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Rabindra Prasad Sinha
White 'उसने' तो इंसान बनाया इंसान ने फिर इंसानों को हिन्दू बनाया, मुस्लिम बनाया, इसाई बनाया हिन्दू ने फिर शैव बनाया, वैष्णव बनाया मुस्लिम ने फिर शिया बनाया, सुन्नी बनाया इसाई भी क्यों पीछे रहते कैथोलिक बनाया, प्रोस्टेंट बनाया 'उसने' तो बस 'एक' बनाया जोड़, घटाव और गुणा,भाग तो इंशा ने बनाया इंशा ने ही बनाया ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
वह चाय जिसे पिया था हम दोनों ने एक ही कप में घूँट घूँट, चुभलाते हुए महुए सी मादक और रसीली थी आज जब तुम नहीं हो पी रहा हूँ उसी कप में क्योंकि मेरे और तुम्हारे जीवन के सुंदरतम क्षणों का साक्षी है यह ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White चाहो गर आना अनावृत आना खुशबू की तरह चाँदनी की तरह नदी और पहाड़ की तरह और पूछना पड़े अगर मेरा पता मत आना कोई अपने घर का पता पूछता है क्या ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White जब मैं पेड़ो को पानी देता हूँ तब बदल जाता हूँ हरे भरे जंगल में जब मैं नदी में डूबकी लगाता हूँ तब बहने लगती है नदी मेरे अंतस में जब मैं छूता हूँ पहाड़ को तब जान पाता हूँ कठोरता में रची बसी कोमलता को प्रेम ने बदल दिया है इतना मुझे कि मैं धृणा से भी करना चाहता हूँ प्रेम ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White पेड़ चाहिए छाया नहीं, लकड़ी के लिए पहाड़ चाहिए औषधि नहीं, पत्थर के लिए नदी चाहिए पानी नहीं, रेत के लिए खेत चाहिए धान्य नहीं, धन के लिए हमने लालसा के वशीभूत मार डाले पेड़ मार डाले पहाड़ मार डाली नदियाँ मार डाले खेत मार डाली अपनी खुशियाँ अपना सुख ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White बुरे को बुरा नहीं तो क्या लिखूँ मेरे भीतर जो छुप कर बैठा है निरंतर टोहकता है जैसा हूँ वैसा ही क्यों न दिखूँ ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना न होना तड़प का सब सह जाना सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना सबसे खतरनाक वह दिशा होती है जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए पाश ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
उसने कहा, ताली बजाओ, थाली बजाओ तुमने ताली बजाई,थाली बजाई उसने कहा, दिये जलाओ, टार्च जलाओ तुमने दिये जलाए, टार्च जलाया जब हजारों लोग हजारों कोस पैदल चल रहे थे वह चुप था और तुम भी चुप थे जब पैदल यात्रा की थकान से बेहोशी की नींद में सोये लोग ट्रेन से कट कर मर रहे थे तब वह चुप था और तुम भी चुप थे जब अस्पताल में जगह नहीं थी आँक्सीजन नहीं मिलने से बच्चे, बूढ़े, जवान तड़प रहे थे, मर रहे थे तब वह चुप था और तुम भी चुप थे इतिहास उसको एक चालवाज और तुम्हें दिमागी विकलांग के रूप में दर्ज करे तो क्या आश्चर्य ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