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वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

यद्वाचानभ्युदितं येन वागभ्युद्यते।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥

वह' जो वाणी के द्वारा अभिव्यक्त नहीं हो पाता, जिसके द्वारा वाणी अभिव्यक्त होती है, 'उसे' तुम 'ब्रह्म' जानो, न कि इसे जिसकी मनुष्य यहाँ उपासना करते हैं।

That which is unexpressed by the word, that by which the word is expressed, know That to be the Brahman and not this which men follow after here.

केनोपनिषद मंत्र ४ #केनोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #सत्य

Ek villain

# माया और ब्रह्मा Love #Motivational

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सृष्टि ब्रह्म और माया का सहयोग है इस सृष्टि को ब्रह्मा ने रचा है यह दृश्य जगत ब्रह्मा की माया है ब्रह्मा दृश्य है उसको इन चरम सुख चूहों से देखना संभव नहीं इस कारण व्यक्ति उससे अभिज्ञान और माया में लिप्त रहते हैं माया में आसक्त होना मानव की स्वभाविक प्रक्रिया है पर यह मनुष्य की अज्ञानता का प्रतीक है माया नश्वर है परब्रह्मा ही सत्य सनातन है ना स्वर से स्वयं को जोड़ना दुख संताप अशांति को जीवन में वृद्धि करना है और सत्य से नाता जोड़ ना मनुष्य की बुद्धिमान है जीवन की सार्थकता सिद्ध करने का प्रथम सूत्र ही स्वयं को ब्रह्मा में समर्पित कर देना जब व्यक्ति स्वयं को ब्रह्मा में समर्पित कर देता है तो उसके अंदर उसकी शक्ति ज्ञान आचरण गुड भर जाते हैं समर्पण में विद्या है जो तू चिता को महानता में परिवर्तित कर देती है समर्पण निष्ठा के प्रति प्रेम की भावना है जो माया में समर्पण होता है तो व्यक्ति संसार में उछल जाता है ब्रह्म को छोड़कर दुनिया में जो भी वस्तु है वह नष्ट हो जाने वाली है ना स्वर वस्तु में समर्पण प्रेम ऐसा ही होता है जब तक उस वस्तु का अस्तित्व है तब तक उसका सुख लाभ मनुष्य को प्राप्त होता है उसके नष्ट होते ही व्यक्ति का प्रेम समर्पण दुख और 10 शांति का कारण बन जाता है मनुष्य का जन्म ब्रह्म से जुड़ने से हिसार तक बनता है लेकिन उससे ना जुड़कर है सांसारिक मोहमाया में जीवन व्यक्त करते हुए नर्क कार्य कष्ट भोगता है स्वर्गीय सुख आनंद का लाभ ब्रह्मा से जोड़कर ही पाना संभव होता है उससे जुड़ने के लिए मोह माया वासना काम का त्याग होना अत्यंत ही जरूरी है एक त्याग दूजे की प्राप्ति का प्रमुख आधार है जो भी व्यक्ति चरम चाकसू को बदलकर आत्मा में झुकाता है मानव को अंतर मुख करता है तो उसी कर्म से ब्रह्मा साक्षात्कार होता है ब्रह्मा घाट घाट व्यापी है भूलवश व्यक्ति उसे बाहर खोजता है भवसागर को पार करने के लिए उसके प्राप्ति अनिवार्य है

©Ek villain # माया और ब्रह्मा

#Love

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

तस्मै स विद्वानुपसन्नाय सम्यक्‌ प्रशान्तचित्ताय शमान्विताय।
येनाक्षरं पुरुषं वेद सत्यं प्रोवाच तां तत्त्वतो ब्रह्मविद्याम्‌ ॥

उसके प्रति जो पूर्णरूप से शरण में आ गया है, जो शान्तचित्त हो गया है, जिसकी आत्मा में शान्ति विराजती है, विद्वान् उस ब्रह्मविद्या का तत्त्वतः प्रवचन करता है जिससे 'अक्षर पुरुष' को, 'परमसत्य' तथा 'सत्तत्त्व' को जाना जाता है।

To him because he has taken entire refuge with him, with a heart tranquillised and a spirit at peace, that man of knowledge declares in its principles the science of the Brahman by which one comes to know the Immutable Spirit, the True and Real.

( मुंडकोपनिषद १.२.१३ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #गुरु

bhavnath jha

ब्रह्मा या एक वैज्ञानिक #WeTheChange

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

पञ्चस्रोतोम्बुं पञ्चयोन्युग्रवक्रां पञ्चप्राणोर्मिं पञ्चबुद्ध्यादिमूलाम्‌।
पञ्चावर्तां पञ्चदुःखौघवेगां पञ्चाशद्भेदां पञ्चपर्वामधीमः॥

अथवा हम ब्रह्म को ध्यान में एक नदी के रूप में देखते हैं जिसमें पाँच स्रोतों का जल है। पाँच कारणों से उसमें पाँच उग्र घुमाव हैं। इसमें पाँच प्राण रूपी लहरें हैं। उसका मन पंचविध ज्ञान का मूल उद्गम है। पंचविध दुःख इसकी क्षीप्तिकाएं हैं जिनमें पांच भंवर हैं, पांच शाखाएं और असंख्य पक्ष हैं।

We think of Him (in His manifestation as the universe) who is like a river that contains the waters of five streams; that has five big turnings due to five causes; that has the five Pranas for the waves, the mind - the basis of five-fold perception - for the source, and the five-fold misery for its rapids; and that has five whirlpools, five branches and innumerable aspects.

