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सानू
ज़माने ने बता तुझको यहाँ अब तक दिया क्या, सिकन्दर भी गया चुपचाप ही तो रहा क्या, ये दुनिया क्या कहेगी प्रश्न सर पर था हमेशा, कि तेरी ख़ाक भी आखिर उड़ाई और बचा क्या। ज़माना #hindi #yqdidi #yqhindikavita #hindipoetry
ज़माना #Hindi #yqdidi #yqhindikavita #hindipoetry
read moreसानू
आसमाँ तन्हा रहा प्यासी तड़पती है ज़मीं, ढूंढती खुद में किसी को खुद में खुद की है कमीं, एक उसके साथ से ही तो सहारा है मिला, रात भी वरना सताती है मुझे ये शबनमीं। शबनमी रात। #yqdidi #yqhindi #yqhindikavita #hindikavita #shayari
शबनमी रात। #yqdidi #yqhindi #yqhindikavita #hindikavita shayari
read moreसानू
दिल कहीं ना लगे तो चले आइये, क्यों गये दूर हमसे चले आइये, याद आते रहे कैफ़ के पल हमें, मेरी जान आइये अब चले आइये, ना ही मीरा कहा न ही राधा हुई, जो भी हो आप मेरे चले आइये, जो गुज़ारे हुए साथ में पल कभी, उन पलों को सजाने चले आइये, रूठ जाऊँगा मैं तुम न आये अगर, बस मुझे ही मनाने चले आइये, नाम सानू मिरा तुम मुक़म्मल करो, इन लबों से बुलाने चले आइये। दिल कही ना #yqdidi #yqhindi #yqhindikavita #hindi
दिल कही ना #yqdidi #yqhindi #yqhindikavita #Hindi
read moreGrishma Doshi
ईर्ष्या कभी प्यार के कारण होती है, तो कभी तकरार का कारण होती है। कभी अपनों से होती है, कभी अनजाने से भी हो जाती है। कभी कुछ भी ना होने के कारण होती है, कभी सब कुछ होने पर भी कुछ ना होने की कमी से होती है। जब भी वह होती है बस तकलीफ होती है, थोड़ी ज्यादा या थोड़ी कम पर हर इंसान को "ईर्ष्या" कभी ना कभी तो होती है। #ईर्ष्या #jealousy #humanemotions #feelings #yqdidi #yqhindipoetry #yqbaba #yqhindikavita
Dr Jayanti Pandey
झूठ बोलना एक बीमारी है इससे त्रस्त दुनिया सारी है जिसको झूठ बोलने की आदत है उसकी समझो लाचारी है। इस बीमारी का कोई हल नहीं है इसकी किसी दवा का कोई फल नहीं है सिर्फ पप्पू टप्पू तक ही नहीं है सीमित ट्रंप के आधे दावों में भी कोई बल नहीं है मक्खी को भी हाथी कर दें और हाथी को यह मक्खी टीआरपी वाले झुट्ठों ने तो तथ्यों की भी ऐसी तैसी कर दी। (पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) वैसे तो यह हर युग की समस्या रही है लेकिन वर्तमान समय में जिस तरह से लोकतंत्र के चारों स्तंभ में एक भी स्तंभ बिना किसी पूर्वाग्रह के काम नहीं कर रहे और अपने छुद्र हितों को पूरा करने के लिए किसी भी स्तर तक जा रहे है, झूठ परोस रहे हैं, झूठे दावे और झूठे केस कर रहे हैं,यह बहुत ही दुखद है हमारे लोकतंत्र के लिए। सामान्य जन का विश्वास नेताओं से तो उठ ही गया था,अब बाकी सब से भी उठ रहा है।उसी पर एक कविता... झूठ बोलना एक बीमारी है इससे त्रस्त दुनिया सारी है जिसको झूठ बोलने की आदत है उसकी समझो लाचारी
वैसे तो यह हर युग की समस्या रही है लेकिन वर्तमान समय में जिस तरह से लोकतंत्र के चारों स्तंभ में एक भी स्तंभ बिना किसी पूर्वाग्रह के काम नहीं कर रहे और अपने छुद्र हितों को पूरा करने के लिए किसी भी स्तर तक जा रहे है, झूठ परोस रहे हैं, झूठे दावे और झूठे केस कर रहे हैं,यह बहुत ही दुखद है हमारे लोकतंत्र के लिए। सामान्य जन का विश्वास नेताओं से तो उठ ही गया था,अब बाकी सब से भी उठ रहा है।उसी पर एक कविता... झूठ बोलना एक बीमारी है इससे त्रस्त दुनिया सारी है जिसको झूठ बोलने की आदत है उसकी समझो लाचारी
read moreDr Jayanti Pandey
ज़हन में वहशियत है, संविधान बदलने से न निकलेगी समाज की सोच बदलनी होगी तभी यह सूरत बदलेगी। कितनों को भी फांसी दे दो, ये हालात नहीं बदलेंगे जिंदगी के लिए लड़ना होगा , जज़्बात नहीं बदलेंगे। अपनी संस्कृति को संरक्षित करना ही होगा विचार बदलने को समाज को जागरूक होना पड़ेगा संस्कार बदलने को। इस क़बीलाई आचरण से बाहर आना होगा अपने को सभ्य समाज कहते हो तो मनुष्यता को अपनाना होगा। समाज को अब अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी, अपने शुद्धि करण की। ये ज़हनी वहशियत किसी और तरीके से समाप्त नहीं हो पाएगी। सारे दण्ड प्रतिक्रियात्मक हैं। अपराध तभी रूक सकता है जब मानवीय मूल्यों को संस्कृति और संस्कार से जोड़ा जाए। ज़हन में वहशियत है, संविधान बदलने से न निकलेगी समाज की सोच बदलनी होगी तभी यह सूरत बदलेगी। कितनों को भी फांसी दे दो,
समाज को अब अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी, अपने शुद्धि करण की। ये ज़हनी वहशियत किसी और तरीके से समाप्त नहीं हो पाएगी। सारे दण्ड प्रतिक्रियात्मक हैं। अपराध तभी रूक सकता है जब मानवीय मूल्यों को संस्कृति और संस्कार से जोड़ा जाए। ज़हन में वहशियत है, संविधान बदलने से न निकलेगी समाज की सोच बदलनी होगी तभी यह सूरत बदलेगी। कितनों को भी फांसी दे दो,
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उर्वरा ज़मीन है ........मन की क्या उगाना है ; थोड़ा गौर फरमाइए (रचना अनुशीर्षक में पढ़ें) उर्वरा ज़मीन है ........मन की क्या उगाना है ; थोड़ा गौर फरमाइए जो ध्यान भटकता रहेगा जंगल ही उग आएगा..... पछताइए प्यार हो, विचार हो कि संस्कार हो छानने की कड़ी प्रक्रिया अपनाइए
उर्वरा ज़मीन है ........मन की क्या उगाना है ; थोड़ा गौर फरमाइए जो ध्यान भटकता रहेगा जंगल ही उग आएगा..... पछताइए प्यार हो, विचार हो कि संस्कार हो छानने की कड़ी प्रक्रिया अपनाइए
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