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सागर पाल

जब-जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिया है। भग #श्री #शेयर #लाइक #हरि #कमेंट #कथा #दशावतरकथा

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N S Yadav GoldMine

#brokenlove {Bolo Ji Radhey Radhey} भगवती तुलसी कथा:- मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु न #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
भगवती तुलसी कथा:- मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। 
 एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया।

 मत्स्य अवतार की कथा :-
एक बार ब्रह्माजी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया। उस दैत्य का नाम हयग्रीव था। वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण करके हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। भगवान ने मत्स्य का रूप किस प्रकार धारण किया। 
 इसकी विस्मयकारिणी कथा इस प्रकार है- Rao Sahab N S Yadav 
 कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम सत्यव्रत था। सत्यव्रत पुण्यात्मा तो था ही, बड़े उदार हृदय का भी था। प्रभात का समय था। सूर्योदय हो चुका था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने स्नान करने के पश्चात जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया, तो अंजलि में जल के साथ एक छोटी-सी मछली भी आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया। मछली बोली- राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए। सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडलु में डाल लिया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडलु उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली- राजन! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढ़िए, क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है। मुझे घूमने-फिरने में बड़ा कष्ट होता है। सत्यव्रत ने मछली को कमंडलु से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया। यहाँ भी मछली का शरीर रात भर में ही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने कि लिए छोटा पड़ गया। दूसरे दिन मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- राजन! मेरे रहने के लिए कहीं और प्रबंध कीजिए, क्योंकि मटका भी मेरे रहने के लिए छोटा पड़ रहा है। तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल किया, किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ गया। इसके बाद सत्यव्रत ने मछली को नदी में और फिर उसके बाद समुद्र में डाल दिया। आश्चर्य! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहने के लिए वह छोटा पड़ गया। अतः मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- राजन! यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए। 
 अब सत्यव्रत विस्मित हो उठा। उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। वह विस्मय-भरे स्वर में बोला- मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन हैं? 

मत्स्य रूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया- राजन! हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी। समुद्र उमड़ उठेगा। भयानक वृष्टि होगी। सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। आपके पास एक नाव पहुँचेगी। आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैं उसी समय आपको पुनः दिखाई पड़ूँगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूँगा। सत्यव्रत उसी दिन से हरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे। सातवें दिन प्रलय का दृश्य उपस्थित हो उठा। समुद्र भी उमड़कर अपनी सीमाओं से बाहर बहने लगा। भयानक वृष्टि होने लगी। थोड़ी ही देर में सारी पृथ्वी पर जल ही जल हो गया। संपूर्ण पृथ्वी जल में समा गई। उसी समय एक नाव दिखाई पड़ी। सत्यव्रत सप्त ऋषियों के साथ उस नाव पर बैठ गए। उन्होंने नाव के ऊपर संपूर्ण अनाजों और औषधियों के बीज भी भर लिए।  

नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। सहसा मत्स्य रूपी भगवान प्रलय के सागर में दिखाई पड़े। सत्यव्रत और सप्त ऋषि गण मतस्य रूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे 
भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते जी ही जीवन मुक्त हो गए। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने ब्रह्माजी को पुनः वेद दे दिए। इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, साथ ही संसार के प्राणियों का भी अमित कल्याण किया।

©N S Yadav GoldMine #brokenlove {Bolo Ji Radhey Radhey}
भगवती तुलसी कथा:- मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु न

N S Yadav GoldMine

#Heart मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने #पौराणिककथा

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मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। 

एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया।

मत्स्य अवतार की कथा :-एक बार ब्रह्माजी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया। उस दैत्य का नाम हयग्रीव था। वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण करके हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। भगवान ने मत्स्य का रूप किस प्रकार धारण किया। 

इसकी विस्मयकारिणी कथा इस प्रकार है-

{Bolo Ji Radhey Radhey}

कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम सत्यव्रत था। सत्यव्रत पुण्यात्मा तो था ही, बड़े उदार हृदय का भी था। प्रभात का समय था। सूर्योदय हो चुका था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने स्नान करने के पश्चात जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया, तो अंजलि में जल के साथ एक छोटी-सी मछली भी आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया। मछली बोली- राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए। सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडलु में डाल लिया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडलु उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली- राजन! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढ़िए, क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है। मुझे घूमने-फिरने में बड़ा कष्ट होता है। सत्यव्रत ने मछली को कमंडलु से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया। यहाँ भी मछली का शरीर रात भर में ही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने कि लिए छोटा पड़ गया। दूसरे दिन मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- राजन! मेरे रहने के लिए कहीं और प्रबंध कीजिए, क्योंकि मटका भी मेरे रहने के लिए छोटा पड़ रहा है। तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल किया, किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ गया। इसके बाद सत्यव्रत ने मछली को नदी में और फिर उसके बाद समुद्र में डाल दिया। आश्चर्य! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहने के लिए वह छोटा पड़ गया। अतः मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- राजन! यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए। 

अब सत्यव्रत विस्मित हो उठा। उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। वह विस्मय-भरे स्वर में बोला- मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन हैं? 

