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Santosh Verma
रे! मन तूं आज क्यों बांवरा हो रहा है!, लगता है किसी गूढ़ उलझन में तूं खो रहा है।। मिथ्या है ये जग_मिथ्या हैं सब बातें, मृत्यु अटल है ,झूठे हैं सब नाते। सांचा नाम केवल खुदा का, आखिर साथ इक दिन तो छोड़ जाती हैं सांसे।। गोल _गोल कठपुतली सा यूं तूं घूम रहा, माटी के तन पर यूं तूं झूम रहा। यहां न कुछ तेरा है न मेरा है, यही तो समझ का फेरा है। दो दिन की ज़िन्दगी पर कैसा गुमान!, फिर अच्छे करम से तेरा क्यों डोल रहा इमान।। धन दौलत सब दुनियां का ताना बाना है, बंगला कोठी तो बस कुछ दिन का ठिकाना है। कपड़ा _लत्ता तो तन को ढकने का इक बहाना है,। ठहर जा रे मन.... क्योंकि यहां से इक दिन जाना है।।। written by (संतोष वर्मा) आजमगढ़ वाले.. खुद की जुबानी... रे! मन....
हिमांशु Kulshreshtha
मन तो बावरा है अटकता है कभी तो भटकता है कभी.. विरक्त है कभी तो आसक्त है कभी... धूप है प्रेम की तो छाह यादों की कभी!! डूबता उतरता सा मचलता, भटकता सा कभी, कितने रंग समेटे खुद में हो रहा बदरंग कभी रे मन.. कैसे पाऊँ थाह तेरी है तू आस कभी तो तू है निर्लिप्त कभी हिमांशु ©हिमांशु Kulshreshtha रे मन..
Jaya Mishra JD
रे मन! तू कितना सोचता है तू क्या सोचता है क्या कभी ये सोचता है? रे मन
Manas Subodh
Alone रे मन साधो जैसा हो जा चुप होके घाट का हो जा ई नदी हैं तोरा साथी चल इन सब गलियों में कहीं खो जा रे मन काहे कुटिया कोई ढूढ़े किस सोच में इतना डूबे ई मिट्टी तेरा बिस्तर बादल को ओढ़े सो जा रे मन साधो जैसे हो जा. .... रे मन क्यों प्रेम, लगन को भटके काहे दर दर खाए फटके किस चाहत का तोहे लोभ रहे क्यों मोह में खाए झटके ई सब लोग हैँ मन के मांझी तोहे छोड़ चलेंगे इसी घट पे रे मन काहे ख़्वाब को इतना जोड़े काहे ह्रदय को दुःख से तोड़े सब जानत हैँ तेरा, ना जग में कोई काहे विलाप की नींदीयां तोड़े रे मन...... रे मन साधो जैसे हो जा चल इन गलियों में कहीं खो जा. manas_subodh #रे मन #साधो #banaras #life