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BANDHETIYA OFFICIAL
द्वितीया का चांद, तृतीया का अक्षय, क्षय न हो चांद,क्षय न हो अक्षय, अक्षय बनी रहे अक्षुण्ण एकता, फिर एकता रहे उसमें जो अनेकता, विविधता के देश में देवता जो देखता, लगती नजर न ग्रह की,जागो देश-देवता ! 🙏🙏🏽🙏🙏🏽 ©BANDHETIYA OFFICIAL द्वितीया चांद, तृतीया अक्षय ! #MeriEid
Mukesh Rathore (Bannykrezy4)
भाई बहन के इस प्यार भरे पर्व भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) की हार्दिक शुभकामनाएं... 🤗❤️🤗 ©Mukesh Rathore यम द्वितीया 🤗 . . . #Bannykrezy4 #sister #Bhaidooj
Sachin Yadav
भाई यम के बहन यमुना के घर आगमन से चिन्हित स्नेह-पर्व भ्रातृ-द्वितीया की अनेक शुभकामनाएँ।
Poetry with Avdhesh Kanojia
अधिक बात नहीं कहनी है कहता हूँ मैं सार। रक्त सम्बंध पर नहीं है आश्रित भाई बहन का प्यार। सुख सौभाग्य से भरी रहे भाई बहन की दुनिया। मंगलमय हो सभी जनों को आज की भ्रात द्वितीया।। #भाईदूज #poetry #poem #poet #love #life अधिक बात नहीं कहनी है कहता हूँ मैं सार। रक्त सम्बंध पर नहीं है आश्रित भाई बहन का प्यार। सुख सौभाग्य
Redham
पितृपक्ष : Pitrupaksh Day 2 द्वितीया जैसे कि हर भारतीय त्योहार मनाने की कुछ नीति कुछ नियम होते हैं, उसी तरह पितृपक्ष के भी कुछ नियम है ।
KP EDUCATION HD
KP TAILOR HD video ©KP TAILOR HD हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि पर भाई दूज या यम द्वितीया (Yam Ditiya 2022 Date) का त्योहार मनाया जाता है
के_मीनू_तोष
पुत्र पुत्री में किये जाने वाले भेद भाव को उद्बोधित करती ये एक छोटी सी रचना ... #hindi #nojotohindi #nojotokhabri #kavita #kavishala #poetr
Insprational Qoute
निज शब्दों का यश व मान होता है, चोरी का शब्द घोर अपमान होता है, निज शब्द ही स्व हृदय से निकलते है, अविरल धारा सम कल कल बहते है। #चोरीकाशब्द_काव्य_संगीत 🎑काव्य संगीत द्वितीया प्रतियोगिता में आपका स्वागत करता है। आप 30 शब्दों में अपनी सराहनीय श्रेष्ठ उत्कृष्ट अनुपम उत्त
रजनीश "स्वच्छंद"
समास।। मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ, एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ। मध्य पदों को छोड़ कर, मैं समस्त पद बना। पहले लगा जो पूर्वपद, अंत मे उत्तरपद जना। नकचढ़ी या हथकड़ी, मैं हूँ शब्दों की लड़ी। एक वाक्य को समा लिया, किया लघु तेरी घड़ी। तेरे मुख चढ़ा रहा, मैं भक्तियों का लोप कर। कभी बदल दूँ अर्थ तो, न दुख मना न क्षोभ कर। भेद मेरे जान ले, सिमटता हूँ छः प्रकार में। काव्य गीत लेख कथा, गूंजता हूँ अलंकार में। अव्यय जो आगे चल रहा, अव्ययीभाव मुझको बोलते। प्रथमपद प्रधान है, जो वाणी-तुला ले तोलते। प्रतिदिन, प्रतिपल, यथाशीघ्र यथाशक्ति हो। आमरण निर्विकार भी, अनुरूप यथाभक्ति हो। प्रधान हुआ जो दूसरा, मैं तत्पुरुष बन जाता हूँ। कारकों का लोप कर, नवशब्द हो तन जाता हूँ। तुलसीदासकृत धर्मग्रंथ, राजपुत्र रचनाकार हूँ। देशभक्ति राजकुमार, मनुजहित गीतासार हूँ। कर्मधारय मैं हुआ, उत्तरपद ही प्रधान है। विशेष्य संग विशेषण, उपमेय संग उपमान है। प्राणप्रिये चंद्रमुखी, श्यामसुंदर नीलकमल। अधमरा देहलता, परमानन्द चरणकमल। उत्तरपद और पूर्वपद का, सामंजस्य खास है। आगे अंक या पीछे अंक, यही द्विगु समास है। पंचतंत्र या नवग्रह, ये त्रिलोक त्रिवेणी है। चौमासा नवरात्र कहो, ये पंचप्रमान अठन्नी है। पद न कोई गौण हो पाए, दोनों रहें प्रधान ही। द्वंद्व समास कहायें ये, रखते दोनों का ध्यान भी। नर-नारी और पाप-पुण्य, सुख-दुख ऊपर-नीचे है। अपना-पराया देश-विदेश, गुण-दोष आगे-पीछे है। मैं छीनू परधानी सबकी, पद मैं तीजा बनाता हूँ। अपना मतलब रहूँ छुपाये, बहुब्रीहि कहलाता हूँ। वीणापाणि और दशानन, लंबोदर पीताम्बर हूँ। चक्रधर और गजानन, मैं घनश्याम श्वेताम्बर हूँ। मेरी बातों को गांठ बांध लो, काम तेरे मैं आऊंगा। ले रहा जो छोटा विराम अभी, फिर आ मैं भरमाउंगा। ©रजनीश "स्वछंद" समास।। मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ, एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ। मध्य पदों को छोड़ कर, मैं समस्त पद बना। पहले लगा जो पूर्वपद, अंत मे उत्तरपद जना।