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Sonam Khan Khan
इन तारों को देख कर लगता है कि सब अपने है पर कभी-कभी तारे भी नजर नहीं आती है ऐसा ही कुछ जो किस सोच में है क्योंकि कभी वह इतना नजर आते हैं कैसा लगता है कि कभी दूर ही नहीं जाएंगे पर जब जाते हैं लगता है कि कभी लौट कर ही नहीं आएंगे कैसी अजीब जिंदगी है ना ©Sonam Khan Khan हमेशा याद रखना कोई साथ नहीं देगा ऊपर वाली के सिवा
AB
सबसे ज़्यादा खुश वह व्यक्ति जो न तो खुद किसी को ज़्यादा attention देता और न ही खुद attention का भूखा होता,. इस प्रवृति के लोग खुद भी खुश रहते और दूसरों को भी खुश रखते,. ये तुम आज मुझसे लिख कर ले लो,. 🤣🤣 एक और इन्सान है, जो किसी ने कुछ expect नहीं करता वो भी मजे में रहता है,. ऊपर वाली और नीचे वाली situation s
aman6.1
kumaarkikalamse
पलंग, गद्दे, तकिये को पूरा चादर करती है, गरीब, अमीर, सबका पूरा आदर करती है! सर्दी, गर्मी, सावन सबमें डटकर रहती सदा, छोटी, बड़ी छत, सबका पूरा आदर करती है! झोपड़ी की चाय में दूध कम, महल में ज्यादा, पकाने वाली लौ, सबका पूरा आदर करती है! कोई कुछ नहीं पाता, कोई सब पा है जाता, मसान की धरती, सबका पूरा आदर करती है! भाँति-भाँति के लोग, नाना-नाना प्रकार की बातें, ऊपर वाली कुदरत, सबका पूरा आदर करती है! पलंग, गद्दे, तकिये को पूरा चादर करती है, गरीब, अमीर, सबका पूरा आदर करती है! सर्दी, गर्मी, सावन सबमें डटकर रहती सदा, छोटी, बड़ी छत, सब
Amit Mishra
हमारा अलग होना उससे ज्यादा मुश्किल भरा है जितना हमारा साथ चलना कठिन था... प्रेम पर रची गयी हर कविता में मैं तुम्हे पढ़ता हूँ विरह के हृदय भेदी शब्दों को महसूस करता हूँ परिस्थितियों को परिभाषित करते लेख मुझे अपने स
Vikas Sharma Shivaaya'
🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️ 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱हमेशा हमारा आपका मार्गदर्शन करती रहे..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 नवरात्र के पांचवे दिन मां दुर्गा का स्वरूप:मां स्कंदमाता नवरात्र के पांचवे दिन दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा और अर्चना की जाती है-स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है..., स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा- माना जाता है कि मां दुर्गा का यह रूप अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाता है- मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात् कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और इसी तरफ वाली निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है-बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है- सिंह इनका वाहन है-क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है,सर्वदा कमल के आसन पर स्थित रहने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। श्लोक: सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥ Affirmations: 71.मैं जीने के योग्य हूं..., 72.मै एक ऐसी दुनिया बनाने में मदद कर रहा हूं जहां एक दूसरे से प्रेम करना सुरक्षित हैं..., 73.मै सब सीमाओं से ऊपर ऊठ सकता हूं..., 74.मुझे स्वेच्छा से जीने का अधिकार है..., 75.मै अब केवल अपनी अच्छाई देखना चाहता हूं..., बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गई की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान 🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️ 🙌🚩🔱 मां जगदम्बे🔱हमेशा हमारा आपका मार्गदर्शन करती रहे..., 📖✒️जीवन की पाठशाला 📙 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी म
Ankita Tripathi
कोरोना का डर बड़ा है या भूख की आग!! मज़दूरों के साथ हो रहे रोज़ के हादसों से मन एकदम उदास हो जाता है... क्या वो इंसान नहीं हैं या उनका जीवन इतना सस्ता है कि कोई सरकार उनकी सुध
Prakhar Kushwaha 'Dear'
आओ सुनाऊं तुम्हें कहानी गए-गुज़रे उस दौर की, धरती अपनी माता थी तो राष्ट्रभक्ति सिरमौर थी। अब तो सब बस नाम मात्र का देशभक्ति का ज़लसा है, जिन वीरों ने जान गंवाई उनकी गाथा ही कुछ और थी। हमें दिलाने आज़ादी वो मीलों नंगे पांव चले, जिस चिंता में चिता हुए वो चिंता ही कुछ और थी। अनशन बैठे,जेल गए,दिन काले पानी में गुज़रे, झंडा ऊँचा रखने की वो ख़ुद्दारी ही कुछ और थी। हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई सब शान रहे आज़ादी की, हर मज़हब से ऊपर वाली यारी ही कुछ और थी। यूँ ही सोने की धरती न कहा गया अपना भारत, जिन मांओं ने हीरे जन्में उनकी आभा ही कुछ और थी। असमर्थ हुआ मैं कहने में उस राष्ट्रभक्ति की गाथा को, चुकता की जो क़ीमत तुमने वो क़ीमत ही कुछ और थी। आओ सुनाऊं तुम्हें कहानी गए-गुज़रे उस दौर की, धरती अपनी माता थी तो राष्ट्रभक्ति सिरमौर थी। अब तो सब बस नाम मात्र का देशभक्ति का ज़लसा है, जिन
Dhaneshdwivediwriter
प्रेम की पुकार ©Dhanesh Dwivedi प्रेम की पुकार प्रेम कहाँ सुनता है? अक्कसर प्रेम अनसुना करता है, किसी का भी हो, कोई और ही होता है। हम प्रेम पुकारते हैं प्रेम भी प्रेम पुका