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R S Choudhary
नब्ज कांटी तो खून लाल ही निकला सोचा था सबकी तरह ये भी बदल गया होगा !! नब्ज कांटी तो खून लाल ही निकला... Suman Zaniyan
Nisheeth pandey
◆शीर्षक - वक्त का फेर◆ __________ एक वक्त था जब हम पटाखा जलाते थे और मजे लेते थे ... अब तो हम पटाखे हैं हालात के.... वक्त मजे लेते हैं..... अपनी नब्ज कांटी तो खून लाल ही निकला.. सोचा था सबकी तरह ये भी बदल गया होगा.... ज़िन्दगी मे कई मुश्किलें आती है और इन्सान ज़िन्दा रहने से घबराता है, ना जाने कैसे हज़ारो कांटो के बीच, रह कर भी एक फूल मुस्कुराता है....... 🤔#निशीथ🤔 ©Nisheeth pandey ◆शीर्षक - वक्त का फेर◆ __________ एक वक्त था जब हम पटाखा जलाते थे और मजे लेते थे ... अब तो हम
Author Mahebub Sonaliya
इस कदर दिलका सुकूँ, चैन न हारे कोई रात की रात गिना करता है तारे कोई उम्र यूँ हमने तेरे शहर में कांटी हमदम जैसे प्यासा मरे दरिया के किनारे क
Dr Jayanti Pandey
उसने कहा..... उसने कहा कि वो लौटा देगा सब-कुछ जो मुझसे लिया है, साझे जीवन की हर पूंजी... और मुक्त हो जाएगा..... क्या सचमुच लौटा सकता है...... (कृपया पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) क्या क्या लौटा पाओगे.....… संबंध तोड़ कर जाते हुए उसने बड़े गुरूर में कहा लौटा दूंगा तुम्हें वो सबकुछ जो तुमने है दिया, वो सोचने लगी क्या स
Dr Upama Singh
“खुद की मुजरिम” खुद की गवाही मैं खुद दे रही हूं फिर भी मुजरिम बन कर जी रही हूं जुर्म खुद मैंने ही किया तो खता क्या है खुद की मुजरिम हूं दिल आज सुनाओ फैसला और सजा क्या है मैं खुद अपनी सोच की मुजरिम ठहरी हूं अब ये मैं अदालत खुद ही झेलूंगी गर कहना हो किसी को कई किस्से पर सुनने वाला कोई न रह पाए तो समझ लेना खुद की मुजरिम हूं प्यार, दिल और आखों की मुजरिम हूं मोहब्बत सच्ची इबादत से की थी मैंने तुझसे अब तुझे हकीकत बताऊं खुद मुजरिम हूं गवाह नहीं प्यार की हाथों टूटी और धोखा खाई हूं उसकी कसक दिल में इसलिए खुद को मुजरिम पाई हूं गुनाह किया अपने दिल और जिंदगी से रूह खुद से रिहाई की दरख्वास्त करने लगी जब प्यार तोड़ दे आपके सारे ख़्वाब और एतबार कितने ज़ख्म दिए हैं मैंने दिल और आंखों को इसका कोई नहीं हिसाब भंवर में थे पर उससे निकल नहीं पाई जबकि किनारों की मंजिल थी करीब तो समझ लिया खुद की मुजरिम हो गई हूं कितने रातें कांटी हैं रोते हुए खुद को घिरा पाया था अवसाद में हम खुद धारा 302 के मुजरिम हैं खुद की जिंदगी और ख्वाइशों को मारा है हमने ज़हर मैने खुद पिया है इसका कोई अफ़सोस नहीं मैं मुजरिम खुद की, दुनिया ने मुजरिम नहीं माना हैl खुद की गवाही मैं खुद दे रही हूं फिर भी मुजरिम बन कर जी रही हूं जुर्म खुद मैंने ही किया तो खता क्या है खुद की मुजरिम हूं दिल आज सुनाओ फैसला औ