( श्वेताश्वतरोपनिषद् १.४ ) #श्वेताश्वतरोपनिषद् #उपनिषद् #ब्रह्मा #ज्ञान #दिव्य

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

यच्छ्रोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम्‌।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥

'वह' जो श्रोत्र (कान) के द्वारा नहीं सुनता,३ 'वह' जिसके द्वारा इस श्रोत्र की क्रिया को सुना जाता है, 'उसे' ही तुम 'ब्रह्म' जानो, ना कि इसे जिसकी मनुष्य यहां उपासना करते हैं।

That which hears not with the ear, that by which the ear's hearing is heard, know That to be the Brahman and not this which men follow after here.

केनोपनिषद मंत्र ७ #केनोपनिषद #उपनिषद #कर्ण #ब्रह्मा #परब्रह्म

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

उद्गीतमेतत्परमं तु ब्रह्म तस्मिंस्त्रयं सुप्रतिष्ठाऽक्षरं च।
अत्रान्तरं ब्रह्मविदो विदित्वा लीना ब्रह्मणि तत्परा योनिमुक्ताः॥

उपनिषदों में स्पष्ट रूप से परम ब्रह्म की घोषणा की गयी है। यह त्रिपक्षीय है। यह सुदृढ़ आश्रय तथा अविनाशी है। इसके आन्तरिक सारतत्व को जानकर वेदज्ञ ऋषि उसमें लीन हो गये और जन्म से मुक्त हो गये।

This is expressly declared to be the Supreme Brahman. In that is the triad. It is the firm support, and it is the imperishable. Knowing the inner essence of this, the knowers of Veda become devoted to Brahman, merge themselves in It, and are released from birth.

( श्वेताश्वतरोपनिषद् १.७ ) #श्वेताश्वतरोपनिषद् #उपनिषद् #ब्रह्मा #मुनि #मोक्ष #ज्ञान

वेदों की दिशा

।। ओ३म्  ।।

हिरण्मये परे कोशे विरजं ब्रह्म निष्कलम्‌।
तच्छुभ्रं ज्योतिषां ज्योतिस्तद्‌ यदात्मविदो विदुः ॥

उस परम हिरण्मय कोश में निष्कलंक, निरवयव 'ब्रह्म' निवास करता है 'वह' 'शुभ्र-भास्वर' है, वह 'ज्योतियों' की 'ज्योति' है, 'वही' है जिसे आत्म-ज्ञानी जानते हैं।

In a supreme golden sheath the Brahman lies, stainless, without parts. A Splendour is That, It is the Light of Lights, It is That which the self-knowers know.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #स्वयं #self #brahman

वेदों की दिशा

.।। ओ३म् ।।

प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्‌ तन्मयो भवेत्‌ ॥

ॐ (प्रणव) है धनुष तथा आत्मा है बाण, और 'वह', अर्थात् 'ब्रह्म' को लक्ष्य के रूप में कहा गया है। 'उसका' प्रमाद रहित होकर वेधन करना चाहिये; जिस प्रकार शर अर्थात् बाण अपने लक्ष्य में विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य को 'उस' में (ब्रह्म में) तन्मय हो जाना चाहिये।

OM is the bow and the soul is the arrow, and That, even the Brahman, is spoken of as the target. That must be pierced with an unfaltering aim; one must be absorbed into That as an arrow is lost in its target.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.४ ) #मुण्डकोपनिषद् #mundakopanishad #उपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #वह #him

kishan mahant

#निराकार ( निरंजन ) का पता लगाना ब्रह्मा जी का #ज़िन्दगी

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ब्रह्मा का वेद को पढ़कर निराकार ( निरंजन ) का पता लगाना 
ll चौपाई ll
 ब्रह्मा वेद पड़न तब लागा l पड़त वेद तब भा अनुरागा ll कहे वेद पुरुष  इक l है निराकार रूप नहिं ताही ll
 
इसके पशचात आगे चलकर, तब ब्रह्मा वेद पड़ने लगे l वेद पढ़ते हुए ब्रह्मा को निराकार के प्रति अनुराग ( भक्त्ति -प्रेम ) हुआ l वेद कहता है कि एक पुरुष है, वह निराकार है, उसका कोई रूप नहिं है l

©kishan mahant #निराकार ( निरंजन ) का पता लगाना ब्रह्मा जी का
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