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Arsh
₹0Hiत
गोविन्द दामोदर माधवेति श्रोतम् दामोदर स्तुति करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्, वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि, श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव, जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति, विक्रेतुकामा किल गोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:, दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति, गृहे गृहे गोपवधूकदम्बा: सर्वे मिलित्वा समवाप्य योगम्, पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं गोविन्द दामोदर माधवेति, सुखं शयाना निलये निजेऽपि नामानि विष्णो: प्रवदन्ति मर्त्या, ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति, जिव्हे सदैवं भज सुन्दराणि नामानि कृष्णस्य मनोहराणि, समस्त भक्तार्ति विनाशनानि गोविन्द दामोदर माधवेति, सुखावसाने इदमेव सारं दु:खावसाने इदमेव ज्ञेयम्, देहावसाने इदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति, श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णुः, जिव्हे पिबस्वा मृतमेतदेव गोविंद दामोदर माधवेति, जिव्हे रसज्ञे मधुर प्रिया त्वं सत्यं हितं त्वां परमं वदामि, अवर्णयेथा मधुराक्षराणि गोविन्द दामोदर माधवेति, त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते, वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या गोविन्द दामोदर माधवेति, श्रीनाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते श्री देवकी नंदन दैत्य शत्रु , जिव्हे पिबस्वामृतमेतेव गोविंद दामोदर माधवेति , गोपी पते कंसरिपो मुकुंद लक्ष्मी पते केशव वासुदेव जिव्हे पिबस्वामृतमेतेव गोविंद दामोदर माधवेति , ©₹0Hiत दामोदर स्तुति करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्, वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि, श्रीकृष्ण गोविन्द हरे
MANJEET SINGH THAKRAL
Rudra Sharma
जन्मदिनशुभेच्छाः।। अर्थ – आप दीर्घायु और आरोग्य हों, और जिंदगी में हमेशा ही यश प्राप्त करें, जन्म दिवस पर यही शुभकामना है कि आपको हर कदम पर जीत मिले। प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर: सदा त्वाम् च रक्षतु। पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम्।। @ शिवम् शर्मा ©Rudra Sharma त्वं दीर्घायु भवः। #motherlove
दासनुदास सोम
यदि त्वं श्री कृष्णं प्रेम करोषि तर्हि त्वं दु:खं न अनुभवसि श्रीकृष्ण से प्रेम करोगे तो दु:ख का अनुभव नहि होगा if you love krishna then you don't feel pain दासनुदास सोम ©गुमनाम कवि यदि त्वं श्री कृष्णं प्रेम करोषि तर्हि त्वं दु:खं न अनुभवसि श्रीकृष्ण से प्रेम करोगे तो दु:ख का अनुभव नहि होगा if you love krishna then yo
Kamal Pandey
कल की ही बात थी जब जीवन से धधकती ये सास थी जब कदम चलते नहीं थकते थे जब बाते पुरी होकर भी अधुरी रह जाती थी जब जुबान पे नए ज़ायको का स्वाद भर ही भुक दुगनी कर जाता था और आज की बात ये है कि इस जीवन से धधकती आग ने सब राख कर दिया, हर हन्सी को सननाटे ने शान्त कर दिया और कल के जिन्दा से आज के मुर्दे का फ़ासला तय कर दिया! ! -मन से!! जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च | तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि || -गीता Life is a Circle....Life Starts Where Deat
DURGESH AWASTHI OFFICIAL
वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के रूप में कृष्ण ही हैं न कि इन्द्र । _________________________________________ विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधस : सवितारं नृचक्षसं (ऋग्वेद १ /२ २/ ७ सब के हृदय में विराजमान सर्वज्ञाता दृष्टा ! जो राधा को गोपियों में से ले गए वह सबको जन्म देने वाले प्रभु हमारी रक्षा करें।👇 त्वं नो अस्या उषसो व्युष्टौ त्वं सूरं उदिते बोधि गोपा: जन्मेव नित्यं तनयं जुषस्व स्तोमं मे अग्ने तन्वा सुजात।। (ऋग्वेद -१५/३/२) ________________________________________ अर्थात् :- गोपों में रहने वाले तुम इस उषा काल के पश्चात् सूर्य उदय काल में हमको जाग्रत करें । जन्म के समय नित्य तुम विस्तारित होकर प्रेम पूर्वक स्तुतियों का सेवन करते हो , तुम अग्नि के समान सर्वत्र उत्पन्न हो । 