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yashwant Chauhan
मुंतज़िर हूं ! सब्र का इंतेहा जानता हूं मत पूछ बेबसी मेरी मैं इश्क़ का जहां जानता हूं by-yashwant chauhan #मुन्तज़िर
Mo k sh K an
मुन्तज़ीर है वक़त कि क़ासिद कोई आए जीने का नहीं, मौत का, पैगाम तो लाए अक़्स आईना हो कर ये जान गया है किसके सगे हैं धूप में गहरे हुए साए जुगनुओं के कारवाँ होते हैं समंदर कोई हो ऐसा जो अंधेरों में निभाए मुन्तज़िर है वक़त कि क़ासिद कोई आए जीना का नहीं, मौत का, पैगाम तो लाए #mera_aks_paraya_tha #मेरा_अक्स_पराया_था #muntazir #मुन्तज़िर #tassavuf
Abeer Saifi
इक ज़रा सी बात पर हम ख़फ़ा हो गये वो शायद थे मुन्तज़िर बेवफ़ा हो गये बाज़ी-ए-इश्क़ में कहाँ होती है हार-जीत जो इनआ'म थे कभी अब सज़ा हो गये मेरा मर्ज़ भी तुम्हीं हो वो चारागर तुम हो जो दवा होते - होते नशा हो गये वो बातें वफ़ा की उन रातों में करना तुम क्या थे कभी क्या से क्या हो गये मुन्तज़िर - इंतज़ार में , चारागर - डॉक्टर
मुन्तज़िर - इंतज़ार में , चारागर - डॉक्टर
read moreAbeer Saifi
इक ज़रा सी बात पर हम ख़फ़ा हो गये वो शायद थे मुन्तज़िर बेवफ़ा हो गये बाज़ी-ए-इश्क़ में कहाँ होती है हार-जीत जो इनआ'म थे कभी अब सज़ा हो गये मेरा मर्ज़ भी तुम्हीं हो वो चारागर तुम हो जो दवा होते - होते नशा हो गये वो बातें वफ़ा की उन रातों में करना तुम क्या थे कभी क्या से क्या हो गये मुन्तज़िर - इंतज़ार में , चारागर - डॉक्टर
मुन्तज़िर - इंतज़ार में , चारागर - डॉक्टर
read moreChintoo Choubey
घर- घर बाजे बधाई,......2 पधारे अवध रघुराई,सखी.....2 दीप जलाओ, मंगल गाओ...... चहुँ ओर फैली कुशलाई,सखी घर-घर बाजे बधाई....... अंगना धुलाओ, चौका सजाओ, छप्पन भोग लगाओ सखी,....... घर-घर बाजे बधाई........2 सखी, मोहनी सूरत, मर्यादा की मूरत, वो ऐसे धनुर्धारी सखी, घर-घर बाजे बधाई......2 चंदन लगाओ, कुंकुम लगाओ, थोड़ा सा कजरा लगाओ सखी,घर-घर बाजे बधाई.... है तो ऐसे बड़के भैया, चारों भैया में मनोहारी सखी, घर-घर बाजे बधाई...........2 चरण पखरो,थकन मिटावो, चर्नामृत से बली-बली जावो नैनन में अपनी बिठावो सखी,..... घर-घर बाजे बधाई.......2 हनुमत भी आए सीता जी भी आए, कुल को सादर कराओ सखी,... घर-घर में बाजे बधाई........2 मंगल गान
मंगल गान
read moreGovind Pandram
सुबह सुबह पूरब में देखो, अत्यंत मनोरम नजारा.. सूर्य की रौशन किरणों से, रौशन हुआ जग सारा.. वसुंधरा में हरियाली की, अनुपम छटा बिखर गई.. जल वायु से पोषित होकर, बाग में कलियाँ निखर गई.. शुरू हो गया फूलों पर, भौरों का आना-जाना.. एक सुमन से दूजे सुमन पर, तितलियों का मंडराना.. तरु की झुकी डालियों पर, कोयल लगे है गाने.. वन से नदियाँ गमन कर रहे, सागर तट तक जाने.. देख सुबह की प्रथम किरण, ओझल हुए सितारे.. फिर से रात की तलाश में, नभ से निकल गये सारे.. इस रंगबिरंगी दुनियाँ के, देखने मंजर प्यारे.. सुबह हुई फिर निन्दियाँ से, जागे नैन हमारे... 'सुप्रभात ' गोविन्द पन्द्राम #सुप्रभात "गान"
#सुप्रभात "गान"
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