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पण्डित राहुल पाण्डेय
**अचार में कितना सारा एडजस्टमेंट है। आम का स्वभाव खट्टा है...गुड़ का स्वभाव मीठा है...मेथी का स्वभाव कड़वा है...मिर्च का स्वभाव तीखा है...नमक की प्रकृति लवणता है...धनिये की प्रकृति कसैली है...फिर भी अचार ने कितना अच्छा एडजस्टमेंट कर लिया है। सभी को अच्छा लगता है और मीठा भी लगता है , उसी प्रकार जिंदगी में सबके साथ एवं सभी के स्वभाव के साथ एडजस्टमेंट करना सीख लें तो सबको कितने अच्छे लगेंगे इस तरह मुश्किल जीवन को भी मधुर तरीके से जिया जा सकता है... महादेव ** ©पण्डित राहुल पाण्डेय **अचार में कितना सारा एडजस्टमेंट है। आम का स्वभाव खट्टा है...गुड़ का स्वभाव मीठा है...मेथी का स्वभाव कड़वा है...मिर्च का स्वभाव तीखा है...नम
Sarita Shreyasi
जागते सोते उस बच्चे को लोरी में एक ही बात सुनायी जाती है, एक नारी की नौकरी की सजा, माँ बेटी दोनों ही पाती है । क्यूँ उछलती उसे देख तू, माँ के लिए है क्यूँ रोती, जाती ही नहीं वह काम पर, यदि उसे तेरी चिंता होती, छोड़ देती पहचान-प्रतिष्ठा, तू जो उसकी प्राथमिकता होती। केवल तुझको जन्म दिया है, पैसों पर तुझे छोड़ दिया है, छोड़ नौकरी,तुझे ही देखती जिम्मेदार यदि, तेरी माँ होती। व्यंग्य और आलोचना सबकी, माँ अकेली कैसे सह पाती है, टूटे मनोभाव के साथ बच्चे को, जाने कितनी सुदृढ़ता दे पाती है। अपनी कोख के कतरे को, अपने कलेजे के टुकड़े को, किसी और के भरोसे जब, वह छोड़ के चली जाती थी। कामकाजी माँ को निर्मम, अहंकारी कहा जाता था तो, जा
Sarita Shreyasi
बँटती माँ और बढ़ती बेटी, अंतत: क्या कर पाती हैं, समय,सुविधा,संबंधों में माँ का विकल्प ढू़ंढ़ लाती हैं। गैरहाजिर माँ की यादें, आधुनिक यंत्रों में भूला दी जाती हैं, ममता के दो बूँद,माँगने से पहले ही, शिशु को कृत्रिम घूँट पिला दी जाती है। अपनी कोख के कतरे को, अपने कलेजे के टुकड़े को, किसी और के भरोसे जब, वह छोड़ के चली जाती थी। कामकाजी माँ को निर्मम, अहंकारी कहा जाता था तो, जा
'नीर'🍁
Sarita Shreyasi
खुश रहती है,चुप रहती है, माँ से दूरी सह जाती है, अब सब खुश रहने लगे हैं, क्यूँकि बिटिया माँ बिन रह जाती है। अपनी कोख के कतरे को, अपने कलेजे के टुकड़े को, किसी और के भरोसे जब, वह छोड़ के चली जाती थी। कामकाजी माँ को निर्मम, अहंकारी कहा जाता था तो, जा
Vidhi
कभी एक अभावग्रस्त बेटे ने कर्ज़ लिया था (कैप्शन में पूरी कविता) कभी एक अभावग्रस्त बेटे ने कर्ज़ लिया था अपनी मेहनत से चाँद तारे तक पहुँचने की जिद करता था किस्मत उसकी कुछ खट्टी थी, थोड़ी मीठी थी चाँद की बस्त
Kulbhushan Arora
मेरा प्रेम पत्र मेरी दूसरी प्रेमिका के नाम इस प्रतियोगिता का फायदा किसी ने उठाया है तो सच पूछो मैंने, हां आज वक्त आ गया है आप सबसे अपने दूसरी प्रेमिका को मिलने का। पहली प्रेमिका तो या