सुंदर नाम श्री राम, तमाम बंधन को तोड़ कर, मन को असीम सुख व शांति प्रदान करने वाला नाम, रामायण जो #lovequotes #yourquote #yqdidi #yqtales #yourquotebaba
read moreRavendra
कलयुग में हरि नाम से ही जीव का होता कल्याण =पंडित भारत कस्बे में चल रहे सात दिवसीय श्री मद भागवत पुराण कथा ज्ञान यज्ञ में पंo भरत भारद्वाज #न्यूज़
read moreN S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} जानिए गणेश जी का असली मस्तक कटने के बाद कहां गया :- भगवान गणेश गजमुख, गजानन के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उनका मुख गज यानी हाथी का है। भगवान गणेश का यह स्वरूप विलक्षण और बड़ा ही मंगलकारी है। आपने भी श्रीगणेश के गजानन बनने से जुड़े पौराणिक प्रसंग सुने-पढ़े होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं या विचार किया है कि गणेश का मस्तक कटने के बाद उसके स्थान पर गजमुख तो लगा, लेकिन उनका असली मस्तक कहां गया? जानिए, उन प्रसंगों में ही उजागर यह रोचक बात – श्री गणेश के जन्म के सम्बन्ध में दो पौराणिक मान्यता है। प्रथम मान्यता के अनुसार जब माता पार्वती ने श्रीगणेश को जन्म दिया, तब इन्द्र, चन्द्र सहित सारे देवी-देवता उनके दर्शन की इच्छा से उपस्थित हुए। इसी दौरान शनिदेव भी वहां आए, जो श्रापित थे कि उनकी क्रूर दृष्टि जहां भी पड़ेगी, वहां हानि होगी। इसलिए जैसे ही शनि देव की दृष्टि गणेश पर पड़ी और दृष्टिपात होते ही श्रीगणेश का मस्तक अलग होकर चन्द्रमण्डल में चला गया। इसी तरह दूसरे प्रसंग के मुताबिक माता पार्वती ने अपने तन के मैल से श्रीगणेश का स्वरूप तैयार किया और स्नान होने तक गणेश को द्वार पर पहरा देकर किसी को भी अंदर प्रवेश से रोकने का आदेश दिया। इसी दौरान वहां आए भगवान शंकर को जब श्रीगणेश ने अंदर जाने से रोका, तो अनजाने में भगवान शंकर ने श्रीगणेश का मस्तक काट दिया, जो चन्द्र लोक में चला गया। बाद में भगवान शंकर ने रुष्ट पार्वती को मनाने के लिए कटे मस्तक के स्थान पर गजमुख या हाथी का मस्तक जोड़ा। ऐसी मान्यता है कि श्रीगणेश का असल मस्तक चन्द्रमण्डल में है, इसी आस्था से भी धर्म परंपराओं में संकट चतुर्थी तिथि पर चन्द्रदर्शन व अर्घ्य देकर श्रीगणेश की उपासना व भक्ति द्वारा संकटनाश व मंगल कामना की जाती है। ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} जानिए गणेश जी का असली मस्तक कटने के बाद कहां गया :- भगवान गणेश गजमुख, गजानन के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उनका मु
{Bolo Ji Radhey Radhey} जानिए गणेश जी का असली मस्तक कटने के बाद कहां गया :- भगवान गणेश गजमुख, गजानन के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उनका मु #प्रेरक
read moreRavendra
अबीर गुलाल के बीच श्रमजीवी पत्रकार यूनियन ने मनाया होली मिलन समारोह बहराइच 19 मार्च। रंग व उल्लास के पर्व होली के शुभ अवसर पर श्रमजीवी पत्र #न्यूज़
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भारतीय संस्कृति में बहुत सारे कला ऐसे होते है जिसे देखते थे ही.. मन को शांति और आँखों को सुकून दे जाते है! भारतीय संस्कृति में कुछ ऐसे रंग है जिसे देखकर मन को ख़ुशी इन आँखों को सौ पल के याद दे जाते है! #kalamkaari #prints #lalithasai #myworld #myfevoriteprints कलमकारी आंध्र प्रदेश की अत्यंत प्राचीन लोक कला है और जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह
#Kalamkaari #Prints #lalithasai #myworld #myfevoriteprints कलमकारी आंध्र प्रदेश की अत्यंत प्राचीन लोक कला है और जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह
