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Sanjeet Kumar
वक्त तेरा लाख सक्रिय जो भी सीखा है तुझसे ही सीखा है ©Sanjeet Kumar वक्त तेरा लाख सक्रिय जो भी सीखा है तुझसे ही सीखा है #Motivational #treanding
वक्त तेरा लाख सक्रिय जो भी सीखा है तुझसे ही सीखा है Motivational treanding
read moreParasram Arora
असल मे मरघट और महल का फासला उनके लीए ही है जिनके मन मे महल की आकांशा है मरघट और महल मे कोई फासला नही है फासला हमारी आकांक्षाओं मे है हम महल चाहते हैँ... मरघट हम नही चाहते इसीलिए फासला है. जहा महल खड़े हैँ वहा मरघट बहुत बार बन चुके जहाँ.मरघट बने हैँ वहा बहुतपहले महल बन कर गिर चुके हैँ और सब महल अंततः मरघट बन जाते है और सब मरघटोपर महल खडे हौ जाते हैँ फर्क क्या है? फासला क्या है? ©Parasram Arora फर्क क्या है? फासला क्या है?
फर्क क्या है? फासला क्या है?
read moreMr.Duke
गुलाब, ख़्वाब, दवा, जहर,जाम,क्या~क्या है। मैं आ गया हूं महफ़िल में,बस बता ©Mr.Duck~AK Shayar क्या क्या है????? #ShahRukhKhan
क्या क्या है????? #ShahRukhKhan #शायरी
read moreDeepak Namdev
बस देखते जाओ..... क्या - क्या होता है | #gif क्या क्या होता है
क्या क्या होता है #Gif
read moreDeepak Pandit
मंजिलें क्या है, रास्ता क्या है? हौसला हो तो फासला क्या है ©Deepak Pandit मंजिलें क्या है, रास्ता क्या है? हौसला हो तो फासला क्या है
मंजिलें क्या है, रास्ता क्या है? हौसला हो तो फासला क्या है #Shayari
read moreEk villain
अवसर साल से दलित राजनीति शिविर से लिखें आलेख में संजय गुप्ता ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं इनमें से एक प्रत्याशी चयन में कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका होनी चाहिए इसके लिए उन्होंने अमेरिका के प्राइमरी क्रिया का उदाहरण दिया है इस पार्टी में सही मायने में आंतरिक लोकतंत्र स्थापित होगा जिसके गौरव आओ इन दिनों देखने को मिल रहा है सबसे अहम है जो पार्टियां अपने दल में अतिरिक्त लोकतंत्र होने का दावा करती है और कार्यकर्ताओं को खास महत्व देने की बात करती हैं अगर उन्हें ही भी जातीय संकरण संसाधन के ऐसे ही आया था दलबदलू नेता ऊपर निर्भर रहना पड़ा तो यह बेहद चिंताजनक होगा इसलिए बदलाव कि ऐसे काम ही सामने आती है जैसे नेता के क्षेत्र में जनता निराश रहती हैं दल और शिक्षामित्रों के पतन के कारण मतदाताओं को उन्हीं द्वारा स्वीकार करना पड़ता है कार्यकर्ताओं की भी अपेक्षा होती है आजकल राजनीति में जाति धर्म के नाम पर विचारों की मांग खूब होती है सवाल उठता है कि समावेश राजनीति की हिमायती करने वाले दलों के पास संबंधित जातियों को आकर्षित करने के लिए खुद के चेहरे क्यों नहीं होते जाती भारतीय समाज का यथार्थ है मगर इसे एक धागे में पिरोने की वजह दोहन की परवर्ती राजनेताओं में पाई जाती है जबकि मौजूद सरकार के तमाम जून कल्याणकारी योजनाओं का लाभ कभी-कभी जाति धर्म की गरीब तबकों को भी मिलना चाहिए ©Ek villain # प्रत्याशी चयन में सक्रिय रहे कार्यकर्ता #Walk
Vickram
काफी लम्बे अरसे से खुद को समझाते आया हुं मैं । कल जो समझ जाता था आज वो मानता ही नहीं । कौन सा राज है जो मुझे मे ही समझ नहीं आ सका । लगता है कि मैं खुद को कभी समझ पाया ही नहीं । ©Vickram बात क्या है,,, और दुनिया क्या है,,,
बात क्या है,,, और दुनिया क्या है,,, #शायरी
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