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Dehati Jay Singh 2
कृष्णा वाघमारे, जालना , महाराष्ट्र,431211
Parastish
किसने दर पर ये आहटें कर दीं! तेज़ दिल की ये धड़कनें कर दीं! दश्ते दिल सब्ज़ हो उठा फिर से, आपने कुछ यूँ बारिशें कर दीं! थी उदासी फ़क़त मिरे घर में, आप आए तो रौनकें कर दीं! उन की नज़रों ने यूँ तराशा मुझे, जों ख़ुदा ने इनायतें कर दीं! उसकी चाहत में, मैं हूँ वारफ़्ता, लो बयाँ मैंने, हसरतें कर दीं! ©Parastish दश्त-ए-दिल = दिल का रेगिस्तान/जंगल सब्ज़ = हरा वारफ़्ता = बेसुध, बेखु़द #गजल #sher #Shayari #ghazal #Poetry #parastish #lovepoetry
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर