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Mahesh Patel
सहेली.... हमारी ना दांन गी पर दिल की दास्तान लिखते रहें... पता ही नहीं चला वह हमारी जिंदगी के पन्ने पलटते रहे... लाला.... ©Mahesh Patel सहेली... पन्नी.…. लाला....
Kailash Chandra
Ajay Kumar
Indian Army Day VALENTINE DAY PULWAMA ATTACK ©Ajay Kumar #ArmyDay जंग में जब भी तुम्हारा बलिदान होगा इतिहास और दिलों पन्नी में तुम्हारा नाम होगा
Vandana
वैसे किसी को ज्ञान की बातें अच्छी लगती नहीं,, सब अपने ही एक्सपीरियंस पर चलते है,, पर फिर भी चलते फिरते एक ज्ञान बांट दू,,,, कभी-कभी हम अपनी छोटे-छोटे कर्मों से भी बहुत बड़े पाप कर देते हैं। जैसे घर में कभी कांच फूट जाए तो उसे खुले में फेंक देना अगर वह कांच किसी को
🇮🇳राणा राजा जायसवाल 🇮🇳
We proud of निर्भया इन जलते हुए रिश्तों की आग में मैं झुलस चूकि हूँ । मां - पापा से दूर होके , इस नई पहेली में उलझ चूकि हूँ l। सोचा न था ,
#maxicandragon
When I see your eyes बकरे बंधे थे बाडे में ओर फूल लगे फिछवाडे में चलते बोरे झांक रहे थे जब हम होते थे अखाड़े में गलती हुई जो पूछ लिया क्या भरा है अंदर बोरों में देख नमीं टपकते आंसू अंतर क्या बकरे, ढोरों में दबक सिसक के ओढ के जाने तिरपाल कैसे वो चलती है वो सौपकर औलाद अपनी फौजियों को देखा करती है हो मजबूर तुम है मजबूर हम मजहब ही मजबूरी है राह अब दिखती नहीं, सामने कुआं पीछे खाई गहरी है #पर्दानशीन #Sadharanmanushya ©#maxicandragon बकरे बंधे थे बाडे में ओर फूल लगे फिछवाडे में चलते बोरे झांक रहे थे जब हम होते थे अखाड़े में गलती हुई जो पूछ लिया क्या भरा है अंदर बोरों म
#maxicandragon
When I see your eyes बकरे बंधे थे बाडे में ओर फूल लगे फिछवाडे में चलते बोरे झांक रहे थे जब हम होते थे अखाड़े में गलती हुई जो पूछ लिया क्या भरा है अंदर बोरों में देख नमीं टपकते आंसू अंतर क्या बकरे, ढोरों में दबक सिसक के ओढ के जाने तिरपाल कैसे वो चलती है वो सौपकर औलाद अपनी फौजियों को देखा करती है हो मजबूर तुम है मजबूर हम मजहब ही मजबूरी है राह अब दिखती नहीं, सामने कुआं पीछे खाई गहरी है #पर्दानशीन #Sadharanmanushya ©#maxicandragon बकरे बंधे थे बाडे में ओर फूल लगे फिछवाडे में चलते बोरे झांक रहे थे जब हम होते थे अखाड़े में गलती हुई जो पूछ लिया क्या भरा है अंदर बोरों म
#maxicandragon
When I see your eyes बकरे बंधे थे बाडे में ओर फूल लगे फिछवाडे में चलते बोरे झांक रहे थे जब हम होते थे अखाड़े में गलती हुई जो पूछ लिया क्या भरा है अंदर बोरों में देख नमीं टपकते आंसू अंतर क्या बकरे, ढोरों में दबक सिसक के ओढ के जाने तिरपाल कैसे वो चलती है वो सौपकर औलाद अपनी फौजियों को देखा करती है हो मजबूर तुम है मजबूर हम मजहब ही मजबूरी है राह अब दिखती नहीं, सामने कुआं पीछे खाई गहरी है #पर्दानशीन #Sadharanmanushya ©#maxicandragon बकरे बंधे थे बाडे में ओर फूल लगे फिछवाडे में चलते बोरे झांक रहे थे जब हम होते थे अखाड़े में गलती हुई जो पूछ लिया क्या भरा है अंदर बोरों म