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Stories related to पंद्रह हजार रुपये

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Pawan

इक्कीस हजार रुपये किलो की मिठाई #कविता

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Author Harsh Ranjan

पंद्रह तारीख

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आज़ादी तीन रंगों की घनी धुंध है,
जिसमें एक विदीर्ण असंतुलित सा
चक्का बढ़ा जा रहा है,
बगल के डंडे के सहारे खड़े होने की
कोशिश करता एक अपाहिज
सामने देख रहा है एक आस में
और वहाँ खड़ा वो बच्चा 
मुंह फेरकर, आँखें मूँदकर,
एक राष्ट्रधुन गा रहा है,
फूल बिखरे हैं इस क़दर कि
कहने में हिचक होती है,
श्रद्धांजलि अर्पित हुई है या
कोई स्वागत किया जा रहा है!
तुम्हारा शब्द-चयन गलत था,
आज़ादी नहीं, 
अधिकारों का हर-फेर था वो,
देश की सीमाओं तक पर राय लेने
आज भी तुम्हें 
दिल्ली कोई नहीं बुला रहा है! पंद्रह तारीख

Pawan

महिलाओं को 15 हजार रुपये का तोफा #कविता

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Author Harsh Ranjan

पंद्रह तारीख

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आज़ादी तीन रंगों की घनी धुंध है,
जिसमें एक विदीर्ण असंतुलित सा
चक्का बढ़ा जा रहा है,
बगल के डंडे के सहारे खड़े होने की
कोशिश करता एक अपाहिज
सामने देख रहा है एक आस में
और वहाँ खड़ा वो बच्चा 
मुंह फेरकर, आँखें मूँदकर,
एक राष्ट्रधुन गा रहा है,
फूल बिखरे हैं इस क़दर कि
कहने में हिचक होती है,
श्रद्धांजलि अर्पित हुई है या
कोई स्वागत किया जा रहा है!
तुम्हारा शब्द-चयन गलत था,
आज़ादी नहीं, 
अधिकारों का हर-फेर था वो,
देश की सीमाओं तक पर राय लेने
आज भी तुम्हें 
दिल्ली कोई नहीं बुला रहा है! पंद्रह तारीख

Ashab Khan

पंद्रह साल.... #कहानी

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मैंने पंद्रह साल कि रातें यूं ही तन्हाई मे तुझे याद करते करते बिता दिये .बस अब बहुत हुआ अब नही .में तेरे जिस्म से बनती हुई तस्वीर से अब तन्हाई नही काट सकता मुझे पता है अगर तेरी याद से बाहर निकला तो में बिखर सा जाऊंगा .तेरे हाथों मे लगी मेहंदी कि खुशबू अब भी हवाओं से होते हुये मेरे कमरे मे दाखिल हो जाती है और फिर एक बार मुझे तेरी याद मे तडपता हुआ छोड़ जाती है .बाहर गली मे बजते हुये हर पायल कि आवाज सुन कर मे दौड़ कर खिड़की पर चला आता हूं मगर तुम्हें ना पाकर फिर दिल थाम कर वही बैठ जाता हूं बस अब नही होता मुझसे. तेरी बाहों मे लेट कर कविता पढ़ने कि ख्वाहिश अधूरी ही रह गई है मैंने बंद कमरे का दरवाजा खोल भी दिया और हवाओं ने उन सारी तन्हाई पर कब्जा कर लिया और में तुम्हारी याद से आजाद में भी खुश हूं इस आजादी से जैसे बरसों बाद कोई गुलाम कैद से आजाद हुआ हो मगर न जाने क्य ऐसा लग रहा है तेरी याद अब भी कहीं न कहीं मेरे अंदर कब्जा किये हुये है बस अब बहुत हुआ सुरज निकलने से पहले मुझे आजाद कर दो अपनी यादों से में पंद्रह साल घुट घुट कर जीता रहा लेकिन अब बस में आजाद होना चाहता हूं मुझे आजाद कर दो क्य न मुझे मरना ही क्य न पड़े ,,,
असहब खान पंद्रह साल....

silu

पंद्रह अगस्त #कविता #nojotophoto

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 पंद्रह अगस्त

Sneh Prem Chand

मात्र पंद्रह मिनट

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Sneh Prem Chand

मात्र पंद्रह मिनट

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Ragini Kamti 🐯

मुझे छोड़ने की वज़ह तो बता देते, 
   मुझसे नाराज थे; या मुझ जैसे
 हजार थे.... #हजार

vaibhav Ashtekar

पन्नास हजार #विनोदी

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