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N S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} ॐ–कारं परमानन्दं सदैव सुख सुन्दरीं। सिद्ध लक्ष्मि! मोक्ष लक्ष्मि! आद्य लक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि, नारायणि! नमोऽस्तु ते। प्रथमं त्र्यम्बका गौरी, द्वितीयं वैष्णवी तथा। तृतीयं कमला प्रोक्ता, चतुर्थं सुन्दरी तथा। पञ्चमं विष्णु शक्तिश्च, षष्ठं कात्यायनी तथा॥ वाराही सप्तमं चैव, ह्यष्टमं हरि वल्लभा। नवमी खडिगनी प्रोक्ता, दशमं चैव देविका॥ एकादशं सिद्ध लक्ष्मीर्द्वादशं हंस वाहिनी। ©N S Yadav GoldMine #flowers {Bolo Ji Radhey Radhey} ॐ–कारं परमानन्दं सदैव सुख सुन्दरीं। सिद्ध लक्ष्मि! मोक्ष लक्ष्मि! आद्य लक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥ सर्व मंगल मां
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White {Bolo Ji Radhey Radhey} ॐ–कारं परमानन्दं सदैव सुख सुन्दरीं। सिद्ध लक्ष्मि! मोक्ष लक्ष्मि! आद्य लक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि, नारायणि! नमोऽस्तु ते। प्रथमं त्र्यम्बका गौरी, द्वितीयं वैष्णवी तथा। तृतीयं कमला प्रोक्ता, चतुर्थं सुन्दरी तथा। पञ्चमं विष्णु शक्तिश्च, षष्ठं कात्यायनी तथा॥ वाराही सप्तमं चैव, ह्यष्टमं हरि वल्लभा। नवमी खडिगनी प्रोक्ता, दशमं चैव देविका॥ एकादशं सिद्ध लक्ष्मीर्द्वादशं हंस वाहिनी। ©N S Yadav GoldMine #flowers {Bolo Ji Radhey Radhey} ॐ–कारं परमानन्दं सदैव सुख सुन्दरीं। सिद्ध लक्ष्मि! मोक्ष लक्ष्मि! आद्य लक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥ सर्व मंगल मां
aneesh babu kotta
Rajeswari Rath
जीवन में समय चाहे सुख की हो या फिर दुःख की हो अपनो का साथ अत्यंत आवश्यक होता है।सुख हो तो बढ़ जाता है और दुःख हो तो बंट जाता है।अपनो के साथ समय कब बीत जाता है पता भी नहीं चलता।परंतु याद रखिए अपना वो जो विपत्ति के समय आपके साथ हो,अपनो की परख समय की कसौटी पर की जाती है और अपनो के साथ समय का पता नही चलता है पर समय के साथ अपनो का पता चल जाता है। एक संस्कृत श्लोक उदाहरण के लिए- उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे, राजद्वारे श्मशाने च यतिष्ठति स बान्धवः।। संस्कृत श्लोक- उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे, राजद्वारे श्मशाने च यतिष्ठति स बान्धवः।। बन्धु कौन है?सुभाषित मे इसकी परिभाषा द
Arsh
Shaarang Deepak
Divyanshu Pathak
"व्याकरण" क्रमशः 02 प्राचीन ग्रंथों में 15 पूर्वपाणिनि आचार्यों के बारे में जो थोड़ी बहुत जानकारी है संक्षिप्त में आपको बताता हूं ! 1.शिव (महेश्वर)---महाभारत में शिव को वेदांगों का प्रवर्तक कहा गया है । महाभारत में ही शिव को सांख्ययोग का प्रवर्तक बताया है! गीत और वाद्य का तत्वज्ञ शिल्पीयों में श्रेष्ठ बताया गया है ! समस्त शिल्प विद्या का प्रवर्तक शिव को ही कहा है ! शिव ने ही 14 माहेश्वर सूत्रों की रचना की जिन्हें (अ इ उ ण आदि ) के रूप में पहचाना जाता है ! शिव के व्याकरण को "ईशान व्याकरण" कहा जाता है ! 2. बृहस्पति, 3, इंद्र दोनों का वर्णन पिछली पोस्ट में हमने बताया है ! 4. वायु---तैत्तिरीय संहिता में उल्लेख है कि इंद्र ने व्याकरण की रचना में आचार्य वायु का सहयोग लिया था ! 5. भारद्वाज---भारद्वाज बृहस्पति के पुत्र हैं ऋकतन्त्र (1-4) के अनुसार भारद्वाज ने इंद्र से व्याकरण सीखा ! 😂😃🍓#पंछी🍓#पाठक😰😁🍓😭😂#व्याकरण🍹🎂😙#वैदिक शिक्षा😄😀😁#भारत दर्शन😭😃😂😙 6.भागुरि--- बृहत्संहिता (47-2) के अनुसार भागुरि ब्रह्दगर्ग के शिष्य थे । इनके
