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Vishalkumar "Vishal"

PARINDE'S Online Ghazal Evening परिंदे पेज़ पर ऑनलाइन ग़ज़ल संध्या मे दिनांक 8.8.2021 रविवार रात 9 बज़े क्लासिकल सिंगर, संगीतकारां व गुलोकार

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....

आज मावळतांना सूर्य 
मला काही सांगत होता
जप माझ्या संध्येला 
म्हणून कळवळत होता

होतो तो बावरा,
व्याकुळ तिला भेटण्या,म्हणतो
येते ती संध्या मज भेटाया
का पुढे जाते मग दूर मला लोटण्या

तप्त असा मी बघून तिला गार होतो
माझ्यातल्या ज्वलंत पिवळ्या गोळ्याला
लाल तिच्यावर पुन्हा पुन्हा इश्क़ होतो

तिच्या विरहाने ग्रहणात मी जळतो
बघतो तर काय ती तशीच 
शांत सुखद पुन्हा येऊन थांबते
तरी मी वळण्यातच शहाणपण घेतो
कळून चुकत मला ती माझी नव्हे
पण तिच्या असण्यातच मला पुन्हा 
उगवण्यास अर्थ मिळतो

त्रस्त तो,पुन्हा मावळण्या निघतो
संध्ये साठी तीळ तीळ तुटतो
मिळेल का ती मजला या भ्रमात
रोज जळतो

सुंदर,शांत,निथळ सुर्यालाही
थोडी प्रेमात शांत करून देते
स्वतः निःशब्द राहून,इतरांना
व्यक्त करून जाते ##संध्या

Rãjpøôt BãÑä Ãkâsh

बेशक़ तकते हैं डूबते सवेरे को तेरी याद में, 
क्योंकि ज़िंदा हैं नये सवेरे के इंतेज़ार में, 
डूब रही हैं तू और तेरी याद मुझमे,
क्योंकि दफन कर आये पुराने हम, तेरे प्यार में। 
#ATalk ✍️ #संध्या

Sandhya Sangdyangmu Lepcha

सबै मानिस एउटै कहिले हुदैन
फरक धेरै हुन्छ नि....
तर
एउटाको गल्तीको कारण
हामीले अरूहरूलाई बुझ्न चाहादैनौ 
कहिले..!!

©Sandhya Sangdyangmu Lepcha #संध्या

Ali sir (A+A)

ग़ज़ल

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Veena Khandelwal

ग़ज़ल

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#ग़ज़ल

मुहब्बत जब करें आँखे , इबारत ही नहीं होती।
दिखावे की ज़ताने की,लियाकत ही नहीं होती।

सफीने दिल लिखी मेरे ,इबारत तुम ज़रा पढ़ लो।
उसे इज़हार करने की  , ज़रूरत ही नहीं होती।

नज़ाकत है अदाओं में,नज़ारत से भरा चेहरा।
इशारों से अगर छेड़ूं  , शरारत ही नहीं होती  ।

इबादत इश्क को समझे,शिकायत हो ना इक दूजे।
मुहब्बत में वहां यारों  , सियासत ही नहीं होती।

जहाँ दो प्यार करते दिल,दो तन  इक जान हो जाये 
खुदा जाने बड़ी इससे , इनायत ही नहीं होती।

करी माँ बाप की सेवा, खुशी दामन भरे उनके।
बड़ी इससे कभी कोई  , इबादत ही नहीं होती।

हया आँखों में थोड़ी हो,जरा हो चाल गजनी सी।
लबों मुस्कान हो ऐसी नज़ाकत ही नहीं होती।

मुहब्बत पास इतनी हो,मगर कुछ बंदिशें भी हो।
सम्हाले किस तरह दिल को,हिफ़ाज़त ही नहीं होती।

बिखर जाये मुहब्बत जब,बसा घर भी बिखर जाये।
तमन्ना हो ना जीने की ,कयामत ही नहीं होती।


नज़ारत=ताजगी
लियाकत=योग्यता,शालिनता ग़ज़ल

के_मीनू_तोष

............. #ग़ज़ल

Azhar Ali Imroz

ग़ज़ल

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ग़ज़ल
आँखे क्यों नम है
सब है तो हम है
हम में भी ग़म है
दुनिया क्यों‌ कम है 
धरती   पे  रन  है 
पीने  को   रम  है
जाती  तेरी  जो 
सब के सब सम है
छाती  में  ले कर 
चलते क्यों बम है
 तेरी जाँ ,जाँ  है
   तूँहीं   रूपम  है
         तुझ में भी क्या है?
       चींटी का दम  है
        जग में परिवर्तन   
       तूँ कैसा लम है
        जो जल,जम जाए 
      तूँ वैसा जम है 
       फिर इस धरती पे
         क्यों  होता धम है

    अज़हर अली इमरोज़
मतलब
रन ----युद्ध/युद्ध का मैदान
रम---विलायती शराब
रूपम___सौंदर्य/सुन्दर /गुनकारी ग़ज़ल

दुर्गेश निर्झर

मतला, मकता, काफ़िया या रदीफ;
मैं तो तुझे ही अश आर लिखता हूँ॥ 
मैं ग़ज़ल नहीं तेरा प्यार लिखता हूँ॥
      
               ©दुर्गेश पण्डित #ग़ज़ल

Irfan Abid

ग़ज़ल
غزل
आपको बा-शऊर होना था
दिल तो शीशा है चूर होना था
آپ کو با۔شعور ہونا تھا۔
دل تو شیشہ ہے چور ہونا تھا۔ 
हम मुहब्बत से क्या गिला करते
तुमको मिलना था दूर होना था
ہم محبت سے کیا گلہ کرتے۔
تم کو ملنا تھا دور ہونا تھا۔ 
सारी दुनिया से मुझे फर्क़ नही
तुमको मेरा ज़ुरुर होना था
ساری دنیا سے مجھے فرق نہیں۔
تم کو میرا ضرور ہونا تھا۔
मानता ही नही दिले-नादां
अहले-दिल थे फ़ुतूर होना था
مانتا ہی نہیں دل۔ناداں۔
اہل دل تھے فتور ہونا تھا۔
वो ख़ुदा तो नही ख़ुदा की क़सम
पर हसीं है गुरुर होना था
وہ خدا تو نہیں خدا کی قسم۔
پر حسینی ہیں غرور ہونا تھا۔
क्यूं सज़ा पा रहा है तू आबिद
तुझको तो बे-क़सूर होना था
کیوں سزا پا رہا ہے تو عبد۔
تجھ کو تو بے قصور ہونا تھا۔
عرفان عابد
इरफ़ान आबिद #ग़ज़ल
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