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saman asfia rehmani
तुम तो कहते थे, (Plz read full poem in caption) तुम तो कहते थे कि... और अब? #कहतेथे #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi तुम तो कहते थे,
तुम तो कहते थे कि... और अब? #कहतेथे #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi तुम तो कहते थे, #saman_asfia #saman_broken_heart #samanAsfia_hindi_love_poem
read moreKaviChamanBhartiya
गर लिखना है तो... लिखो तुम....... लिखो व्यथाओ पर, कटे शीश जो भारत माँ के लिए, उनकी चिताओ पर! लिखो तुम गूँगी बहरी सरकारो पर, बेशर्म, निर्लज व्यवस्थाओं पर। लिखो तुम अनाथ बच्चे की सिसकियों पर, भूखे घर, भूखे पक्षी की अवस्थाओं पर। जाओ गर लिखना हो तो लिखो, माँ की सुनी कोख पर, उन सुनी कलाई पर, बारिश का इंजतार करते, किसान के गाँव पर! लिखो तुम.......... ©KaviChamanBhartiya लिखो तुम.... #हिंदी #कविता #काव्यात्मकअंकुर🌱 #वयथा #शायरी #WalkingInWoods
लिखो तुम.... #हिंदी #कविता काव्यात्मकअंकुर🌱 #वयथा #शायरी #WalkingInWoods
read morePawanjeet $ethi
💞💞💞💞💞💞💞💞 writer by.. Pawanjeet sethi 💞💞💞💞💞💞💞💞 " कमीज बटन धागा सूई प्यार से सिले वो छुई मुई " 💞💞💞💞💞💞💞💞 ©📖 ,,,Pawanjeet Sethi,,✍️ लिखो तो, आम लिखो...
लिखो तो, आम लिखो...
read morePawanjeet $ethi
⭐Writer.................Pawanjeet Sethi⭐ सच्चा "इशक"बयाँ नहीं होता अलफाजों में ---- हम क्यूँ जाहिर करे चाहतें किताबों में ---- जब भी लिखो आम लिखो ,
जब भी लिखो आम लिखो ,
read morePawanjeet $ethi
Writer.......pawanjeet Sethi "मेरे घर से उसकी गली तक का सफ़र नामुमकिन तो नहीं मुश्किल है मगर 💖 जहाजनुमा बना के फेंक दिया खत उसकी तरफ मुझको जब वो खिड़की पर आई नज़र " जब भी लिखो आम लिखो,,
जब भी लिखो आम लिखो,,
read moreHimmat Aarya
थकान की थकान थकाये तुमको , तो लिखो संघर्ष की ये राहें उलझायें तुमको , तो लिखो आकर्षण है या आत्मियता क्यों उलझते हो ख्याल किसी का तडपाये तुमको, तो लिखो दौर-ए-जवानी में होता है अनुभव अक्सर नींद गर रात में ना आये तुमको , तो लिखो दुबके हुए रजाई में टिक-टाक चलाने वालो झोंका हवा का छू जाए तुमको , तो लिखो रट रट कर रटे हैं जो कुछ जवाब सवालों के परीक्षा में वो याद न आयें तुमको, तो लिखो - हिम्मत लिखो
लिखो
read moreManmohan Dheer
कक्ष शीतल है शयन में चिंतन है मार्ग को अवरुद्ध किये यौवन है साहस भटकता बहकता यहाँ राष्ट्र मूढ़ सा तकता हुआ मौन है . अनुभव अतीत को गले लगाए आलोचना में है मग्न मुदित है उद्यमिता उलझी हुई भ्रमित आश्वासनों की बाढ़ से चकित है . किंकर्तव्यमूढ़ सारा वातावरण है मिथ्या पर सत्य का आवरण है उद्विग्न विवेक निराश हो चला उज्ज्वल भविष्य पर ग्रहण है . कविधर्म मेरा कहता है लिखो जो भी घटित होता है लिखो कक्ष धीर का भी अब तपता है शब्द तप्त हैं भी तो क्या, लिखो . धीर लिखो
लिखो
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