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Parasram Arora
तिनके की श्रेष्टता सिद्ध हो गई आज क्योंकि ज़ब उसे उड़ाया गया हवाओं द्वारा तो वो उड़ गया था ज़ब लहरों ने उसे बहाया तो वह बह गया था वो तिनका बेहतर देख सकता है और उसका स्पर्श भी जीवंत है उसकी मूक भाषा मे एक मूक सन्देश भी छिपा हुआ है "कि स्वीकार का यथार्थ गरिमामय जीवन दें सकता है कि अपने अंतरमन मे एक अंतहीन डुबकी लगा कर. वर्तमान की मछलियों को नंगे हाथों से पकड़ा जा सकता है " ©Parasram Arora तिनके की श्रेष्टता......
Sandeep kumar Sakhawar
मैं कितना मशहूर हूँ ये मेरे लिये महेत्व नहीं रखता बल्कि मेरे विचारों से कितने लोग अपने अच्छे कार्यों के कारण मशहूर हो रहे हैं ये मेंरे लियें बहुत महेत्व रखता हैं ©Sandeep kumar Sakhawar #hands मेरी श्रेष्ट आत्मा की ओर se
Muskan Raj
पिता श्रेष्ट किरदार सादे जीवन मे अदाकारियाँ नही देखी मैंने , पिता के व्यक्तित्व में कभी भी मक्कारियाँ नही देखी मैने , आपकी मुस्कान ।। #पिता #प्रेम #कविता #समर्पण #त्याग #बेटी #विचार #श्रेष्ट #व्यक्तित्व #आभार #ज़िन्दगी ।
sûmìt upãdhyåy(løvë flūtê)
Prashant Singh Chauhan
चौदह वर्ष की उम्र जिसने शेर का जबड़ा फाड़ दिया, बाल्यवस्था में दुश्मन की छाती पर भगवा गाड़ दिया, वो श्रेष्ट धनुर्धर अग्निवंश का न डरता था अंजाम से, पूरे भारत को मुक्त किया था मोहम्मद गोरी सुल्तान से... चौदह वर्ष की उम्र जिसने शेर का जबड़ा फाड़ दिया, बाल्यवस्था में दुश्मन की छाती पर भगवा गाड़ दिया, वो श्रेष्ट धनुर्धर अग्निवंश का न डरता था अंजाम
Mågîc Võîcë
हुनर है तरसती , राह क्यों है झांकती, लड़कियां हैं लड़कियां , कहकर यह क्यों बांटती !! समाज समाज कहता है, समाज मैं और तुम हो और कौन ,, कभी ये मेरे आड़े आएगा, कभी ये तेरे आगे आएगा !! उसे भी थोड़ा हक़ दो भाई, उसे भी चाहिए आज़ादी, कैद होने किसी घर ,चौखट चारदीवारी में नही आई !! मैं प्रकृति तुम प्रकृति हम प्रकृति की बीज वो, सिर्फ भोग की वस्तु नही घर में हमें सुबह से सींचे जो !! मैजिक जो आज कहता है, कान खोल सुन तू भी मान ले, कद्र कर वो श्रेष्टा है, या बांध अपना सामान ले !! हुनर है तरसती , राह क्यों है झांकती,, लड़कियां हैं लड़कियां , कहकर यह क्यों बांटती !! ©2018MagicVoice हुनर है तरसती , राह क्यों है झांकती, लड़कियां हैं लड़कियां , कहकर यह क्यों बांटती !! समाज समाज कहता है, समाज मैं और तुम हो
Suyash
STATUE OF UNITY READ MORE 👇👇 :::::: STATUE OF UNITY ::::: ----------------------------- सन् 1947 में हमे अंग्रेज़ों से आज़ादी तो मिली लेकिन वैसे नही जैसे हम
भाग्य श्री बैरागी
ये मुर्दरिस मेरी ज़िन्दगी का, मै इसकी नई-नई शागिर्द हूँ, सोचूँ ना कोई दिन इसके बिन, दिनचर्या में इसके इर्द-गिर्द हूँ। नित नए प्रयोग, नए-नए शब्द, नए विचार, मेरी रचनाएँ, अब लिख सकूँ कुछ इतिहास सा बड़ी मेरी आशाएँ। कई लोगों से सुझाव मिले, सीखने को एक मंच मिला, जैसे हो ज़िन्दगी ही, ऐसा नए अध्ययन रंगमंच मिला। जब आई थी यहाँ, मेरे पास केवल एक कृति थी, अब लिखने की ललक और कई कलाकृति हैं। स्वप्न रात्रि के नहीं भोर के दिखते हैं, स्मृतिपटल के साकार किरदार लिखते हैं। यादें इसके साथ कुछ ऐसी भी जुड़ी, मैं इसके लिए अपने घर में सबसे भिड़ी। खाली दिन, खाली शाम रातें भी अधूरी हैं, अच्छी प्रतियोगिता और ख़ुद में निखार लगा अब ज़रूरी है। किसी ने बताया था कि यहाँ लिखने वालों की माँग है, मैंने जबसे पढ़ा इसे तबसे बाबा, दीदी,यहाँ के वामांग हैं। कोराकाग़ज़ मात्राओं और लेखनी के सच्चे भक्त हैं, हम इसलिए ही शुरुआत से कोराकाग़ज़ से आसक्त हैं। 🎀 Challenge-222 #collabwithकोराकाग़ज़ कई लोग मिले यहाँ पर, लेकिन कुछ लोग जिन्हें मैं समझ पाई हूँ, वो ही लोग जिन्हें मैं पढ़कर सीखती हूँ, जि
Divyanshu Pathak
राम और रावण की तुलना कर रहे हो! या हिमायत हो रही धनबल की दिल से। छल कपट और योग-हट से जो भी पाया! मूर्ख रावण ने उसे ही तो गंवाया। तुम सनक और शक्ति में अंतर तो समझो! राम अतुलित शील और पौरुष-पराक्रम। वेदना मानव के दिल में हो गई फिर- ढीठ बनकर लाख पुत्रों को मिटाया, दम्भ फिर भी प्रश्न पूछे श्रेष्ठता का! राम के चरणों की धूलि भी नहीं था, लाज रखली वृद्ध की बस श्रीराम ने सम्मान देकर। विष्णुपद छंद - नियम - चार चरण प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ , 16 - 10 पे यति , चरणांत में एक दीर्घ अनिवार्य । पामाल 'पराजित -पठ ' परंच , पा