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Guruwanshu
तुम जो कह नहीं पाते, वो लिख देते हो, जो लिख नही पाते, उसे Reel भेज कर बताते हो..! और ! अब जो बता भी नही सकते, मुझे वो समझना है। तुम जो कह नहीं पाते, वो लिख देते हो, जो लिख नही पाते, उसे Reel भेज कर बताते हो..! और ! अब जो बता भी नही सकते, मुझे वो समझना है। क्यों! सही
Prabhakar Tripathi 'Parinda'
भोपाल की बारिश पे अर्ज किया है- गिरा दे जैसा पानी है, तेरे पास ए बादल यह प्यास है दिल की उनके इश्क से बुझेगी, तेरे बरसने से नही। #भोपाल की बारिश...
vista
बहुत खुब है ये मौसमों की रंगत कभी सुखा सुखा कभी पानी ही पानी और कभी हरियाली। अरे पगले यही तो है भोले की नगरी सारी , जो बनाती हमे भाग्यशाली ।। #भोले_बाबा की नगरी
CK JOHNY
ये द्वैत की नगरी है प्यारे दिन रात चलती तलवार दोधारे। जन्म-मरण दुख-सुख मित्र-वैरी अपने-बेगाने के यहाँ अजब नजारे। दोनों हाथों में लड्डू चाहता है हर कोई माया और राम में हर किसी को दुविधा रे। अपना मन ही पग-पग छलता है जहाँ मझधार में डूबे सब पहुँचा न कोई किनारे। भजन-सिमरन की पतवार बना प्राणी सत्संग-सेवा में लग सुधार जिंदगानी। दुई का चक्कर मिटेगा सतगुरु के सहारे। सतगुरु दया-मेहर से लग जाओगे किनारे। ये द्वैत की नगरी है प्यारे दिन रात चलती तलवार दोधारे। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 10.07.2020 द्वैत की नगरी
CK JOHNY
ये द्वैत की नगरी है प्यारे दिन रात चलती तलवार दोधारे। जन्म-मरण दुख-सुख मित्र-वैरी अपने-बेगाने के यहाँ अजब नजारे। दोनों हाथों में लड्डू चाहता है हर कोई माया और राम में हर किसी को दुविधा रे। अपना मन ही पग-पग छलता है जहाँ मझधार में डूबे सब पहुँचा न कोई किनारे। भजन-सिमरन की पतवार बना प्राणी सत्संग-सेवा में लग सुधार जिंदगानी। दुई का चक्कर मिटेगा सतगुरु के सहारे। सतगुरु दया-मेहर से लग जाओगे किनारे। ये द्वैत की नगरी है प्यारे दिन रात चलती तलवार दोधारे। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ द्वैत की नगरी
Paramjit Singh landran
कोई आया है जोगी प्रेम की नगरी से मोहब्बत के लफ्ज़ों की बारात लेकर आओ उस जोगी से प्रेम की नगरी के किस्से सुनते हैं मोहब्बत के ख्वाब लेकर ©Paramjit Singh landran प्रेम की नगरी
CK JOHNY
ये द्वैत की नगरी है प्यारे दिन रात चलती तलवार दोधारे। जन्म-मरण दुख-सुख मित्र-वैरी अपने-बेगाने के यहाँ अजब नजारे। दोनों हाथों में लड्डू चाहता है हर कोई माया और राम में हर किसी को दुविधा रे। अपना मन ही पग-पग छलता है जहाँ मझधार में डूबे सब पहुँचा न कोई किनारे। भजन-सिमरन की पतवार बना प्राणी सत्संग-सेवा में लग सुधार जिंदगानी। दुई का चक्कर मिटेगा सतगुरु के सहारे। सतगुरु दया-मेहर से लग जाओगे किनारे। ये द्वैत की नगरी है प्यारे दिन रात चलती तलवार दोधारे। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 10.07.2020 द्वैत की नगरी