मत्स्य रूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया- राजन! हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी। समुद्र उमड़ उठेगा। भयानक वृष्टि होगी। सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। आपके पास एक नाव पहुँचेगी। आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैं उसी समय आपको पुनः दिखाई पड़ूँगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूँगा। सत्यव्रत उसी दिन से हरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे। सातवें दिन प्रलय का दृश्य उपस्थित हो उठा। समुद्र भी उमड़कर अपनी सीमाओं से बाहर बहने लगा। भयानक वृष्टि होने लगी। थोड़ी ही देर में सारी पृथ्वी पर जल ही जल हो गया। संपूर्ण पृथ्वी जल में समा गई। उसी समय एक नाव दिखाई पड़ी। सत्यव्रत सप्त ऋषियों के साथ उस नाव पर बैठ गए। उन्होंने नाव के ऊपर संपूर्ण अनाजों और औषधियों के बीज भी भर लिए। 

नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। सहसा मत्स्य रूपी भगवान प्रलय के सागर में दिखाई पड़े। सत्यव्रत और सप्त ऋषि गण मतस्य रूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे 

भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते जी ही जीवन मुक्त हो गए। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने ब्रह्माजी को पुनः वेद दे दिए। इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, साथ ही संसार के प्राणियों का भी अमित कल्याण किया।

©N S Yadav GoldMine #Heart मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने

Vikas Sharma Shivaaya'

गुप्त नवरात्र:-2 फरवरी-10 फरवरी 2022 गुप्त नवरात्र में साधना को जितनी गोपनीयता के साथ किया जाता है साधक पर उतनी ज्यादा देवी की कृपा होता है #समाज

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गुप्त नवरात्र:-2 फरवरी-10 फरवरी 2022

गुप्त नवरात्र में साधना को जितनी गोपनीयता के साथ किया जाता है साधक पर उतनी ज्यादा देवी की कृपा होता है...,
शक्ति की साधना का महापर्व नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है- प्रथम चैत्र मास में पहली वासंतिक नवरात्रि, आषाढ़ मास में दूसरी नवरात्रि, आश्विन मास में तीसरी और माघ मास में चौथे नवरात्र आते हैं...,
इन्हें गुप्त नवरात्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें मां की आराधना गुप्त रूप से की जाती है-इसमें मां का ध्यान लगाने से विशेष फल मिलता है,तंत्र साधना में विश्वास रखने वाले लोग इस दौरान तंत्र साधना करते हैं...,
                     🔱मंत्र🧘
1-धन प्राप्ति के लिए मंत्र : ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः । स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।।

2- संतान प्राप्ति के लिए मंत्र : ॐ सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः । मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय ॥
3- दुःख-कष्टों के नाश के लिए मंत्र : ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।
4- स्वस्थ शरीर मंत्र : ॐ ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः । शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै ।।
5- मोक्ष प्राप्ति के लिए मंत्र : ॐ सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते । स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।
विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 526 से 537 नाम
526 आनन्दः आनंदस्वरूप
527 नन्दनः आनंदित करने वाले हैं
528 नन्दः सब प्रकार की सिद्धियों से संपन्न
529 सत्यधर्मा जिनके धर्म ज्ञानादि गुण सत्य हैं
530 त्रिविक्रमः जिनके तीन विक्रम (डग) तीनों लोकों में क्रान्त (व्याप्त) हो गए
531 महर्षिः कपिलाचार्यः जो ऋषि रूप से उत्पन्न हुए कपिल हैं
532 कृतज्ञः कृत (जगत) और ज्ञ (आत्मा) हैं
533 मेदिनीपतिः मेदिनी (पृथ्वी) के पति
534 त्रिपदः जिनके तीन पद हैं
535 त्रिदशाध्यक्षः जागृत , स्वप्न और सुषुप्ति इन तीन अवस्थाओं के अध्यक्ष
536 महाशृंगः मत्स्य अवतार
537 कृतान्तकृत् कृत (जगत) का अंत करने वाले हैं
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' गुप्त नवरात्र:-2 फरवरी-10 फरवरी 2022

गुप्त नवरात्र में साधना को जितनी गोपनीयता के साथ किया जाता है साधक पर उतनी ज्यादा देवी की कृपा होता है

आयुष पंचोली

जब जब धर्म की होंने लगती हैं हानि, धरती पर बढने लगते हैं, अधर्मी मनुष्य और अभिमानी । रोती हैं जब यह धरती माता खून के आँसू, गोओ का रूदन जब चि #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayuspiritual #dashavtaar

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"दशावतार" जब जब धर्म की होंने लगती हैं हानि,
धरती पर बढने लगते हैं, अधर्मी मनुष्य और अभिमानी ।
रोती हैं जब यह धरती माता खून के आँसू,
गोओ का रूदन जब चि

Sharma general store Kachhawa

# मत्स्य #लव

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Parasram Arora

मत्स्य कन्या #कविता

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Ganesh Shinde

मनी
कल्पिले जे
सुरूप सुंदरी!
प्रत्यक्षात अवतरली
समोरी माझ्या, तूच सुंदरी!
मोहिले मन माझे आताशा
तुज पाहता डोळा सुंदरी!
वेडावले मन आता
झालो तुझाच मी
हे सुंदरी!
तुझे
हे वागणे
बरे नव्हे असे कुणा
प्रेमात छळणे, हे सुंदरी!— % & #काव्य #मत्स्य #yq_gns

Gouri Shitole

मत्स्य काव्य #WritersSpecial #मराठीकविता

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माझे बाबा
तुमच्यासारखं
ना कुणीच या जगात,
मन तुमचं लोण्यासारखं,
वितळून जाई हो क्षणात,
मला वाटत राही सारखं,
नशिबवान मी किती
दैवतासारखं
माझे बाबा
मलाच लाभले.

©Gouri Shitole मत्स्य काव्य

#WritersSpecial

Indra jit Singh

चंद्रजीत मत्स्य आहार विक्रेता #nojotophoto

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 चंद्रजीत मत्स्य आहार विक्रेता
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