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Gudiya Gupta (kavyatri).....
यह कैसी पीड़ा असहनीय.. मध्यरात्रि एक शोर है..! विचलित व्यथा में बैठी जहां पर.. धरती का एक छोर है..! अलंकृत तन ये सिसक रहा है सन्नाटे के शोर में एक ...रोंदन छुपाए रात्रि मुंह बनाता भोर से सैकड़ों जतन के बाद भी क्यों ये भाव उग्र हो जाता है? लिए उदासी नींद की चादर हकीकत से घबराता है! क्यों बहिष्कृत हुई मैं बोलो मेरा क्या इसमें दोष है.? यह मध्यरात्रि की व्यथा तन का भी इक रोष है.! क्यों अर्थ निरर्थक रह जाते.? क्यों शब्द हीन शब्द गड़ता है.? जिसमें नहीं पढ़ना था मन को क्यों उन बातों में पड़ता है.? और माफ करो ये सहनशीलता मनु रूप सच्चाई है.! थक गई खेलते पत्थर पत्थर अब मध्यरात्रि आई है.! स्पंद सुना जो मैंने अभी वह दिल की मेरी गहराई है.. गहरी रातें गहरी बातें कहा समझ भला आई है..! मेरा तराना कल के जल का आग की एक तराई है.. मुझको मुझसे ही लड़कर जितनी अपनी लड़ाई है.. करके विचरण शून्य सा चेतन मध्य रात्रि लाई है मन शून्य बनाकर सोना चाहे जो निरुस्थल खाई है मध्यमा में मोहित मन मेरा मुझसे मुझ में मौन मेरी मिथ्या मेरा मन मेरा मुझसे मोल..!!!! ©Gudiya Gupta (kavyatri)..... #मध्यरात्रि
Gudiya Gupta (kavyatri).....
यह कैसी पीड़ा असहनीय.. मध्यरात्रि एक शोर है..! विचलित व्यथा में बैठी जहां पर.. धरती का एक छोर है..! अलंकृत तन ये सिसक रहा है सन्नाटे के शोर में एक ...रोंदन छुपाए रात्रि मुंह बनाता भोर से सैकड़ों जतन के बाद भी क्यों ये भाव उग्र हो जाता है? लिए उदासी नींद की चादर हकीकत से घबराता है! क्यों बहिष्कृत हुई मैं बोलो मेरा क्या इसमें दोष है.? यह मध्यरात्रि की व्यथा तन का भी इक रोष है.! क्यों अर्थ निरर्थक रह जाते.? क्यों शब्द हीन शब्द गड़ता है.? जिसमें नहीं पढ़ना था मन को क्यों उन बातों में पड़ता है.? और माफ करो ये सहनशीलता मनु रूप सच्चाई है.! थक गई खेलते पत्थर पत्थर अब मध्यरात्रि आई है.! स्पंद सुना जो मैंने अभी वह दिल की मेरी गहराई है.. गहरी रातें गहरी बातें कहा समझ भला आई है..! मेरा तराना कल के जल का आग की एक तराई है.. मुझको मुझसे ही लड़कर जितनी अपनी लड़ाई है.. करके विचरण शून्य सा चेतन मध्य रात्रि लाई है मन शून्य बनाकर सोना चाहे जो निरुस्थल खाई है मध्यमा में मोहित मन मेरा मुझसे मुझ में मौन मेरी मिथ्या मेरा मन मेरा मुझसे मोल..!!!! ©Gudiya Gupta (kavyatri)..... #मध्यरात्रि
Sunita
बहुत गुदगुदाता है, रात के मध्य जोर शोर से जब तुम बरसते हो । कितनी तृप्ति है तुम्हारे अंत:करण में मै ही नहीं, ये धरा भी प्यासी है आओ न एक बार, फिर से बरसो उष्ण हो चुकी हूं मैं मुझे तृप्ति दे कर, लहलहाने दो । सुनीति ©Sunita #madhyratri #मध्यरात्रि
#madhyratri #मध्यरात्रि #कविता
read moreNiraj Kumar singh
