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deewana ajeet ke alfaj
धीरे -धीरे सूरज निकल रहा है। अंधेरा राहों से छ्ट रहा है।। पंछी गीत गाते फिजाँ में चहक रहे ।। फिर गीत, गजलो से फिजाँ महक रहे।। कोयल!पेड़ की डाल पर बैठ कर, राह तक रही अपने साजन की।। नही कटती जिन्दगी तन्हा अब,, अबकी वरस तो आ सावन की।। देख फिजाओं से सूरज निकल रहा है।। deewa ajeet धीरे धीरे सूरज निकल रहा है।।
KhaultiSyahi
Sangeeta Verma
कूछ खास हो जाने लगे धीरे-धीरे वो मेरे दिल को भाने लगे तन्हा होती हूँ जरा भी मै धीरे-धीरे वो पास अपने बूलाने लगे कैसे करूँ यकीन मै धीरे-धीरे वो मूझ से नाराज रहेने लगे कहाँ ढूंढू गली गली मैं धीरे-धीरे वो मूझ से लूका छिपी रहेने लगे बहूत बाते होती है अकसर उनसे धीरे-धीरे वो मूझे अनदेखा करने लगे मेरा प्यार एक तरफा ही सही लगा यूँ आज धीरे-धीरे वो भी मूझे दिल से चहाने लगे । (चाँदनी) ©Sangeeta Verma धीरे-धीरे
Anjana Sarkar
धीरे-धीरे हम निकल पड़े उस खुबसूरत जहान की खोज में जहाँ होगी ख्वाइशों पूरी और अरमान सारे कब तक जिएंगे बेजान लाशों की तरह ना कोई मंजिल हे नांहि कुछ पाने की चाह ऐसे जीना भी कोई जीना है इससे तो बेहतर थोड़ी बगावत ही सही है पीछे छोड़ जाउँ इस जालिम दुनिया को ख्वाब सजाउँ और उसे पूरा करने का प्रण लो तोर के सारे बंदिशों को पंख लगा के तुम उड़ चलो चलो चलें उस हसिन जन्नत को पाने जहाँ होगी पूरी हमारे हर एक सपनें। ©Anjana Sarkar #धीरे-धीरे
Parasram Arora
उम्र गुजर रही है धीरे धीरे जैसे उधारी चुक रही हो धीरे धीरे नहीं थकी है कुदारी अभी तक पर थक चुके हाथ पाँव धीरे धीरे गरीबी आड़े आती रही धीरे धीरे कुंवारी बिटिया ब्याही धीरे धीरे अब तो तप चुकी है भट्टी भी अब तो पुराना सोना भी चमकेगा धीरे धीरे फूल कही कर न दे शिकायत काँटों से डरती हुई तितली घुस आयी बाग मे धीरे धीरे उठ रहा था ज़ो दर्द दिल मे कई दिनों से बह जाएगा वो आंसुओं क़े साथ धीरे धीरे ©Parasram Arora धीरे धीरे.......
Roshan-nama
मुझ पे तूने अपना हक खुद खोया है धीरे धीरे मेरे हर दर्द पे डाल नमक तू सोया है धीरे धीरे बर्बाद रहूं आबाद रहूं लेकिन तुझको याद रहु आंखे ना मेरी भीगी बेशक पर दिल रोया है धीरे धीरे धीरे धीरे
Alok Meshram
हमसुखनं उसके संग हो राहा था रकीब धीरे धीरे जां मेरी जां से जा राही थी धीरे धीरे परिंदो ने अमाद दि किनारा नजदिक होने की कश्ती ले गयी मुझे मगर साहिल से दूर धीरे धीरे बनाया था मैने ख्वाबो में प्यार का मंदिर तोड दि उसी बूत ने वो इमारत धीरे धीरे लाया था दिया मै रोशन करने घर अपना उसी ने घर जलाया अपना देखो धीरे धीरे चली थी दुनिया उजाले में साथ अपने छोड गये अपने भी मेरा साथ अंधेरे में धीरे धीरे "अलोक" लिख रहा हैं फलसफा मोहब्बत का खतम हो चली हैं कलम से स्याही धीरे धीरे #धीरे धीरे