read moreN S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘महाभारत’ एक बहुत ही विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें अनेकों अनेक कहानियां है। आम जन इनमे से अनेक कहानियों और प्रसंगों से अवगत है लेकिन बहुतों से अनजान है। आज हम आपको महाभारत का एक ऐसा ही प्रसंग बताते है जब अर्जुन ने अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर को मारने के लिए हथियार उठाए थे। आइए जानते है आखिर अर्जुन ने ऐसा क्यों किया और इसका परिणाम क्या निकला। महाभारत काल की यह कथा हमें वह समय याद कराती है जब कुरुक्षेत्र युद्ध चल रहा था। यह युद्ध का 17वां दिन था और राजकुमार युधिष्ठिर तथा कर्ण के बीच युद्ध हो रहा था। सभी को इस युद्ध से बेहद उम्मीदें थीं कि तभी शस्त्र विद्या में माहिर रहे कर्ण ने युधिष्ठिर पर एक ज़ोरदार वार किया। एक के बाद एक करके कर्ण के सभी वार युधिष्ठिर पर भारी पड़ते गए और वह बुरी तरह से घायल हो गया। अब कर्ण के पास एक मौका था कि वह युधिष्ठिर को मारकर पाण्डवों की नींव हिलाकर रख दे, लेकिन उसने यह मौका हाथ से जाने दिया। आखिर क्यों? कर्ण ने युधिष्ठिर पर सिर्फ इसलिए वार नहीं किया क्योंकि उसने पांडवों की माता कुंती को यह वचन दिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह उनके किसी भी पुत्र को जान से नहीं मारेगा। और यही कारण था कि ना चाहते हुए भी कर्ण ने युधिष्ठिर को जीवित ही जाने दिया। जब अनुज नकुल तथा सहदेव ने अपने ज्येष्ठ भ्राता राजकुमार युधिष्ठिर की यह हालत देखी तो शीघ्र ही उन्हें तंबू में ले गए, जहां उनकी मरहम-पट्टी के सभी इंतज़ाम किए गए। जब तीनों भाई तंबू में थे तो बाकी दो भाई अर्जुन तथा भीम अभी भी युद्ध में शत्रुओं की सेना से संघर्ष कर रहे थे। अचानक ही अर्जुन को राजकुमार युधिष्ठिर की अनुपस्थिति का एहसास हुआ और उन्होंने भीम से इस बारे में पूछताछ की। तब भीम ने बताया कि किस तरह से कर्ण तथा युधिष्ठिर के बीच हुए द्वंद युद्ध में भ्राता युधिष्ठिर घायल हो गए, जिसके बाद उन्हें विश्राम करने के लिए ले जाया गया है। तभी भीम ने अर्जुन से कहा कि वह शत्रुओं को अकेले ही संभाल लेंगे और अर्जुन से आग्रह किया कि वे भ्राता युधिष्ठिर के पास जाएं और उनके स्वास्थ्य का ब्योरा लें। आज्ञानुसार राजकुमार अर्जुन उस तंबू की ओर चले दिए, जहां युधिष्ठिर घायल आवस्था में पीड़ा से जूझ रहे थे। तंबू में लेटे हुए युधिष्ठिर ने अचानक ही अपने अनुज को अपनी ओर आते हुए देखा। अर्जुन को देख उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। वह समझ गए कि हो ना हो अर्जुन युद्ध में कर्ण पर विजय प्राप्त कर उनके पास खुशखबरी लेकर आ रहे हैं। वह अंदर ही अंदर बेहद गर्व महसूस कर रहे थे कि उनकी इस हालत के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को उनके अनुज ने दंड दे दिया है और अवश्य ही अर्जुन ने कर्ण को मार दिया होगा। लेकिन युधिष्ठिर सत्य से अनजान थे। तंबू में प्रवेश करते ही अर्जुन ने ज्येष्ठ भ्राता को प्रणाम किया और उनसे उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा। लेकिन इससे ज्यादा तो युधिष्ठिर इस बात को सुनने के लिए ज्यादा उत्तेजित हो रहे थे कि अर्जुन ने कर्ण को मारा या नहीं। लेकिन तभी राजकुमार अर्जुन द्वारा वहां आने का असली कारण व्यक्त किया गया। उन्होंने बताया कि कैसे भीम ने युधिष्ठिर के घायल होने की खबर सुनाई जिसके बाद वह दौड़े-दौड़े उनकी स्थिति का ब्योरा लेने आ गए। अर्जुन के मुख से सच्चाई सुनते ही युधिष्ठिर अपना आपा खो बैठे। वह सच उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा था। उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो कोई उनके सम्मान को तीर के समान चीरता हुआ जा रहा हो। वे बेहद क्रोधित हो उठे और बोले, “तुम यहां केवल मेरे घावों के बारे में पूछने आए हो या फिर उन्हें और कुरेदने आए हो? तुम किस प्रकार के अनुज हो जो अब तक अपने ज्येष्ठ भ्राता के अपमान का बदला नहीं ले सके।