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Govinda Saini
एक बूढी दादी रोज भगवान का भजन करती थी। एक दिन भगवान ने दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा, बूढ़ी दादी सोच में पड़ गई और कुछ मांग ना सकी भगवान ने फिर कल मांगने की कहकर अन्तर्ध्यान हो गये।अगले दिन दादी ने अपने बेटे पूछा क्या मांगू बेटे ने कहा धन मांग लेना बहू ने कहा पोता मांग लेना पड़ोसन ने कहा अपनी आंखो की रोशनी मांग लेना।और अगले भगवान फिर आए और मांगने को कहा बूढ़ी दादी ने कहा भगवन मै चाहती हूं कि मै अपने पोते को सोने के कटोरे दूद पीता हुआ देखू भगवान जी ने कहा तुमने सब कुछ तो मांग लिया। लोककथा
Divyanshu Pathak
मैं चंबल का चंचल जल,बहता हूँ बेख़ौफ़ यहाँ । कभी डकैतों के साये थे कभी बचे थे कृष्ण यहां।......... धौलपुर(राजस्थान) हमारे छोटे बड़े शहरों की अपनी विशेषताएं है ।हर जगह से कोई किस्सा कहानी घटनाएं जुड़ी हुई है ।आओ अपने शहरों की शब्दों से सैर कराते हैं प्यारे co
Monalisa Guje
प्रगतिशील की आदि है। साझा करें अपने विचार Democrats & Dissenters के साथ और हमें बताएं एक नारीवादी की विशेषताएं। 🌸 #yqdidi #yqdnd #dndhindi #dndवहनारीवादीहै #col
Anchor Chetna Malviya
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त