Divyanshu Pathak
हमारे पुरखों ने उपासना को अनिवार्य बताया।सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद तारे निकलने तक इसका एक मात्र कारण लम्बी आयु और बेहतर स्वास्थ्य था। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 न तिष्ठति तु यः पूर्वां नोपासते यश्च पश्चिमाम्। स शूद्रवद्बहिष्कार्य: सर्वस्माद् द्विजकर्मणः।। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 यदि तुम प्रातः और सांयकाल में उपासना नहीं करते हो तब तुम शूद्रता को प्राप्त हुए श्रेष्ठ कर्म से बहिष्कृत (विमुख) हो जाओगे। (मनुस्मृति अध्याय -02 श्लोक - 103) जब अर्थ का अनर्थ कर दिया जाता है तो हमें ठीक होने वाली बात भी गलत मालूम पड़ती है।लेकिन स्वविवेक से यह ज़रूर चिंतन करना चाहिए कि सही क्या है?कु
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White यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ प्रह्लाद ने कहा-पिताजी! मैंने जो पढ़ा है वह सुनिये-l श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्॥ {Bolo Ji Radhey Radhey} (श्रीमद्भा० ७।५।२३) जय श्री राधे कृष्ण जी...... 'भगवान् विष्णु के नाम और गुणों का श्रवण एवं कीर्तन करना, भगवान् के गुण, प्रभाव, लीला और स्वरूप का स्मरण करना, भगवान् के चरणों की सेवा करना, भगवान् के विग्रह का पूजन करना और उनको नमस्कार करना, दास भाव से आज्ञा का पालन करना, सखा-भाव से प्रेम करना और सर्व स्वसहित अपने-आपको समर्पण करना।' ऐसी बात सुनकर हिरण्यकशिपु चौंक पड़ा और उसने पूछा-यह बात तुझे किसने सिखायी? मेरे राज्य में मेरे परम शत्रु विष्णु की भक्ति का उपदेश देकर मेरे हाथ से कौन मृत्यु मुख में जाना चाहता है? ©N S Yadav GoldMine #good_night यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्म
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White यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ प्रह्लाद ने कहा-पिताजी! मैंने जो पढ़ा है वह सुनिये-l श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्॥ {Bolo Ji Radhey Radhey} (श्रीमद्भा० ७।५।२३) जय श्री राधे कृष्ण जी...... 'भगवान् विष्णु के नाम और गुणों का श्रवण एवं कीर्तन करना, भगवान् के गुण, प्रभाव, लीला और स्वरूप का स्मरण करना, भगवान् के चरणों की सेवा करना, भगवान् के विग्रह का पूजन करना और उनको नमस्कार करना, दास भाव से आज्ञा का पालन करना, सखा-भाव से प्रेम करना और सर्व स्वसहित अपने-आपको समर्पण करना।' ऐसी बात सुनकर हिरण्यकशिपु चौंक पड़ा और उसने पूछा-यह बात तुझे किसने सिखायी? मेरे राज्य में मेरे परम शत्रु विष्णु की भक्ति का उपदेश देकर मेरे हाथ से कौन मृत्यु मुख में जाना चाहता है? ©N S Yadav GoldMine #good_night यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्म