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Ravi Sharma
जब सावन की बरखा में मन मयूर बन जाता है जब सूखी धरती पे घन प्रेम राग बरसाता है चपला करती हैं नृत्य अमिट, और अंतस हर्षाता है इंद्रधनुष के आलिंगन से फिर धरा का मन मुसकाता है।। जब सावन की बरखा में मन मयूर बन जाता है.... ।। रवि ।। ©Ravi Sharma जब सावन की बरखा में मन मयूर बन जाता है जब सूखी धरती पे घन प्रेम राग बरसाता है चपला करती हैं नृत्य अमिट, और अंतस हर्षाता है इंद्रधनुष के आलिं
Devesh Dixit
समाज (दोहे) विकट हुए हालात हैं, पीड़ित हुआ समाज। दुष्टों की संख्या बढ़ी, पाना चाहें राज।। शोर शराबा कर रहे, करते हरकत नीच। कहाँ सुरक्षित बेटियाँ, रहे पाप को सींच।। ये समाज अब देखता, है ईश्वर की ओर। रक्षित अब ईश्वर करो, विपदा है घन-घोर।। दया भाव अब कुछ नहीं, कहता यही समाज। करते शोषण शान से, और पहनते ताज़।। कहती हैं कुछ सुर्खियाँ, जालिम रहा समाज। खुदी धकेले नर्क में, और न आते बाज।। मुस्किल जब खुद को हुई, देख हुए हैरान। हालातों को कोसते, कंटक बनती जान।। ........................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #समाज #nojotohindi समाज (दोहे) विकट हुए हालात हैं, पीड़ित हुआ समाज। दुष्टों की संख्या बढ़ी, पाना चाहें राज।। शोर शराबा कर रहे, करते हरकत नी