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Rajesh vyas kavi
""बाल दिवस _ बच्चो का उत्सव"" बचपन के किस्से भी, अजीब होते है। न कोई पराया, सभी अजीज होते है। काश ,यह अपनापन जीवन के हर पड़ाव पर दिखे, जैसे बचपन में करीब होते है।। ©Rajesh vyas #बाल _ दिवस #बचपन की यादें #Nojoto #हिंदी #ChildrensDay
Dilip Makwana
अगर खरीद पाता बचपन तो खरीद लेता कुछ लम्हे ही सही मगर फिर से जी लेता जिम्मेदारियों की धुंध से गायब सा हूं फिलहाल मैं एक बार इस रेत से अपना चेहरा धो लेता बड़ा मकाँ है मगर जी घुटता है मेरा काश मैं उस मिट्टी के घर मे ही रह लेता !! #बचपन #शायरी #हिंदी
hangover_pk
वो बचपन के दिनो मे हम स्कूल में म़स्ती करने जाया करते थे और आज हम इ़श्क की स्कूल में अक्सर बदनाम होने के लिए़ जाया करते है !! #बचपन #बचपन की यादें
Harish
कहां से लाऊं अब वो नज़र, जो मेरी निगहबानी करे। मां की आंचल की मानिंद मेरी हर दुःख दर्द हरे। #मां की यादें# #बचपन की यादें#
Suresh jat
- बचपन की यादें - मेरा बचपन कहां खो गया, मैं इतना बड़ा क्यों हो गया मासूम सी सूरत और ढेर सारे खिलौने आंगन में बना छोटा सा घर मोहल्ले के हमउम्र साथी माचिस के ताश बनाने की होड़ गत्ते से खिलौने की जोड़ तोड़ नुक्कड़ पर कंचे खेलती टोलियां हुड़दंग शोरगुल करती बच्चों की बोलियां आंख मिचोली छुप्पन छुपाई का खेल छुक छुक करती बच्चों की रेल बेरिंग व तार से बनी गाड़ियां अमरूद के बाग में चोरियां बारिश के पानी में अठखेलियां कागज की तैरती कश्तियां दौड़कर पतंग को उड़ाना रंगीन तितलियों के पीछे भागना मेले की सेर और दादी की कहानियां स्कूल से इंकार पर मम्मी की पिटाई रोते हुए स्कूल, घर से विदाई इमली के पेड़ को देखकर दौड़ना खेत के खरबूजे को पत्थर से फोड़ना पोखर में उछाल से पत्थर उसपार भेजना साइकिल के टायर से रेस कर दौड़ना पापा की साइकिल केचि में चलाना कैसे मैं बताऊं, गुजरा बचपना अपने बच्चे को अपना बचपन जीने दो जिंदगी का हसीन जाम है उसे भी पिने दो मेरा बचपन कहां खो गया, मैं इतना बड़ा क्यों हो गया - सुरेश जाट उदयपुर ©Suresh jat बचपन की यादें
Rajesh Singh
एक बचपन का जमाना था जिस मे खुशियो का खजाना था चाहत चांद🌙 को पाने की थी पर दिल तितली 🦋का दिवाना था खबर ना थी कुछ सुबह 🌄की ना शाम का ठिकाना था थक कर आना स्कूल 🏫से पर खेलने भी जाना था मां🤱 की कहानी थी परियों💃 का फसाना था बारीश🌦️ में कागज की नाव थी हर मौसम☁️ सुहाना था रोने की वजह ना थी ना हसने का बहाना था क्यूं हो गए हम इतने बड़े इससे अच्छा तो वो बचपन👩🚀 का जमाना था वो बचपन👩🚀 का जमाना था ©Rajesh Singh बचपन की यादें
कृष्ण कान्त मिश्र
✍️ आज बच्चों को देख दिल फिर बच्चा बन बैठा.. उन पुरानी यादों में पुनः जा सिमट बैठा.. वो कागज की नांव और पेड़ों की छांव.. वो बारिशों की बूंदें उसमें भीगने की उम्मीदें.. उसमें छपकना, बिछलना, और फिर गिरना.. हँसी की ठहाको से खुशियों का मिलना.. शरारतें, बदमाशियां, मनमानियां और शैतानियाँ.. रात में नींद लाने के लिए दादी मां की कहानियां.. वो सब कितनी हसीं थी मेरी दुनियां.. ना ही किसी का डर और ना ही किसी की फ़िकर.. हर जगह तो बस अपनी शैतानियों का ही ज़िकर.. काश वो बादशाहत वाले दिन फिर से वापस आ जाते.. हम बड़े होकर भी एक बार फिर से छोटे हो जाते.. बचपन की यादें..