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वेदों की दिशा

।। ओ३ म् ।।

तस्यै तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा ।
 वेदाः सर्वाङ्गानि सत्यमायतनम्‌ ॥

तप, आत्म-विजय (दम) तथा कर्म इस अन्तरज्ञान के आधार (प्रतिष्ठा) हैं, 'वेद' इसके सब अंग हैं, सत्य इसका धाम है।

Of this knowledge austerity and self-conquest and works are the foundation, the Vedas are all its limbs, truth is its dwelling place.

केनोपनिषद चतुर्थ खण्ड मंत्र ८ #केनोपनिषद #उपनिषद #वेद #वेद_विद्या #ज्ञान #कर्म #karma

वेदों की दिशा

।। ओ३ म् ।।

उपनिषदं भो ब्रूहीत्युक्ता त उपनिषद् ब्राह्मीं वाव त उपनिषदमब्रूमेति ॥

तुमने कहा-''उपनिषद्६ का प्रवचन कीजिये''; तुम्हारे लिए उपनिषद् का प्रवचन कर दिया है। निश्चित रूप से यह ब्राह्मी (ब्रह्मज्ञान सम्बन्धी) उपनिषद् है जिसका हमने उपदेश दिया है। ६उपनिषद् का तात्पर्य है अन्तरज्ञान, वह ज्ञान जो परम सत्य में प्रवेश करता है और उसमें प्रतिष्ठित हो जाता है।

Thou hast said “Speak to me Upanishad”; spoken to thee is Upanishad. Of the Eternal verily is the Upanishad that we have spoken.

केनोपनिषद चतुर्थ खंड मंत्र ७ #केनोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मज्ञान

वेदों की दिशा

।। ओ३ म् ।।

तस्यैष आदेशो यदेतद्विद्युतो व्यद्युतदा
 इतीन्न्यमीमिषदा इत्यधिदैवतम्‌ ॥

यह 'उसी' का निर्देश है,... जैसे विद्युत् का चमकना हो अथवा जैसे पलक का झपक जाना हो, वैसा ही अधिदैव-भाव है।

Now this is the indication of That,-as is this flash of the lightning upon us or as is this falling of the eyelid, so in that which is of the gods.

केनोपनिषद चतुर्थ खण्ड मंत्र ४ #केनोपनिषद #उपनिषद #परतत्व #ब्रह्मतत्व

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

तस्माद् वा इन्द्रोऽतितरामिवान्यान्देवान्स ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पर्श स ह्येनत्प्रथमो विदाञ्चकार ब्रह्मेति ॥

इसलिए इन्द्र अन्यान्य देवगणों से मानों परे, उच्चतर हैं, क्योंकि वह 'उसके' स्पर्श के निकटतम आया, क्योंकि सर्वप्रथम उसे यह ज्ञात हुआ कि वह 'ब्रह्म' था।

Therefore is Indra as it were beyond all the other gods because he came nearest to the touch of That, because he first knew that it was the Brahman.

केनोपनिषद चतुर्थ खण्ड मंत्र ३ #केनोपनिषद #उपनिषद #इन्द्र #फैक्ट #Fact #सर्वश्रेष्ठ #ब्रह्म

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

तस्माद्वा एते देवा अतितरामिवान्यान्देवान्यदग्निर्वायुरिन्द्रस्ते ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पर्शुस्ते ह्येनत्प्रथमो विदाञ्चकार ब्रह्मेति ॥

केनोपनिषद चतुर्थ खण्ड मंत्र २ #केनोपनिषद #उपनिषद

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

स तस्मिन्नेवाकाशे स्त्रियमाजगाम
 बहुशोभमानामुमां हैमवतीं तां होवाच किमेतद्यक्शमिति ॥

वह (इन्द्र) उसी आकाश में अनेक रूपों में भासित हो रही एक स्त्री के समीप आया जो हिमवान् शिखरों की पुत्री 'उमा' है। वह उमा से बोला, ''यह बलशाली यक्ष क्या था?

He in the same ether came upon the Woman, even upon Her who shines out in many forms, Uma daughter of the snowy summits. To her he said, “What was this mighty Daemon?”

केनोपनिषद तृतीय खण्ड मंत्र १२ #केनोपनिषद #उपनिषद #उमा #हिमवंती #इन्द्र #यक्ष #बलशाली

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

अथेन्द्रमब्रुवन् मघवन्नेतद्विजानीहि 
किमेतद्यक्शमिति तथेति तदभ्यद्रवत् तस्मात्तिरोदधे ॥

तब उन्होंने इन्द्र से कहा, ''हे सम्पदाओं के स्वामी (मघवन्), इसके विषय में ज्ञान प्राप्त करो कि यह बलशाली यक्ष क्या है।'' उसने कहा, ''तथा इति।'' वह द्रुतगति से 'उसकी' ओर गया। 'वह' इन्द्र के सामने से तिरोहित हो गया।

Then they said to Indra, “Master of plenitudes, get thou the knowledge, what is this mighty Daemon.” He said, “So be it.” He rushed upon That. That vanished from before him.

केनोपनिषद तृतीय खण्ड मंत्र ११ #केनोपनिषद  #उपनिषद #वेदांत #इन्द्र #यक्ष #परब्रह्म

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

तस्मै तृणं निदधावेतदादत्स्वेति तदुपप्रेयाय सर्वजवेन तन्न शशाकादातुं स तत एव निववृते नैतदशकं विज्ञातुं यदेतद्यक्शमिति ॥

उस यक्ष ने उसके सम्मुख एक तिनका रखा; ''इसे ले जाओ।'' वह अपने पूर्ण वेग से तिनके की ओर बढ़ा, पर उसे ले नहीं सका। वहीं निश्चेष्ट हो गया, और वहीं से वह वापिस लौट आया; ''मैं नहीं जान सका कि 'वह' बलशाली यक्ष क्या है।

That set before him a blade of grass; “This take.” He went towards it with all his speed and he could not take it. Even there he ceased, even thence he returned; “I could not discern of That, what is this mighty Daemon.”

केनोपनिषद तृतीय खण्ड मंत्र १० #केनोपनिषद #मंत्र #उपनिषद #वायु #वेग #यक्ष

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
तदभ्यद्रवत्तमभ्यवदत् कोऽसीति वायुर्वा
 अहमस्मीत्यब्रवीन्मातरिश्वा वा अहमस्मीति ॥

वह 'उसके' (यक्ष के) प्रति द्रुतगति से गया; ‘उसने’ (यक्ष ने) वायु से कहा, ''तुम कौन हो? इसने कहा, ''मैं वायु हूँँ, मैं हीं वह तत्त्व हूँ जो वस्तुओं के ‘मातृ-तत्त्व' में विस्तीर्ण होता है(मातरिश्वा हूँ)।

He rushed upon That; It said to him, “Who art thou?” “I am Vayu,” he said, “and I am he that expands in the Mother of things.”

केनोपनिषद तृतीय खण्ड मंत्र ८ #केनोपनिषद #उपनिषद   #वायु #यक्ष

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

अथ वायुमब्रुवन् वायवेतद्विजानीहि किमेतद्यक्शमिति तथेति ॥

तब वे वायुदेव से बोले, ''हे वायु! यह पता करो यह बलशाली यक्ष क्या है? वायु ने कहा, ''तथा इति।''

Then they said to Vayu, “O Vayu, this discern, what is this mighty Daemon.” He said, “So be it.”

केनोपनिषद तृतीय खण्ड मंत्र ७ #केनोपनिषद #उपनिषद #मंत्र #वायु #वायुदेव #यक्ष
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