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Abhishek Mokalpuri
आसान नहीं है किसी के इश्क़ में यूं खो जाना जैसे होता है इलाहाबाद से प्रयागराज हो जाना.. आसान नहीं है किसी के इश्क़ में यूं खो जाना जैसे होता है इलाहाबाद से प्रयागराज हो जाना..
Divyanshu Pathak
किन किन चट्टानों से टकराई, निर्भय चलती रही फिर भी। किसी नदी के समान वह, मन्ज़िल को ढूंढ रही थी। पराक्रमी और दृण विश्वासी, उस अलगाववादी हिंसक- समय की कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी- सुभद्रा कुमारी चौहान। ये देश आपको भूला नहीं है - आप तो नई पीढ़ी के लिए चेतना हो। मेरी ओर से जन्मदिन की शुभकामनाएं। भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ क
AS Sabreen
दिसंबर की रातें है, सर्दियों का आलम है, और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा। बेहिसाब किया विकास इन्होंने धर्म के हर मुद्दे में, लेकिन देश की उन्नति में योगदान बिल्कुल ठप रहा। मुगलसराय से दीनदयाल। इलाहाबाद से प्रयागराज। शिक्षा, बेरोजगारी, चिकित्सा अरे छोड़ो फिजूल है। अर्थव्यवस्था कहां मायने रखती है इनके लिए, रुपया कौड़ी के भाव भी इनको क़ुबूल है। ऊपर से वो जनसभाएं भी करने से नहीं थक रहा। और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा। उन्नाव,कठुआ,निर्भया और जाने कितने ही, इंसाफ की तलाश में अब तक भटक रहे है। गाय की कीमत इंसान से बढ़कर हो जहां, उस देश के वासी सचमुच सनक रहे है। सुकून-ए-वतन से ज्यादा सीएए,एनआरसी,जरूरी है, जबकि गली गली में विद्रोह भड़क रहे है। शिक्षा के मंदिर में लाठियां चल रही है, लखनऊ,दिल्ली,मैंगलूरू,शहर के शहर दहक रहे है। फिर भी हर आवाज अनसुनी कर वो अपनी ही मंत्र जप रहा। और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा है। #December#Day19#दिसंबरकीएकरात दिसंबर की रातें है, सर्दियों का आलम है, और देश है कि जून कि दुपहरी सा तप रहा। बेहिसाब किया विकास इन्होंने धर्
kavi manish mann
वो पहली बार जब प्यार हुआ,हलचल दिल में सौ बार हुआ। मैं भी था कुछ शर्मिला सा,वो भी थी कुछ शर्मीली सी। न मैं था कुछ कहा पाया,न वो थी कुछ कह पाई। नज़रों से नज़रें मिलती थी, मीठी सी दर्द उठती थी। लबों पे बात न आती थी, ख्वाबों में खूब तड़पती थी। आज तलक पछताता हूं, महज़ सोच सोच रह जाता हूं। हाले - ए - दिल किसे सुनाता हूं,दिल में ही ज़ख्म दबाता हूं। न उससे ही कुछ सिकवे हैं,न ख़ुद से ही कुछ शिकायत है। शायद वक्त की फर्माइश थी,जो हमको मिली रुसवाई थी। Ⓜ️Ⓜ️काल्पनिक कहानीⓂ️Ⓜ️ बात उन दिनों की है। जब मैं नौवीं कक्षा में दाखिला लिया था। उन्हीं दिनों पापा के साथ काम के सिलसिले में उत्तराखंड जान
Aprasil mishra
"नारी अस्मितायें एवं सामाजिक सुरक्षा" एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर
Aprasil mishra
"नारी अस्मितायें एवं सामाजिक सुरक्षा" एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर
Hrishabh Trivedi
😊मामा आ गए😊 (अनुशीर्षक में पढ़े) बात कुछ साल पुरानी, मैं इलाहाबाद में था और मेरा ग्रेजुएशन का फाइनल ईयर चल रहा था। ग्रेजुएशन के साथ मैं SSC CGL की कोचिंग भी कर रहा था। मैं p
siddharth vaidya
किसी ने आबाद कर दिया किसी ने बर्बाद कर दिया किसी ने दीन-ए-इलाही को इलाहाबाद कर दिया। सिद्धार्थ वैद्य #इलाहाबाद