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अदनासा-
हे समस्त वृक्षों हे कानन हमें क्षमा कर दो, हम मानव तुम्हारे पतन का कारण बन चुके है, हम विकसित मानव चरम विकास में मग्न है अब हम सुंदर परिधान धारक है नग्न नही, अपितु चरम आधुनिक काल के अंतर्गत, हमें हमारे हर स्थान को सुविधा एवं सरलता में बदलना है, तुम्हारी दुविधा एवं पीड़ा से हमारा नाता नही है, हमारी चिंताएं अधिक है हमें स्वयं का अधिकार चाहिए, तुम्हें अधिकार नही है क्योंकि तुम बोल नही पाते, वैसे हमारी स्वयं की सुनवाई ही कम हो रही है, तो तुम्हारी सुनवाई भला कौन कैसे करे ? हमारा स्वयं से नाता न्युन एवं यंत्र से अधिक है, भला जीव जंतुओं की चिंता एवं चिंतन संभव कैसे हो ? हम विकसित विकासशील मानव पुनः क्षमा प्रार्थी है, माना की हम एकदा विद्यालय में पर्यावरण के विद्यार्थी भी थे, हम सुशिक्षित सुसभ्य केवल हृदय से सॉरी ही कह सकते है, हमें केवल और केवल सुविधाजनक विकास चाहिए, स्वयं के ह्रास हेतु अत: असुविधा हेतु खेद प्रकट करते है, हमने तुम्हारे पतन में स्वयं का उत्थान खोज लिया है। ©अदनासा- #हिंदी #कानन #वृक्षों #आधुनिक #विकास #उत्थान #पतन #Instagram #Facebook #अदनासा
Ashok Verma "Hamdard"
*न हथियार से मिलती है , न अधिकार से मिलती है।* *नोट दिखाओ तो बड़े प्यार से मिलती है* 😀❤️😀❤️😀❤️😆❤️😆❤️😆❤️😆 ©Ashok Verma "Hamdard" आधुनिक प्यार
आधुनिक प्यार #कविता
read moreDr Sudhanshu Dubey
"आधुनिक नारी" मैं, हम बनूंगी हमसफ़र के साथ जीवन राह पर, मीरा नहीं, सीता नहीं मैं आधुनिक किरदार पर। प्रेम ना करती हूँ, मैं तो प्यार करती हूँ, दिल से कम, दीमाग से मैं यार करती हूँ। यार मेरा देवता ना देवि मैं ही हूँ, अदना हैं वे प्यारे मेरे मैं आम सी ही हूँ। लड़ती हूँ मैं उनसे कभी वे मुझसे लड़ते हैं, रस्साकशी के बीच एक-दूजे पे मरते हैं। चाहती हूँ मैं, कि वे भी हमें निज आय दें, ज्यों ही पहुँचती गेह मैं वे भी तो मुझको चाय दें। परिधान पर मेरे कहीं कोई ना कसता तंज हो, आवागमन पर ना मेरे कोई कहीं प्रतिबंध हो। दायित्व को मैं ही निभाऊँ त्याग मैं ही क्यों करूँ? चाहती हूँ बोझ थोड़ा वे सहें, कुछ मैं सहूँ। कर्तव्य का सब पाठ क्यों मैं ही पढ़ूँ? अधिकार के तेजस तले क्यों ना लड़ूँ? चाहती हूँ मैं नहीं पूजा मेरी देवी सी हो, चाहती सम्मान, समता नर सदृश नारी की हो। डा0 सुधांशु कुमार ©Dr Sudhanshu Dubey आधुनिक नारी
आधुनिक नारी #कविता
read moreDeepika
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