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AK__Alfaaz..
आत्मअनुभूति, लेकर आती है, मन के प्रश्न पत्र मे, कई अनसुलझे सवाल, अफसोस, करूणा, व, अश्रुओं की अनगिनत, बीजगणितीय उलझने, मौन अंतस निःशब्द हो, उजला सा दर्पण, बन जाता है उसका, जो प्रतिबिंबित करता है, उसकी काया पर, रूढियों की नुकीली छैनियों से बने, शिलालेखों को, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #विधवा_का_वध आत्मअनुभूति, लेकर आती है, मन के प्रश्न पत्र मे, कई अनसुलझे सवाल,
AK__Alfaaz..
जब नदियों ने, पर्वतों से बिछड़ कर, रेत के मैंदानों में, अज्ञात वास ले लिया, और.., बादलों ने, बरसना भूलकर, हवाओं से संधि कर ली, सागरों ने, अपनी हृदय की गहराइयों में, अनेकों प्रश्न गर्भित कर लिये, व.., अपनी अंक सीमाओं को समेट, प्रतीक्षारत हो, क्षितिज पर अपने मिलन को, चिर मौन धारण कर लिया, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अश्रु_वीथिका जब नदियों ने, पर्वतों से बिछड़ कर, रेत के मैंदानों में, अज्ञात वास ले लिया,
AK__Alfaaz..
जीवन का अभिज्ञ लिए, अनभिज्ञ रही मै, स्मृतियों की स्थिरता, तय करती रही, काल के प्रहार से विघटित, विस्मृत उम्र मेरी, रूढ़ियों के पौरुष से चिरप्रसूतिका मै, कभी कोई, अभिलाषा नही करूँगी गर्भित, ना जन्मूंगी श्वाँस मात्र लिप्सा अपनी, पालने की रिक्तता, पुकारेगी मेरी ममता, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रेहन_ईप्सा जीवन का अभिज्ञ लिए, अनभिज्ञ रही मै, स्मृतियों की स्थिरता, तय करती रही,
AK__Alfaaz..
उम्मीद की, पहाड़ी के पीछे, आस की, पगडंडियों से गुजरते हुए, अक्सर ही, दिखाई दे जाता है, स्त्री रूपी, वह स्नेह का मकान, वह अपूर्ण सी अकेली, और..प्रेम मे डूबी, रूढ़िवादी समाज से बहिष्कृत, स्त्री, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे.. #मर्सिया उम्मीद की, पहाड़ी के पीछे, आस की, पगडंडियों से गुजरते हुए,
Sunita D Prasad
हे!लक्ष्मण तुम्हारा झुका शीश नैनों में नीर, बता गए थे तुम्हारे ह्रदय की पीर। पूछना चाहती थी कई सवाल.. पर जानती थी तुम नहीं दे पाओगे किसी एक का भी जवाब...। अतः ..मैं.. चुप ही रही। ............. ............ हाँ,तुम ही हो 'राम'..।। ---सुनीता डी प्रसाद💐 #yqdidi #yqpowrim #yqpowrimo # मेरी पीड़ा.... हे!लक्ष्मण तुम्हारा झुका शीश नैनों में नीर, बता गए थे
अशेष_शून्य
"शेष स्मृतियां .... हमारी" मेरी और तुम्हारी -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में ....) तुमको देने के लिए मेरे पास मेरे अलावा और कुछ भी नहीं ....!! ख़ुद तुम्हारा दिया हुआ जीवन भी शून्य हो रहा हो मानो ....। पर जब तक लौटोगे
Aprasil mishra
संघर्ष बनाम सफलता उम्मीदों को सम्हालते हुए अब तक एक अरसा व्यतीत हो चुका है, मन अब हर दिन उबासियां ले रहा है। चेतन्यबोध क्षण प्रति क्षण विवेक शून्
Aprasil mishra
"वैश्विक समाज की शवाधान प्रणालियों में अन्तर एवं उनकी ऐतिहसिक पृष्ठभूमियाँ : जमींन-जिहाद के आलोक में।" **************************************** वैश्विक समाज में जनगत मानसिकता आज जिस तरह साम्प्रदायिक चरमपंथ में वैमनस्य का शिकार हो
Shravan Goud
सपने अपने होते हैं जब हम उनके साथ जीना सीख लेते हैं। इन्द्र धनुष सा था जीवन हमारा न जाने सब रंग कहाँ धुल गए था हिमालय सा हौसला,सतरंगी थे सपने अश्कों के बरसात में सब धूल-धूसरित हो रहे Pic s
Anjali Raj
संताप को मिटाने की मशाल को जलाने की धूल धूसरित बाग़ में पुष्प फिर उगाने की पथ में कांटे हो भले घावों से ना डरिये कोशिश करते रहिये पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें कोशिश करते रहिये संताप को मिटाने की मशाल को जलाने की धूल धूसरित बाग़ में पुष्प फिर उगाने की पथ में कांटे हो भले घावों से ना डरिये कोशिश करते