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Anamika Sharma
#FourLinePoetry पलकों में छुपे अश्क़ बाकी हैं, दिल मे भी दबी हुई कसक बाकी है.. तुम जा चुके हो मेरी ज़िंदगी से , पर मुझमें तुम्हारा वजूद बाकी है..!! ©Anamika Sharma वजूद #वजूद #anamikasak #fourlinepoetry
Diwan G
हवा की तरह है तेरा वजूद। जो आसपास तो है, मगर नजर नहीं आती।। वजूद #हवा #वजूद #नजर
DR. LAVKESH GANDHI
वजूद अगर किसी को अपना वजूद मिटाना हो तो वह अपनी पहचान भूल जाए | खुद ब खुद उसका वजूद मिट जाएगा | जैसे- आग और पानी एक साथ हो तो आग का अस्तित्व खुद-ब-खुद मिट जाता है | ©DR. LAVKESH GANDHI वजूद # वजूद बचाए रखो # #SunSet
Ripudaman Jha Pinaki
एक मुद्दत से कोई आया न आँगन मे मेरे मेरे अपने न जाने मुझसे क्यूँ कर रूठे हैं उदास हैं दर-ओ-दीवार छतें रोती हैं मेरे गुलशन से बहारें क्यों जाने रूठे हैं मेरे अज़ाब मेरी ईब्तिला तो देख ज़रा आ भी जाओ कि बुलाता है आशियाँ तेरा न देख इंतेहां मेरे इंतज़ार की ज़ालिम कहीं न टूटकर वजूद बिखर जाए मेरा । रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #वजूद
Rashmi Thakur
ठुकरा दे कोई तुम्हारी मोहब्बत को तो तुम टूट कर मत बिखरना बहोत प्यारा है तुम्हारा वजूद झुक कर इसकी अहमियत कम नही करना गलत वो है तुम नही अपने प्यार पर विश्वास रखना आए अगर वो लौट के तो फिर उसपे एतबार मत करना पलको पर बैठाया था जिसे उसे नजरो से गिरा देना नही है वो शख्स तुम्हारी मोहब्बत के काबिल ये अहसास बस तुम खुद को दिला देना मोहब्बत में बेवफाई नही होती है बेवफा है वो शख्स ये सोच के उसे भुला देना ©Rashmi Thakur # वजूद#
Vivek
तुम्हें सोचा ही है एक पल सामने तुम मौजूद हो अब तो यकीन आ गया है मेरा ही तुम वजूद हो...!!! ©Vivek # वजूद
मेरे ख़यालात.. (Jai Pathak)
साँसे थी मद्धम इनमे रवानगी न थी तुम मिले तो जाना ज़िन्दगी मे ज़िंदगानी न थी, कोरा था एहसास कोई हसरत न थी तुम मिले तो जाना रूह मे कोई खुशबु न थी, अब मिले जो तुम तो दूर मुझसे जाना नहीं तुमसे मिल के अब मैंने जाना तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं.. ©जागृती.. (जय पाठक) #वजूद
Manish Raaj
वजूद ______ ज़र्रे-ज़र्रे में ज़िंदगी समाई है फिर क्यों ये तन्हाई जितनी, समंदर में गहराई है वाक़िफ़ हैं हक़ीक़त से मगर फिर भी ज़िंदगी, आज़माई है आज़माए इतने गए की अब भरोसे पर ही, शक़ घिर आई है ख़ामोशी एक जवाब और सवाल भी है, कितनों को समझ आई है नज़र, नज़ारे देखती है क्या ख़ुद की नज़र को देख पाई है पैसों के लिए अश्क़, पसीने और ख़ून मगर ख़ून के लिए जान किसने गंवाई है इंसान की हवस ऐसी की हैवानियत और मौत भी शर्माई है मौक़े की तलाश में रहनेवालों की नीयत साफ़ नज़र आई है जज़्बात, अलफ़ाज़ और शर्म-ओ-लिहाज़ नहीं फिर क्यों, आँख भर आई है आसमानी परिंदों ने अपनी जड़ ज़मीं पर ही बनाई है पौधों को पानी से सीचे और दूसरी तरफ कटे जड़ समझो अब, उसकी जान पर बन आई है मनीष राज ©Manish Raaj #वजूद