“ युधिष्ठिर के इन कटु वचनों को सुनकर अर्जुन बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहे थे, लेकिन युधिष्ठिर का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। वे आगे बोले, “यदि तुम मेरे लिए इतना भी करने में असमर्थ हो तो तुम्हारे इस गांडीव अस्त्र का कोई लाभ नहीं है। उतार कर फेंक दो इसे।“ अपने प्रिय गांडीव अस्त्र की निंदा सुनते ही अर्जुन के मुख पर निराशा वाले भाव पल में ही क्रोध के साथ बदल गए। वह संसार में किसी से भी किसी भी प्रकार की निंदा सुन सकते थे, लेकिन उनके गांडीव के बारे में कोई एक भी अपशब्द बोले, यह उन्हें बर्दाश्त नहीं था। दरअसल यह अर्जुन द्वारा लिए गए एक वचन का हिस्सा था, जिसके अनुसार कोई भी अपना या पराया व्यक्ति यदि उनके पवित्र एवं प्रिय गांडीव अस्त्र के बारे में बुरे वचन बोलेगा, तो वह उसका सिर कलम कर देंगे। यही कारण था कि युधिष्ठिर द्वारा गांडीव की निंदा करते ही अर्जुन ने अगले ही पल अपना गांडीव उठाया और क्रोध भरी आंखों से युधिष्ठिर को मारने के लिए आगे बढ़े। तभी श्रीकृष्ण वहां पहुंचे और अर्जुन के इस व्यवहार को देखते ही उन्हें रुकने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण राजकुमार अर्जुन का यह रूप देखकर बेहद अचंभित हुए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार ऐसी क्या बात हुई जो अर्जुन अपने ही प्रिय भाई युधिष्ठिर के प्राण लेने को तैयार हो गए। तत्पश्चात अर्जुन ने उन्हें घटना का सार बताया और फिर श्रीकृष्ण को समझ आया कि आखिर बात क्या थी। उस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया और बोले, “हे अर्जुन! मैं तुम्हारे अपने गांडीव के संदर्भ में लिए गए वचन का सम्मान करता हूं। वचनानुसार तुम्हें अपने ही ज्येष्ठ भ्राता को मार देने का पूरा हक है, परन्तु धार्मिक संदर्भों में यह पाप है।“ लेकिन दूसरी ओर अर्जुन भी अपने वचन से मजबूर थे। उनकी मंशा को और गहराई से समझते हुए श्रीकृष्ण बोले, “अर्जुन, यदि तुम्हे अपने वचन को पूरा करना है तो इसका एक अन्य साधन भी है। माना जाता है कि अपने से बड़ों का अनादर करना उन्हें मृत्यु दंड देने के समान होता है। यदि अभी तुम अपने ज्येष्ठ भ्राता का अपमान करो तो तुम्हारा वचन पूरा हो जाएगा।“ श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार अर्जुन ने अगले ही पल युधिष्ठिर का तिरस्कार किया। अपने द्वारा किए गए इस अनादर को अर्जुन सहन ना कर सके और इस बार अपने ही प्राण लेने के लिए उन्होंने अपनी तलवार उठा ली। लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। उन्होंने अर्जुन को बताया कि कैसे खुद के प्राणों का अंत करना यानी कि आत्मदाह करना शास्त्रों में अधर्म माना जाता है। और पाण्डवों द्वारा अधर्म के मार्ग पर चलना एक बहुत बड़ा पाप एवं अन्याय साबित होगा। इसीलिए उसे धर्म का मार्ग चुनना चाहिए। इसके साथ ही श्रीकृष्ण ने कहा कि आत्मप्रशंसा, आत्मघात के समकक्ष है। इसलिए तुम दूसरों के सम्मुख अपनी वीरता की खुलकर तारीफ़ करो, जिससे तुम्हारा वचन पूरा हो जाएगा। श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुन धीरे-धीरे राजकुमार अर्जुन का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने खुद के सिर पर रखी उस तलवार को नीचे उतार कर फेंक दिया। इस प्रकार भगवान कृष्ण के निर्देशों से राजकुमार अर्जुन का वचन पूरा हुआ और साथ ही वह किसी भी प्रकार का अधर्म करने से बच गए। जय श्री कृष्ण।। ©N S Yadav GoldMine #CityWinter {Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘म
#CityWinter {Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘म #जानकारी
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"कृष्ण जीवन में राधा और रुक्मिणी तुलनात्मक साहित्य : एक कलंक" हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अध
हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अध #Question #writing #RadhaKrishna #blur #litrature #हरिगोविन्दविचारश्रृंखला
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