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Shaikh Akhib Faimoddin
व्याख्या जीवन की क्या व्याख्या करुँ मै इस जीवन की जिसकी कोई व्याख्या ही नही हर दिशा से मिलती है मुझे विषमता क्या यही विषमता तो जीवन नही| कोई सब कुछ होकर भी रोता है तो कोई कुछ ना होके भी हसता है किसीका जीवन मधुबन तो किसीका रेगिस्तान भी नही क्या यही विषमता तो जीवन नही| जिसने सत्य को ही जीवन माना उसके किसीने छुए चरण नही जिसने किया समाज को खोकला उसके खिलाफ कोई आवाज नही क्या यही विषमता तो जीवन नही| माना जीवन सुख दुख का संघर्ष ही सही पर इसके परिणामों में समानता क्यों नही किसीको जलाया जाता है चंदन की चीता पर तो किसीको मिलता कफन भी नही क्या यही विषमता तो जीवन नही| अंत में क्या सही और क्या गलत इसका मिलता कोई जवाब नही क्योंकि हर दिशा से मिलती है मुझे विषमता क्या यही विषमता तो जीवन नही| फिर भी करना चाहता हुँ व्याख्या जीवन की जीस जीवन की कोई व्याख्या ही नही| व्याख्या जीवन की..
Dharmraj lohar
गीता में दिए कर्म के सिद्धांत की व्याख्या। कर्म का सिद्धांत दो शक्तियों के माध्यम से कार्य करता है ज्ञान और अज्ञान ज्ञानयोग से किए कर्मो का फल अच्छा और अज्ञान योग से किए कर्मो का फल बुरा होता है ज्ञान से धर्म और कर्तव्य जुड़ा होता है अज्ञान से अधर्म और अकर्तव्य जुड़ा होता ©Dharmraj lohar गीता की व्याख्या
Manish Joy
कभी वो हम दोनों को मेले खूब घूमाती थी! कभी वो हम दोनों से खूब शरारत पाती थी। फिर भी कभी ना हम दोनों से वो घबराती थी, ना जाने क्यों आज वो हम सबको बोझ सी लगती जाती है, गलती उसकी इतनी है कि जन्म वो हमको दे गयी! हम कहते हैं भाई में रहलो,भाई कहता भाई में रहलो! फिर भी अभी भी कहती है,खुश रहना जीवन भर,यही दुआ कर जाती है।।। .......माँ माँ.....की व्याख्या नहीं होती..
Swechha S
आपकी इच्छाएं ही आपके जीवन की व्याख्या है। कुछ पाने से मिली खुशी, कुछ ना पाने से मिली सीख ही आपका परिचय है - श्री कृष्ण । ©Swechha S जीवन की व्याख्या #1December #Zindagi #Keshav
Ek villain
पहले मुस्लिम आक्रांता ओं के बाहर बता पूर्ण शासन और उसके बाद में ब्रिटिश के उप निदेशक राज्य के दौरान सनातन धर्म की पुण्य भूमि भारत की आत्मा को कितनी चोट पहुंचाई नेतृत्व किसी से छिपा हुआ नहीं है पहले बड़े पैमाने पर मत परिवर्तन कर ले लोगों ने राम को अपनाया और बाद में ईसाई बने स्वतंत्रा के बाद हिंदुओं के इस्लाम में जाने के घटना में तो कमी आई लेकिन इस आबादी का प्रभाव बढ़ता गया रास्ता ही मनीष ने भारतीय संविधान में अपने धर्म के प्रचार प्रसार के स्वतंत्र के मूल अधिकारियों की आड़ में धोखा छल कपट है और प्रोपेगेंडा के सारे गरीब और अशिक्षित जातियों पर जनजातियों के मध्य परिवर्तन जुटी हुई है या द्वारा भारतीय संस्कृति और संयोजित आक्रमण और उसके विपरीत परिणाम के प्रति जिज्ञासु पाठकों को सचेत करने के लिए डॉक्टर शैलेंद्र कुमार निषाद और पूर्वोत्तर भारत का संस्कृत संहार नामक पुस्तक की रचना की लगभग 700 साल की गुलामी के कारण इस देश में एक ऐसा वर्ग पैदा हो गया जो हीनता की ग्रंथि से ग्रस्त था और उसमें प्राचीन ज्ञान विज्ञान और उससे उपजे विवाद के संदेश हरकतें की नजर से देखता था वर्ष 1947 में स्वतंत्र प्राप्ति के बाद यह भावना धीरे-धीरे और बलवती होती गई आज स्थिति यह है कि पूर्वोत्तर भारत में असम और त्रिपुरा को छोड़कर सभी राज्यों में स्थाई बहुलता में है और झारखंड जैसे राज्यों में ईसाई की बड़ी आबादी है ©Ek villain #सांस्कृतिक की रक्षा के सूत्र #Love