मध्य रात्रि सुरूवाती ठंड की वोह रात थी उस रात में कुछ तो बात थी मै सोया आधे बदन कम्मबल ओढ़ के और नींद भी आधी थी वोह समय था मध्य रात्रि मै सपनों में घनघोर वन में कहीं खोया था मेरे हाथ में मेरा अंगोछा और एक फट्टा पुराना पन्ना था जिसपर किसी का नाम लिखा था सायद कहीं राम लिखा था जब तक कुछ समझ पाता तब तक पत्तो की सरसराहट मेरे कानो को किसी के आने का संदेश दे रहे थे समझ नहीं आ रहा था मै सोया था या जागा उस मध्य रात्रि आहट तेज हो गई और और सरसराहट भी शोर करने लगी तभी घने जंगलों के बीच से निकलकर एक सन्यासी सामने आया उसे देख मै हैरान था उसके हाथ में एक किताब थी जो कुछ लाल थी सायद जिसका एक पन्ना अब तक मेरे हाथ था उसने मुझे गले लगाया और कहा इसे लेते आना और जल्दी आना वोह सन्यासी कोई और नहीं मै ही था जो मुझे मिला उस मध्य रात्रि।। #मध्यरात्रि#nojotolove#nojotowriters
#मध्यरात्रि#nojotoLove#nojotowriters
read moreAerials 255
जीवन का उद्देश्य, एक बार, खो जाना है। उसके बाद, वापस, खुदको ढूंढ लाना है। #मध्यरात्रि #ज्ञान #जीवन #उद्देश्य #खोना #ढूंढना #हिंदी_उर्दू #फलसफा
#मध्यरात्रि #ज्ञान #जीवन #उद्देश्य #खोना #ढूंढना #हिंदी_उर्दू #फलसफा
read moreAnjali
- ****बहुत पहले से**** बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं तुझे ऐ ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं। मेरी नजरें भी ऐसे काफ़िरों की जान ओ ईमाँ हैं निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं। जिसे कहती दुनिया कामयाबी वाय नादानी उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं। निगाहे-बादागूँ, यूँ तो तेरी बातों का क्या कहना तेरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं। तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में हम ऐसे में तेरी यादों के चादर तान लेते हैं खुद अपना फ़ैसला भी इश्क में काफ़ी नहीं होता उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं हयाते-इश्क़ का इक-इक नफ़स जामे-शहादत है वो जाने-नाज़बरदाराँ, कोई आसान लेते हैं। हमआहंगी में भी इक चासनी है इख़्तलाफ़ों की मेरी बातें बउीनवाने-दिगर वो मान लेते हैं। तेरी मक़बूलियत की बज्हेा-वाहिद तेरी रम्ज़ीयत कि उसको मानते ही कब हैं जिसको जान लेते हैं। अब इसको कुफ़्र माने या बलन्दी-ए-नज़र जानें ख़ुदा-ए-दोजहाँ को देके हम इन्सान लेते हैं। जिसे सूरत बताते हैं, पता देती है सीरत का इबारत देख कर जिस तरह मानी जान लेते हैं तुझे घाटा ना होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में हम अपने सर तेरा ऎ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं हमारी हर नजर तुझसे नयी सौगन्ध खाती है तो तेरी हर नजर से हम नया पैगाम लेते हैं रफ़ीक़-ए-ज़िन्दगी थी अब अनीस-ए-वक़्त-ए-आखिर है तेरा ऎ मौत! हम ये दूसरा एअहसान लेते हैं ज़माना वारदात-ए-क़्ल्ब सुनने को तरसता है इसी से तो सर आँखों पर मेरा दीवान लेते हैं ‘फ़िराक’ अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते ©Anjali **बहुत पहले से**
**बहुत पहले से** #Poetry
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