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INDIA CORE NEWS
꧁ARSHU꧂ارشد
काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर , फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ ... ©꧁ARSHU꧂ارشد काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर , फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ ... Anshu writer Ritu Tyagi Anupriya Ishika Kalpana Ko
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Himanshu Prajapati
Black उसकी गली में बार-बार आना जाना अच्छा लगता है, हर किसी का मिजाज खुद को दीवाना लगता है, एक वही शख्स अपना बाकी सब बेगाना लगता है, खुद ही खुद से रूठ कर खुद को मनाना अच्छा लगता है, हर कलर का पहनावा उस पर जंचता है, जब होती है किसी से मोहब्बत तो पतझड़ भी सुहाना लगता है..! ©Himanshu Prajapati #Thinking उसकी गली में बार-बार आना जाना अच्छा लगता है, हर किसी का मिजाज खुद को दीवाना लगता है, एक वही शख्स अपना बाकी सब बेगाना लगता है,
( prahlad Singh )( feeling writer)
ll वो मुड़ा, मुझको मुड़ कर देखा नही एक फूल था हाथ से, उसको फेका नही में उस फूल का अकेला कांटा हूं जो टूटा तो पर हाथ से निकला नही ll ©( prahlad Singh )( feeling writer) हाथ से निकला नही#Tulips
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- पिता की बात जब भी तू समझना सीख जायेगा । कठिन से भी कठिन राहे तू चलना सीख जायेगा ।। बनाओ नेक को साथी बुराई त्यागकर सारी । नहीं भाई तुम्हारा भी बिगड़ना सीख जायेगा ।। अदाओ का हमें अपनी दिखाओ आज तुम जादू । सुना है इक इशारे पे वो हँसना सीख जायेगा ।। सँवर कर और अब ऐसे नहीं निकला करो बाहर । दीवाना देखकर तुमको मचलना सीख जायेगा ।। मिलेगी जब उसे ठोकर यहाँ हालात से जिसदिन । यकीं मानो उसी दिन से वो चलना सीख जायेगा ।। अभी नादान है देखो नहीं घर की फिकर कोई । पडेगा बोझ जब घर का सँभलना सीख जायेगा ।। चुनावी दौर है आया प्रखर मुमकिन नहीं कुछ भी । कहानी आज वो झूठी भी गढ़ना सीख जायेगा ।। २२/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- पिता की बात जब भी तू समझना सीख जायेगा । कठिन से भी कठिन राहे तू चलना सीख जायेगा ।।
Ashraf Fani【असर】
निकला जेल से पेंशन ऐंठ के माफीवीर बुलबुल पर बैठ के । ©Ashraf Fani【असर】 निकला जेल से पेंशन ऐंठ के माफीवीर बुलबुल पर बैठ के
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कट जायेंगे दिन सभी , चले आप हम साथ । छूट न पाये बस कभी , इन हाथों से हाथ ।। तुमको पाकर ही यहां, निकला जीवन अर्थ । अब तो लगता है हमें , तुम बिन जीवन व्यर्थ ।। संग तुम्हारे हो नहीं ,खुशियों का अब अंत । तुमको पाकर आज जो , खुशियाँ मिली अनंत ।। कभी-कभी मन में उठे , मेरे अब संताप । जाने कब किसको यहाँ , करना पड़े विलाप ।। दिन जीवन के चार है , छोड़ो ये घर द्वार । हम तुम दोनों से यहां , कोई करें न प्यार ।। आओ अपनी प्रीति की , अलग करे पहचान । हम तुम दोनों संग में , करे प्राण बलिदान ।। १५/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कट जायेंगे दिन सभी , चले आप हम साथ । छूट न पाये बस कभी , इन हाथों से हाथ ।। तुमको पाकर ही यहां, निकला जीवन अर्थ । अब तो लगता है हमें , तुम ब