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ChittaranjanSahoo
अंबा जगदंबा माँ मेरी माँ, तेरे इस रूप में क्या है माँ जब भी सामने आता है आँसू निकल आते है शरीर शीतल हो जाता है मन शांत हो जाता है तुझे देखते रहने के सिवा कोई भी इच्छा शेष नहीं रहती #maa #अंबा
Arun Prajapati
गर्दिश-ए-क़ायनात में रहने का सलीक़ा सीखा है, शब-ए-ग़म में जलने का तरीका सीखा है। ऐ नूर-ए-रुख़सार यूँ हीं छुपाये रख नाला-ए-दिल, इस 'नाचीज़' ने मुखौटे बदल-बदल के जीना सीखा है। गर्दिश-ए-क़ायनात : उलझन भरी दुनियाँ शब-ए-ग़म : दुःख भरी रात नूर-ए-रुख़सार : चेहरे का तेज नाला-ए-दिल : दिल के रोने की आवाज़ #yqdidi #yqbaba #yqhi
ARUN KUMAR PRAJAPATI
गर्दिश-ए-क़ायनात में रहने का सलीक़ा सीखा है, शब-ए-ग़म में जलने का तरीका सीखा है। ऐ नूर-ए-रुख़सार यूँ हीं छुपाये रख नाला-ए-दिल, इस 'नाचीज़' ने मुखौटे बदल-बदल के जीना सीखा है। गर्दिश-ए-क़ायनात : उलझन भरी दुनियाँ शब-ए-ग़म : दुःख भरी रात नूर-ए-रुख़सार : चेहरे का तेज नाला-ए-दिल : दिल के रोने की आवाज़ #yqdidi #yqbaba #yqhi
EDUCATION
पंख फैलाये 🐦 हुए मौर बहुत 🤩 देखे है, 💥 घन पे 💫 छाये घनघोर⛈️ बहुत देखे है, 🔥🔥🔥 नाला 🚣कहता है समंदर से 🌊 उमड़ना सीखो, 🌀 हमने ⛈️बरसात के ये शौर 🤩बहुत देखे है💥💥💥 ©EDUCATION #पंख #फैलाये 🐦 हुए #मौर बहुत 🤩 देखे है, 💥 #घन पे 💫 छाये घनघोर⛈️ बहुत देखे है, 🔥🔥🔥 #नाला 🚣कहता है समंदर से 🌊 उमड़ना सीखो, 🌀 हमने ⛈️बरसात
शब्दिता
हे दुर्गे देवि तुम महाकाल की महाकाली हे दुर्गे देवि तुम विष्णु की वैष्णों हे दुर्गे देवि तुम ब्रह्मा की ब्रह्माणी। हे दुर्गे देवि तुम रुद्र की रौद्रणी हे दुर्गे देवि तुम आत्मा की परमात्मा हे दुर्गे देवि तुम जगत की जननी हो नमस्कार लेखकों🌸 आज के #rzdearcharacters में हम लेकर आये हैं #rzप्रियमांदुर्गा। मां दुर्गा ने ना जाने कितने स्वरूप खुदमें बसा रखे हैं। वो
Dr Upama Singh
तुम जग पालनहार सृजनहार सृष्टि की आधार नारी का कर दो उत्थान हे मां! तुम विश्वास ना उठने देना दुनिया में हो कितना भी अँधेरा बन कर रोशनी तुम राह दिखाना। नमस्कार लेखकों🌸 आज के #rzdearcharacters में हम लेकर आये हैं #rzप्रियमांदुर्गा। मां दुर्गा ने ना जाने कितने स्वरूप खुदमें बसा रखे हैं। वो
Savyasachi 'savya '
Trust me नदी एक, गुजरती है ,शायद ,शहर से, मगर हर गली से, नाला निकल रहा है. दगाबाजी की, कालाबाजारी, कुछ ऐसी, कि हर रिश्ते में, हवाला निकल रहा है. अब, जरा लहराकर, ताव दे, पण्डित! अपनी गरीबी पर .... कमबख्त... चार टके की गरीबी,इसे खरीदने में, बड़ी - बड़ी सरकारों का दिवाला निकल रहा है.... ©Pt Savya kabir नदी एक, गुजरती है ,शायद ,शहर से, मगर हर गली से, नाला निकल रहा है. दगाबाजी की, कालाबाजारी, कुछ ऐसी, कि हर रिश्ते में, हवाला निकल रहा है. अब,
Shankki Sharma
हर एक नाले फ़रियादो में तुझे ही माँगा, जब जब मस्जिद गया सिर्फ़ तुझे ही माँगा। _Word_Collab_Challenge_ Collab करें मेरे साथ Urdu_Hindi Poetry आज का लफ्ज़ है "नाला" अब पहले की तरह एक विजेता नहीं बल्कि 3 विजेता चुना जाएग