👇 त्वं नृ चक्षा वृषभानु पूर्वी : कृष्णाषु अग्ने अरुषो विभाहि । वसो नेषि च पर्षि चात्यंह:कृधी नो राय उशिजो यविष्ठ ।। (ऋग्वेद - ३/१५/३ ) अर्थात् तुम मनुष्यों को देखो हे वृषभानु ! पूर्व काल में कृष्ण जी अग्नि के सदृश् गमन करने वाले हैं । ये सर्वत्र दिखाई देते हैं , और ये अग्नि भी हमारे लिए धन उत्पन्न करे इस दोनों मन्त्रों में श्री राधा के पिता वृषभानु गोप का उल्लेख किया गया है । जो अन्य सभी प्रकार के सन्देहों को भी निर्मूल कर देता है ,क्योंकि वृषभानु गोप ही राधा के पिता हैं। 👇 यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त : -(अथर्व वेदीय राधिकोपनिषद ) १- यथा " राधा प्रिया विष्णो : (पद्म पुराण ) २-राधा वामांश सम्भूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता (नारद पुराण ) ३-तत्रापि राधिका शाश्वत (आदि पुराण ) ४-रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने । 👇 (मत्स्य पुराण १३. ३७ ) ५-(साध्नोति साधयति सकलान् कामान् यया राधा प्रकीर्तिता: ) जिसके द्वारा सम्पूर्ण कामनाऐं सिद्ध की जाती हैं। (देवी भागवत पुराण ) और राधोपनिषद में श्री राधा जी के २८ नामों का उल्लेख है। जिनमें गोपी ,रमा तथा "श्री "राधा के लिए ही सबसे अधिक प्रयुक्त हुए हैं। ६-कुंचकुंकुमगंधाढयं मूर्ध्ना वोढुम गदाभृत : (श्रीमदभागवत ) हमें राधा के चरण कमलों की रज चाहिए जिसकी रोली श्रीकृष्ण के पैरों से संपृक्त है (क्योंकि राधा उनके चरण अपने ऊपर रखतीं हैं ) यहाँ "श्री " शब्द राधा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है । महालक्ष्मी के लिए नहीं। क्योंकि द्वारिका की रानियाँ तो महालक्ष्मी की ही वंशवेल हैं। ऐसी पुराण कारों की मान्यता है वह महालक्ष्मी के चरण रज के लिए उतावली क्यों रहेंगी ? रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिर्यथार्भक : स्वप्रतिबिम्ब विभाति " -(श्रीमदभागवतम १०/३३/१ ६ कृष्ण रमा के संग रास करते हैं। --जो कभी भी वासना मूलक नहीं था । यहाँ रमा राधा के लिए ही आया है। रमा का मतलब लक्ष्मी भी होता है लेकिन यहाँ इसका रास प्रयोजन नहीं है। लक्ष्मीपति रास नहीं करते हैं। भागवतपुराण के अनुसार रास तो लीलापुरुष कृष्ण ही करते हैं।👇 आक्षिप्तचित्ता : प्रमदा रमापतेस्तास्ता विचेष्टा सहृदय तादात्म्य -(श्रीमदभागवतम १०/३०/२ ) जब श्री कृष्ण महारास के मध्य अप्रकट(दृष्टि ओझल ) या ,अगोचर ) हो गए तो गोपियाँ विलाप करते हुए मोहभाव को प्राप्त हुईं। वे रमापति (रमा के पति ) के रास का अनुकरण करने लगीं । यहाँ रमा लक्ष्मीपति विष्णु हैं। वस्तुत यहाँ भागवतपुराण कार ने श्रृंगारिकता के माध्यम से कृष्ण के पावन चरित्र को ही प्रकट किया है।। ©Surbhi Gau Seva Sanstan वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | प
Veer Keh Raha
जो न विस्तार में हैं, न संकुचन में, न सृष्टि में हैं, न प्रलय में, न अहं में हैं, न त्वं में, न द्वंद में हैं, न ही शांति में, जो हैं तो हैं
@krishn_ratii
शिव स्तुति ❤️❤️❤️❤️❤️❤️ महिपाल कृपाल दयाल सर्व जग विदमहे, हरि प्रियं इष्ट रुपं कृपालु जय चिदमहे, ॐ स्वरुपमं जड़ चेतन च शुन्य जगतमहे।। महिपाल कृपाल दयाल सर्व जग विदमहे, हरि प्रियं इष्ट रुपं कृपालु जय चिदमहे, ध्यान मुद्राऐ शांत सूक्ष्मं विश्व व्यापकं हरिहरे।। महिपाल कृपाल दयाल सर्व जग विदमहे, हरि प्रियं इष्ट रुपं कृपालु जय चिदमहे, निर्वाण लक्ष्यं मोक्ष कारंम निराकारमं गौरीप्रिये।। नंदीश्रवरं कालदमनं मृत्युंजयाय त्वं नमस्कुरं, महिपाल कृपाल दयाल सर्व जग विदमहे, हरि प्रियं इष्ट रुपं कृपालु जय चिदमहे!!! #gif श्रावण मास की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏सबसे प्राचीन एवं हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत भाषा के सरल रुप के प्रयोग(हिन्दी मिश्रित संस्कृत) द्वारा भगवा
Divyanshu Pathak
गतिर्भर्ताप्रभु साक्षीनिवासः शरणं सुहृत ! प्रभवः प्रलयः स्थानम निधानम बीजमव्ययम !! : गी. अ.-09/18 🍂🦃😁😂☕🐿🍵🐰🍵🐦🐦🦃🍂💓हरे कृष्ण🐦🦃🍂💓🍵🐰🐰🐦😀🍫🍫💕😁😂☕ एक शिक्षा का पहला लक्ष्य है-ज्ञानार्जन। ज्ञान और ब्रह्म पर्याय शब्द हैं। हम सब ब्रह्माण्ड की प्रतिकृत